Author: UmaKant Joshi

पीएम मोदी का कांग्रेस पर हमला नफरती राजनीति की फैक्ट्री हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रचंड जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तीखा हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी देश के मुसलमानों में भय पैदा करना चाहती है और उन्हें वोट बैंक में बदलने की कोशिश कर रही है। मुख्य बिंदु: समापन: प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान चुनावी माहौल में आया है, जब राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। उन्होंने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि भाजपा का उद्देश्य सभी समुदायों को एकजुट करना और नफरत की राजनीति का मुकाबला करना है।

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रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखा ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक में निर्णय लिया है कि रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखा जाएगा। यह लगातार दसवीं बार है जब RBI ने अपनी मौद्रिक नीति में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। यह बैठक 7 से 9 अक्टूबर, 2024 तक मुंबई में हुई, जिसमें आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने उपस्थित सदस्यों के साथ मिलकर निर्णय लिया। रेपो रेट का महत्व रेपो रेट वह दर है जिस पर सभी व्यावसायिक बैंक केंद्रीय बैंक से उधार लेते हैं। यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसके माध्यम से RBI देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करता है। यदि रेपो रेट बढ़ता है, तो इससे व्यावसायिक बैंकों की लागत बढ़ जाती है, जो उन्हें ग्राहकों के लिए ब्याज दरें बढ़ाने के लिए मजबूर करता है। इसका सीधा असर होम लोन, कार लोन और अन्य ऋणों की ईएमआई (EMI) पर पड़ता है। अर्थव्यवस्था पर प्रभाव रेपो रेट का अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। अगर ग्राहक की ईएमआई कम होती है, तो उनके पास खर्च करने के लिए अधिक पैसे होते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आ सकती है। हालांकि, अगर ग्राहकों के हाथ में बहुत ज्यादा पैसे होते हैं, तो इससे महंगाई भी बढ़ सकती है। इसीलिए, केंद्रीय बैंक महंगाई को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर रेपो रेट को बढ़ाने का निर्णय लेता है। गवर्नर शक्तिकांत दास का बयान आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैठक के बाद कहा, “मौद्रिक नीति समिति ने तीन नए बाहरी सदस्यों के साथ मिलकर मैक्रोइकोनॉमिक और वित्तीय परिस्थितियों का गहराई से विश्लेषण किया। छह में से पांच सदस्यों ने नीति रेपो रेट को 6.5% पर बनाए रखने का निर्णय लिया।” भविष्य की योजना आरबीआई हर दो महीने में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिए बैठक करता है। इस वर्ष की अगली बैठक दिसंबर में आयोजित की जाएगी। RBI की मौद्रिक नीति समिति की यह समीक्षा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे न केवल बैंकों की नीति निर्धारित होती है, बल्कि यह आम जनता के वित्तीय जीवन को भी प्रभावित करती है। निष्कर्ष रेपो रेट का स्थिर रहना अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह न केवल बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता को दर्शाता है, बल्कि यह आने वाले महीनों में आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रभाव डाल सकता है। ग्राहकों को इस निर्णय का प्रभाव समझना होगा और अपने वित्तीय योजनाओं को इसी के अनुसार समायोजित करना होगा।

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हरियाणा में हार के बाद राजस्थान के लिए खतरे की घंटी विधानसभा चुनाव के परिणाम ने राजस्थान में कांग्रेस के लिए नई चुनौतियों का संकेत दिया है। कांग्रेस ने हरियाणा में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद की थी, लेकिन चुनाव परिणामों ने राजनीतिक विश्लेषकों की उम्मीदों को धराशायी कर दिया। भाजपा ने 48 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को 37 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। इस स्थिति ने कांग्रेस के नेतृत्व और रणनीति पर सवाल उठाए हैं, खासकर जब राजस्थान में उपचुनाव की तैयारी चल रही है। हरियाणा के नतीजों का प्रभाव हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन ने न केवल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजाई है, बल्कि इसके प्रभाव राजस्थान की चुनावी राजनीति पर भी पड़ सकता है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जाट बहुल सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन हरियाणा में हार के बाद उस पर ब्रेक लग सकता है। जाट मतदाता, जो राजस्थान की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अब भाजपा की ओर आकर्षित हो सकते हैं। हरियाणा में हार के बाद राजस्थान के लिए खतरे की घंटी राजस्थान के उपचुनाव राजस्थान में कुल 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। इनमें खींवसर और झुंझुनू जैसी सीटें शामिल हैं, जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन क्षेत्रों में प्रभावी प्रदर्शन किया था, लेकिन हरियाणा के नतीजों ने स्थिति को जटिल बना दिया है। ‘जाट फैक्टर’ का महत्व हरियाणा में जाट मतदाताओं की संख्या बड़ी है, और भाजपा ने इन सीटों पर करीब 50 फीसदी जीत हासिल की है। यदि यह प्रवृत्ति राजस्थान में भी जारी रहती है, तो कांग्रेस के लिए संकट खड़ा हो सकता है। जाट समुदाय की नाराजगी का सामना करते हुए कांग्रेस को अपने चुनावी समीकरणों पर पुनर्विचार करना होगा। गठबंधन की टूटन और उसके परिणाम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के साथ गठबंधन किया था, जिसने जाट मतदाताओं के समर्थन को जुटाने में मदद की थी। हालाँकि, अब बेनीवाल ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का मन बनाया है, और इससे कांग्रेस की स्थिति और कमजोर हो सकती है। बेनीवाल की पार्टी ने हरियाणा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ सक्रिय रूप से प्रचार किया, जिससे जाट समुदाय का समर्थन बंट सकता है। झुंझुनू विधानसभा सीट पर ‘जाट फैक्टर’ झुंझुनू विधानसभा सीट पर भी ‘जाट फैक्टर’ प्रमुख भूमिका निभा सकता है। यदि भाजपा हरियाणा चुनाव का मोमेंटम बनाए रखती है, तो यह कांग्रेस के लिए यहां एक बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। हालांकि, झुंझुनू में कांग्रेस ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में यह चुनौती आसान नहीं होगी। निष्कर्ष कांग्रेस को हरियाणा चुनाव के परिणामों को ध्यान में रखते हुए अपनी चुनावी रणनीति को संशोधित करना होगा। उसे जाट मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए नए तरीके अपनाने होंगे और क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस की स्थिति उसकी सक्रियता, गठबंधनों और स्थानीय मुद्दों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगी। यदि कांग्रेस ने अपनी रणनीतियों को प्रभावी रूप से लागू किया, तो यह उसे राजस्थान में एक मजबूत स्थिति प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

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केंद्र सरकार का बड़ा फैसला राजस्थान के अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। पिछले दो वर्षों से लंबित स्कॉलरशिप अब केंद्र सरकार ने मंजूर कर दी है। यह छात्रवृत्ति योजना राज्य के अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों की शिक्षा में मदद के लिए चलाई जाती है, लेकिन स्कॉलरशिप के वितरण में देरी के कारण हजारों छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो रही थी। अब केंद्र सरकार ने इस लंबित राशि को जारी करने का निर्णय लिया है, जिससे छात्रों को एक बड़ी राहत मिलेगी। लंबित स्कॉलरशिप की समस्या राजस्थान के अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मिलने वाली उत्तर मैट्रिक छात्रवृत्ति पिछले दो वर्षों से वितरित नहीं की गई थी। इससे छात्रों को न केवल आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि उनकी शैक्षिक प्रगति भी बाधित हो रही थी। इस स्कॉलरशिप का उद्देश्य है, उन छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना जो मैट्रिक पास कर चुके हैं और उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हैं। छात्रवृत्ति के अंतर्गत छात्रों को प्रति वर्ष 15,000 रुपये की राशि प्रदान की जाती है, लेकिन 2022-23 और 2023-24 के शैक्षणिक वर्षों के लिए यह राशि रोक दी गई थी। इसका सीधा प्रभाव उन छात्रों पर पड़ा जो इस वित्तीय सहायता पर निर्भर थे। कई छात्र अपनी पढ़ाई जारी रखने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि उन्हें ट्यूशन, पुस्तकें, और अन्य शैक्षणिक सामग्री खरीदने के लिए धन की कमी का सामना करना पड़ रहा था। केंद्र सरकार का बड़ा कदम अब केंद्र सरकार ने 250 करोड़ रुपये का बजट जारी करने का निर्णय लिया है, जिससे राजस्थान के अनुसूचित जनजाति छात्रों को लंबित छात्रवृत्ति का भुगतान किया जा सकेगा। इस बजट में वर्ष 2022-23 के लिए 192.45 करोड़ रुपये और वर्ष 2023-24 के लिए 57.54 करोड़ रुपये शामिल हैं। इस छात्रवृत्ति योजना से सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के आर्थिक रूप से कमजोर अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्र लाभान्वित होंगे। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद, यह स्कॉलरशिप सीधे छात्रों के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाएगी, जिससे उन्हें अपनी पढ़ाई की बाधाओं से राहत मिलेगी। इससे लगभग 70,000 से अधिक छात्र लाभान्वित होंगे, जिनकी शिक्षा वित्तीय सहायता के अभाव में अटक गई थी। केंद्र सरकार का बड़ा फैसला राजस्थान के अनुसूचित जनजाति समाज पर प्रभाव यह स्कॉलरशिप उन छात्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो सीमित संसाधनों के बावजूद उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। इस छात्रवृत्ति के अभाव में, कई छात्र उच्च शिक्षा के अपने सपने को पूरा नहीं कर पा रहे थे। अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए यह वित्तीय सहायता एक प्रोत्साहन के रूप में काम करती है, जिससे वे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कदम रख सकते हैं। राजस्थान के अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों और उनके परिवारों के लिए यह फैसला एक बड़ी राहत है। यह फैसला केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि समाज में आर्थिक और सामाजिक समानता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इन परिवारों ने लंबे समय से इस राहत का इंतजार किया था, और अब उन्हें अपनी समस्याओं का हल मिलता दिख रहा है। आवेदन प्रक्रिया में सुधार राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा संचालित इस छात्रवृत्ति योजना के आवेदन की अंतिम तिथि पहले कई बार बढ़ाई गई थी, और अब इसे 31 जुलाई, 2024 तक बढ़ा दिया गया है। आवेदन प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए विभाग द्वारा समय-समय पर नए आदेश और दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं। इसके अलावा, स्कॉलरशिप की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सुगम बनाने के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रणाली को भी मजबूत किया गया है, जिससे छात्रों को अपने आवेदन आसानी से जमा करने और उसकी स्थिति ट्रैक करने की सुविधा मिल सके। निष्कर्ष केंद्र सरकार का यह फैसला राजस्थान के अनुसूचित जनजाति छात्रों की शिक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति का आधार होती है, और इस स्कॉलरशिप योजना के माध्यम से सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद छात्रों की शिक्षा बाधित न हो। यह कदम समाज के वंचित वर्गों को सशक्त बनाने और उनके शैक्षिक भविष्य को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। यह फैसला न केवल छात्रों और उनके परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है कि वह समाज के हर वर्ग के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रही है।

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शेयर बाजार में उछाल: MPC के फैसलों के बाद सेंसेक्स ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखने के फैसले के बाद जबरदस्त उछाल दर्ज किया। इस घोषणा के बाद बाजार में निवेशकों का भरोसा बढ़ा, जिससे बीएसई सेंसेक्स में 615.13 अंकों (0.75%) की तेज़ी आई और यह 82,249.94 अंकों तक पहुंच गया। वहीं, एनएसई निफ्टी भी 197.80 अंकों (0.79%) की बढ़त के साथ 25,052.80 पर कारोबार करता दिखा, जिससे यह रिकॉर्ड स्तर को छूने के करीब पहुंच गया। बाजार की प्रमुख हाइलाइट्स: RBI के फैसलों का बाजार पर प्रभाव: आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के उद्देश्य से रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखने का फैसला लिया। इस फैसले ने बाजार में सकारात्मक संकेत दिए, जिससे सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में उछाल दर्ज किया गया। रेपो दर में बदलाव न होने से निवेशकों ने यह विश्वास किया कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास दर को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है। शेयर बाजार में उछाल: MPC के फैसलों के बाद सेंसेक्स आगे की संभावनाएं: वर्तमान परिदृश्य में, भारतीय शेयर बाजार अपनी नई ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा है। कंपनियों के तिमाही नतीजों, वैश्विक आर्थिक स्थितियों, और विदेशी निवेशकों के रुझान पर आधारित, आने वाले दिनों में बाजार की दिशा तय होगी। घरेलू निवेशकों की मजबूत भागीदारी से भारतीय बाजार को समर्थन मिलता दिख रहा है, जबकि वैश्विक घटनाक्रम, जैसे तेल की कीमतें और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियों, पर भी नजर रखनी होगी। शेयर बाजार के लिए मौजूदा स्थिति उत्साहजनक है, लेकिन निवेशकों को सतर्क रहने की जरूरत है। किसी भी अनिश्चितता से निपटने के लिए एक संतुलित पोर्टफोलियो का होना जरूरी है।

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पुत्र की प्रथम पुण्यतिथ एक दर्दनाक दास्तान आज हमारे इकलौते बेटे को इस दुनिया से गए एक साल हो गए। कहते हैं, ईश्वर की मर्जी के आगे इंसान बेबस होता है, और सब्र ही एकमात्र सहारा बनता है। लेकिन, एक पिता के दिल की पीड़ा और एक मां की आंखों से बहे आंसुओं के साथ एक सवाल अब भी कचोटता रहता है—जिस बेटे को हमने 22 साल तक पाल-पोसकर बड़ा किया, उसे हमसे छीनने वाले के खिलाफ कब होगी कानूनी कार्रवाई? यह कहते हुए चिराग सक्सेना के पिता, देवेंद्र सक्सेना की आंखें नम हो जाती हैं। दुर्घटना और उसके पीछे की व्यथा आज से ठीक एक साल पहले, 7 अक्टूबर 2023, हमारे 22 वर्षीय बेटे चिराग सक्सेना, जो एक नर्सिंग के छात्र थे, एक भयानक सड़क दुर्घटना में अपने सहपाठियों देवेंद्र और गजेंद्र के साथ घायल हो गए थे। पुष्कर घाटी पर अवैध रूप से बजरी से लदे एक डंपर ने इन मासूम बच्चों की जिंदगी छीन ली। चिराग और देवेंद्र ने उस दर्दनाक हादसे में अपनी जान गंवा दी, जबकि गजेंद्र आज भी कोमा में है। गजेंद्र ना बोल सकता है, ना चल सकता है, और उसे केवल नलियों के सहारे खाना दिया जा रहा है। टूटे हुए परिवार और उनकी असहनीय पीड़ा इस हादसे ने तीन परिवारों को उजाड़ दिया। एक पिता जिसने अपने इकलौते बेटे को खो दिया, और तीन माताएं जिन्होंने अपने जीवन के सबसे बड़े सहारे को खो दिया। चिराग सक्सेना अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। उनकी मां एक ग्रहणी हैं, और पिता सामाजिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। देवेंद्र, जिनके पिता पुलिस में थे, की भी इस हादसे में मौत हो गई। देवेंद्र के पिता की मृत्यु के बाद, उसे सरकारी नौकरी मिलने वाली थी, लेकिन अब उसकी मां अकेली रह गई हैं। गजेंद्र की मां, जो एक स्कूल कर्मचारी थीं, अब अपने बेटे की देखभाल में लगी हैं, जिसका इलाज जारी है। पुत्र की प्रथम पुण्यतिथि: एक दर्दनाक दास्तान समाज और प्रशासन की उदासीनता इन परिवारों ने समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को हमेशा निभाया। चिराग, देवेंद्र, और गजेंद्र जैसे बच्चे नर्सिंग की पढ़ाई कर समाज की सेवा में जुटे थे। इन बच्चों ने कोविड-19 जैसी महामारी में भी अपना कर्तव्य निभाया। पर अफसोस, आज इन परिवारों की दुर्दशा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। न सरकार, न प्रशासन, न कोई सामाजिक संगठन, न ही न्यायपालिका ने इनकी पीड़ा को समझा या इनके लिए आवाज उठाई। अधूरी न्याय की आस चिराग के पिता का सवाल अब भी गूंजता है: “हमने अपना इकलौता बेटा खो दिया, और जिसने यह हादसा किया, उसके खिलाफ अब तक कोई ठोस कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?” यह सवाल सिर्फ उनके लिए नहीं है, बल्कि उन सभी के लिए है जो अपने बच्चों को खोने के बाद न्याय की उम्मीद में बैठे हैं। यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि समाज, शासन और न्याय व्यवस्था के प्रति एक गंभीर प्रश्न है। क्या हमारे बच्चों की जिंदगी इतनी सस्ती है कि उनके मरने या जीने का कोई मतलब नहीं रह गया? इन परिवारों की त्रासदी हमें इस सवाल पर सोचने के लिए मजबूर करती है कि क्या इंसान की जान की कीमत सिर्फ उसके परिवार के लिए ही होती है? समाज और प्रशासन से सवाल आज, जब इन तीनों परिवारों के जीवन में सिर्फ खालीपन और असहनीय दर्द बचा है, तो क्या हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम इनके लिए आवाज उठाएं? क्या इन मासूम बच्चों के बलिदान को यूं ही भुला दिया जाएगा? क्या कोई समाधान या न्याय इन परिवारों को राहत दे पाएगा? इस पुण्यतिथि पर, इन परिवारों की पीड़ा को महसूस करना और उनके लिए न्याय की मांग करना हमारा कर्तव्य है। हम समाज के रूप में, इन बिखरे परिवारों के साथ खड़े हो सकते हैं और उन्हें यह एहसास दिला सकते हैं कि वे अकेले नहीं हैं। उनके दर्द और उनके संघर्ष का समाधान तभी मिलेगा जब हम उनके साथ आवाज उठाएंगे।

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जयपुर में एम पॉक्स की दस्तक: विदेश से लौटे मरीज में मिले लक्षण इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर एक मरीज में एम पॉक्स (मंकी पॉक्स) के लक्षण देखे गए हैं, जिससे स्वास्थ्य विभाग में चिंता बढ़ गई है। मरीज को तुरंत एयरपोर्ट से आरयूएचएस अस्पताल में भर्ती किया गया है, जहां उसकी जांच की जाएगी। फिलहाल, मरीज को एम पॉक्स संदिग्ध माना गया है, और जांच के बाद ही इस संक्रमण की पुष्टि हो सकेगी। अस्पताल की तैयारी डॉक्टर अजीत सिंह, आरयूएचएस अस्पताल के अधीक्षक, ने बताया कि एम पॉक्स के मामलों को देखते हुए अस्पताल में विशेष इंतजाम किए गए हैं। अस्पताल के एक पूरे फ्लोर को सिर्फ एम पॉक्स से ग्रसित मरीजों के इलाज के लिए तैयार किया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में एम पॉक्स के बढ़ते मामलों के चलते इसे ग्लोबल पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान में चिकित्सा विभाग ने भी इस बीमारी के प्रति चेतावनी जारी की है। एम पॉक्स क्या है? एम पॉक्स एक संक्रामक बीमारी है, जो मंकी पॉक्स वायरस के कारण होती है। इसके लक्षण चिकन पॉक्स और हरपीज की तरह होते हैं। एम पॉक्स के प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं: वायरस की चपेट में आने के लगभग 3 सप्ताह बाद लक्षण प्रकट होते हैं, इसलिए सावधानी आवश्यक है। जयपुर में एम पॉक्स की दस्तक विदेश से लौटे मरीज में मिले लक्षण फैलने के तरीके और बचाव वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के अनुसार, एम पॉक्स एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। इसके अलावा, संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने या उनके मांस को पकाने के दौरान भी यह बीमारी फैल सकती है। इसके संक्रमण से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं: भारत में एम पॉक्स की स्थिति भारत में भी मंकी पॉक्स के मामलों में वृद्धि देखने को मिल रही है। हाल ही में एक मरीज भारत आया था, जो ऐसे देश से लौटा था जहां मंकी पॉक्स के मामले फैले हुए हैं। इस मरीज में मंकी पॉक्स जैसे लक्षण पाए जाने के कारण उसे आइसोलेशन में रखा गया था। यह संक्रमण क्लेड-2 का है, जो ज्यादा खतरनाक नहीं है। हालांकि, WHO ने क्लेड-1 को लेकर स्वास्थ्य आपातकाल का ऐलान किया है। मरीज को डेसिग्नटेड अस्पताल में आइसोलेशन में रखा गया है और वर्तमान में उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है। संक्रमण की ट्रेसिंग मामले को स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार संभाला जा रहा है। संपर्क ट्रेसिंग की प्रक्रिया जारी है ताकि संभावित स्रोतों की पहचान की जा सके। हालांकि, मरीज किस राज्य से है और उसने किन देशों का दौरा किया, यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। मंकी पॉक्स का वैश्विक संकट मंकी पॉक्स, जिसे एम पॉक्स भी कहा जाता है, अफ्रीका से शुरू होकर अब 70 से ज्यादा देशों में फैल चुका है। इस बीमारी से सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। WHO ने मंकी पॉक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया है। इस वायरस का पहला मामला 1958 में देखा गया था जब रिसर्च के लिए बंदरों को एक कॉलोनी में रखा गया था। 1970 में कांगो में पहली बार इंसानों में मंकी पॉक्स के लक्षण देखे गए थे। अफ्रीका के बाहर भी, जैसे अमेरिका, इज़राइल और सिंगापुर में मामलों की पुष्टि हुई है, और यूके में 2018 में पहली बार मंकी पॉक्स का मामला सामने आया था। निष्कर्ष जयपुर में एम पॉक्स के संदिग्ध मामले ने स्वास्थ्य विभाग को सतर्क कर दिया है। इस स्थिति में, सभी को सतर्क रहना और आवश्यक सावधानियां बरतना चाहिए ताकि इस संभावित महामारी के प्रसार को रोका जा सके। भारत में एम पॉक्स के मामलों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए, यह जरूरी है कि हम अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता दें।

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Karan Johar Look गले में चोटी बांधकर मचाई धूम न केवल अपनी फिल्मों के लिए मशहूर हैं, बल्कि अपने अनोखे और स्टाइलिश लुक्स के लिए भी जाने जाते हैं। हाल ही में करण ने एक ऐसा लुक अपनाया है, जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इस बार करण ने टाई की जगह गले में एक खास प्रकार की ‘चोटी’ पहनी, जो उनकी स्टाइल का अनूठा और नया अंदाज पेश कर रही है। करण जौहर की पहचान बॉलीवुड के टॉप फिल्ममेकर्स में होती है, लेकिन वह अपने फैशन सेंस के लिए भी चर्चित हैं। उनकी हर नई तस्वीर और लुक सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन जाता है। आइए, जानते हैं करण जौहर के इस खास लुक और उसकी कीमत के बारे में, जिसे जानकर आपके होश उड़ जाएंगे! Karan Johar Look गले में चोटी बांधकर मचाई धूम का स्टाइलिश लुक करण जौहर ने हाल ही में बेज कलर के ब्लेजर के साथ सफेद शर्ट पहनी थी, जिसे उन्होंने बेज पैंट के साथ पेयर किया। यह रंग आजकल फैशन ट्रेंड में है और करण इस लुक में बेहद हैंडसम और स्टाइलिश नजर आ रहे थे। इस लुक को सेलिब्रिटी स्टाइलिस्ट एका लखानी ने स्टाइल किया था, जिन्होंने करण के लुक को परफेक्ट बना दिया। ‘चोटी’ जैसी टाई ने खींचा ध्यान हालांकि करण के इस लुक की सबसे खास बात उनकी चोटी जैसी टाई थी। उन्होंने जो टाई पहनी थी, वह साधारण टाई न होकर एक ब्रेडेड हेयर टाई थी। यह खास टाई शिआपरेल्ली (Schiaparelli) ब्रांड के ऑटम-विंटर 2024 कलेक्शन का हिस्सा है, जो हाल ही में लॉन्च किया गया था। इस टाई की कीमत सुनकर आप चौंक जाएंगे। शिआपरेल्ली की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, इसकी कीमत 2,100 यूरो यानी लगभग 1,93,685 रुपये है। क्लासी ब्रोच ने बढ़ाई शान करण के इस लुक को और भी खास बनाने के लिए उन्होंने इवल आई ब्रोच पहना था, जो हीरे और मोतियों से जड़ा हुआ था। यह ब्रोच भी शिआपरेल्ली ब्रांड का है, और इसकी कीमत भी कम नहीं है। इसकी कीमत 1.52 लाख रुपये बताई जा रही है, जो करण के लुक में और अधिक क्लासी अंदाज जोड़ रहा था। मैचिंग बैग और जूते करण ने अपने पूरे लुक को और भी शानदार बनाने के लिए ब्राउन रंग के जूते और मैचिंग बैग कैरी किया। उनके चश्मे का रंग भी ब्राउन शेड में था, जो उनके पूरे लुक के साथ पूरी तरह मेल खा रहा था। महंगे लेकिन स्टाइलिश लुक से किया सबको इंप्रेस करण जौहर का यह लुक महंगा होने के साथ-साथ काफी स्टाइलिश और अनोखा भी है। फैशन की दुनिया में करण हमेशा से एक्सपेरिमेंटल रहे हैं, और उनका यह नया लुक भी उनकी इसी एक्सपेरिमेंटल स्टाइल का हिस्सा है। चाहे उनकी फिल्मों की बात हो या उनके स्टाइल की, करण जौहर हमेशा कुछ न कुछ नया और अनोखा पेश करते हैं। निष्कर्ष करण जौहर के इस खास लुक में लक्जरी फैशन की झलक देखने को मिली, जिसने लोगों को हैरान कर दिया। उनकी ‘चोटी’ वाली टाई और इवल आई ब्रोच की कीमतें वाकई में चौंकाने वाली हैं, लेकिन यह करण के शानदार फैशन सेंस और स्टाइलिश अंदाज को दिखाता है। करण जौहर न केवल एक बेहतरीन फिल्ममेकर हैं, बल्कि अपने अनोखे और महंगे फैशन चॉइसेस से भी सबका दिल जीत रहे हैं।

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बीकानेर जिले रोहित गोदारा के नाम से 50 लाख की रंगदारी मांगी के लूणकरणसर निवासी एक व्यक्ति से गैंगस्टर रोहित गोदारा के नाम पर 50 लाख रुपये की मांग की गई है, जिसके चलते एक बार फिर रोहित गोदारा का नाम सुर्खियों में आ गया है। यह घटना 30 सितंबर की है, जब लूणकरणसर निवासी अभय राज बाफना के मोबाइल पर व्हाट्सएप के जरिए एक धमकी भरा कॉल आया। फोन करने वाला व्यक्ति खुद को रोहित गोदारा बता रहा था और उसने अभय से 50 लाख रुपये की मांग की। धमकी देने वाले ने कहा कि अगर पैसे नहीं दिए गए, तो वह अभय और उसके परिवार को जान से मार देगा। रोहित गोदारा के नाम से 50 लाख की रंगदारी मांगी घटना का विवरण: लूणकरणसर निवासी अभय राज बाफना ने लूणकरणसर थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई है कि 30 सितंबर की शाम उसके मोबाइल पर एक व्हाट्सएप कॉल आया। कॉल करने वाले व्यक्ति ने खुद को कुख्यात गैंगस्टर रोहित गोदारा बताते हुए 50 लाख रुपये की मांग की और अभय को धमकी दी कि अगर उसने पैसे नहीं दिए, तो उसे और उसके परिवार को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कॉल के दौरान आरोपी ने कहा, “तुम्हारा सरदारशहर में क्या मामला है? मैंने तुम्हारा नंबर सुनील पारीक से लिया है। सीधा 50 लाख रुपये दे देना वरना तुम्हें और तुम्हारे परिवार को खत्म कर दूंगा।” इस धमकी भरे कॉल के बाद अभय राज ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई और परिवार की सुरक्षा की मांग की। अभय राज के अनुसार, कॉल करने वाले ने बाद में भी संपर्क किया और एक बार फिर पैसे की मांग की। इस बार आरोपी ने कहा, “हमारे पास पैसे निकलवाने के बहुत से सिस्टम हैं, अगर पैसे नहीं मिले तो हम तुम्हें देख लेंगे।” पुराना विवाद और मामला दर्ज: इस घटना के पीछे एक पुराना विवाद भी सामने आया है। अभय राज और सरदारशहर के सुनील पारीक के बीच लेन-देन का मामला चल रहा है, जिसका मुकदमा सरदारशहर थाने में दर्ज है। यह संभावना जताई जा रही है कि इसी विवाद के चलते सुनील पारीक ने अभय राज का नंबर रोहित गोदारा या उसके किसी साथी को दिया हो, ताकि उस पर दबाव डाला जा सके। पुलिस की कार्रवाई: इस गंभीर मामले को देखते हुए, लूणकरणसर पुलिस ने अभय की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी है। पुलिस ने अभय की रिपोर्ट के आधार पर मामले की जांच शुरू कर दी है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि फोन करने वाला व्यक्ति वास्तव में रोहित गोदारा था या कोई अन्य शख्स, जो उसके नाम का इस्तेमाल कर रहा था। पुलिस अब यह जांच कर रही है कि क्या इस धमकी के पीछे रोहित गोदारा का हाथ है या यह केवल उसके नाम का इस्तेमाल करके किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अभय पर दबाव बनाने की कोशिश की गई है। इसके अलावा, पुलिस यह भी जांच कर रही है कि क्या सुनील पारीक का इस घटना से कोई संबंध है, क्योंकि उसके और अभय के बीच पहले से ही विवाद चल रहा है। रोहित गोदारा: एक खतरनाक गैंगस्टर गौरतलब है कि रोहित गोदारा राजस्थान और आसपास के राज्यों में एक खतरनाक गैंगस्टर के रूप में जाना जाता है। उसके नाम पर पहले भी कई गंभीर अपराध दर्ज हैं, जिनमें रंगदारी, हत्या और तस्करी जैसे अपराध शामिल हैं। रोहित गोदारा लंबे समय से पुलिस की नजर में है, और उसके खिलाफ कई मुकदमे भी चल रहे हैं। परिवार डरा-सहमा: धमकी के बाद से अभय राज बाफना और उनका परिवार काफी डरा हुआ है। उन्होंने पुलिस से सुरक्षा की मांग की है, ताकि उनके परिवार की जान-माल की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया है और अभय राज के परिवार को पूरी सुरक्षा देने का आश्वासन दिया है। निष्कर्ष: यह घटना राज्य में बढ़ते अपराध और रंगदारी के मामलों की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जहां अपराधी खुलेआम धमकी देकर लोगों से भारी रकम की मांग कर रहे हैं। पुलिस अब इस मामले की गहनता से जांच कर रही है, और यह देखा जाना बाकी है कि क्या वास्तव में रोहित गोदारा इस मामले में शामिल है या उसके नाम का इस्तेमाल कर किसी ने यह धमकी दी है।

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Rajasthan आरएएस अफसरों के लगातार तबादले एक बड़ा मुद्दा बनते जा रहे हैं। पिछले एक महीने में राज्य सरकार ने तीसरी बार आरएएस (Rajasthan Administrative Service) अधिकारियों की ट्रांसफर लिस्ट जारी की है, जिसमें 83 अधिकारियों का नाम शामिल है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से कई अफसरों का पिछले 10 महीनों में 5 से 6 बार तबादला हो चुका है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार इन अधिकारियों की सही तैनाती नहीं कर पा रही या अफसर सरकार के अनुकूल नहीं हैं। कुर्सी संभालते ही ट्रांसफर: क्या हो रही है प्रशासनिक अस्थिरता? ताजा ट्रांसफर लिस्ट ने राज्य में प्रशासनिक अस्थिरता की ओर इशारा किया है। आरएएस अधिकारी अनूप सिंह और अमिता माना का पिछले 10 महीनों में छठी बार तबादला किया गया है। हाल ही में, अनूप सिंह को सवाई माधोपुर के उपखंड अधिकारी के रूप में तैनात किया गया था, लेकिन अब उन्हें बसेड़ी भेज दिया गया है। अमिता माना को भी विराटनगर से रूपनगढ़ (अजमेर) में उपखंड अधिकारी के पद पर ट्रांसफर कर दिया गया है। लगातार तबादलों से प्रभावित हो रही प्रशासनिक कार्यक्षमता राजस्थान में कई अधिकारियों का 10 महीनों में कई बार ट्रांसफर होना राज्य की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं: यह लगातार हो रहे तबादले राज्य की प्रशासनिक स्थिरता को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे अधिकारियों को अपने नए कार्यक्षेत्रों में समायोजन करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पा रहा है। इससे न केवल प्रशासनिक कार्य में रुकावट आ रही है, बल्कि स्थानीय विकास कार्यों पर भी इसका असर पड़ रहा है। पिछली सूची में भी हुआ था तबादला सिर्फ यही नहीं, बीते महीने 183 आरएएस अधिकारियों का तबादला किया गया था, जिनमें से आधे अफसरों का 17 दिनों के भीतर फिर से तबादला कर दिया गया। इसका एक उदाहरण आरएएस मुकेश चौधरी हैं, जिन्हें जैसलमेर जिला परिषद के सीईओ के पद पर तैनात किया गया था, लेकिन उसी दिन उन्हें पाली जिला परिषद का सीईओ बनाकर स्थानांतरित कर दिया गया। चौधरी ने जैसलमेर में अपनी नई पोस्टिंग का कार्यभार संभालते ही तबादले का आदेश प्राप्त कर लिया, जिससे उनके प्रशासनिक कार्य में रुकावट पैदा हो गई। Rajasthan आरएएस अफसरों के लगातार तबादले सरकार के फैसलों पर उठ रहे सवाल लगातार हो रहे तबादलों से यह स्पष्ट हो रहा है कि सरकार यह तय नहीं कर पा रही है कि किन अधिकारियों को किस पद पर तैनात करना है। आरएएस अफसरों के लिए यह स्थिति न केवल अस्थिरता पैदा कर रही है, बल्कि उनके कार्य पर भी प्रतिकूल असर डाल रही है। राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों का लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर तबादला करने से उनके कार्यक्षेत्र में विकास कार्यों में भी देरी हो रही है। इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या सरकार की रणनीति में कोई कमी है या फिर राज्य प्रशासनिक अधिकारियों के साथ किसी राजनीतिक समीकरण को साधने का प्रयास किया जा रहा है। प्रशासनिक अस्थिरता का असर लगातार हो रहे तबादलों का सीधा असर प्रशासनिक कार्यों पर पड़ रहा है। जब अधिकारी अपने पद पर स्थिर नहीं रह पाते हैं, तो उनका कार्यक्षेत्र और जिम्मेदारियां बार-बार बदलने के कारण विकास कार्यों में ठहराव आ जाता है। इससे जनता के लिए संचालित योजनाओं और नीतियों का प्रभाव भी कम हो जाता है। निष्कर्ष: एक स्थायी समाधान की जरूरत राजस्थान में लगातार हो रहे आरएएस अधिकारियों के तबादले से स्पष्ट है कि राज्य सरकार को एक स्थिर और संतुलित प्रशासनिक नीति की जरूरत है। यह केवल अधिकारियों के हित में नहीं, बल्कि राज्य के विकास और जनता के कल्याण के लिए भी आवश्यक है। लगातार स्थानांतरण से न केवल अधिकारियों के काम पर नकारात्मक असर पड़ता है, बल्कि राज्य की विकास प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है।

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