Author: UmaAbhi

अजमेर /( लीना शेवकानी )। राज्य की समस्त स्कूलों में प्रत्येक माह के तीसरे शनिवार को नो बैग डे के दौरान विधार्थियों को चेस खेलने का अवसर प्रदान किया जाएगा। इसकी शुरुआत गुरुवार को बीकानेर से की गई। इस अवसर पर राज्य स्तरीय समारोह में डॉ. कल्ला ने कहा कि 9 नवंबर से प्रदेश को समस्त स्कूलों में एक साथ यह कार्यक्रम प्रारंभ होगा। यह अपने आपमें इतिहास होगा। इससे बच्चों के मानसिक विकास को बाल मिलेगा उन्होंने कहा कि राजीव गांधी ग्रामीण ओलंपिक खेलों में ग्रामीण क्षेत्रों के 30 लाख खिलाड़ी जुड़े। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार शहरी क्षेत्र कि इन खेलों से स्कूल से चौम्पियन निकलेंगे और दुनिया में राजस्थान का नाम रोशन करेंगे। बीकानेर संभागीय आयुक्त डॉ. नीरज के. पवन ने कहा कि शतरंज से जिंदगी को समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि एक करोड़ घरों तक इस खेल की पहुंच होना बहुत बड़ी बदलाव लाएगा। स्थाई लोक अदालत के अध्यक्ष महेश शर्मा ने कहा कि देश में पहली बार बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और मजबूती के लिए राज्य सरकार द्वारा यह अभिनव पहल की गई है। शिक्षा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला ने मशाल जलाकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों को सौंपी । शिक्षा मंत्री ने में भी इन खेलों का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ‘चेस इन स्कूल! प्रारंभ होने से बच्चों में एकाग्रता, याददाश्त, अनुशासन, आत्मचिंतन बढ़ाने का मौका मिलेगा। डॉ कह्ला ने कहा कि मोबाइल के नकारात्मक प्रभाव के बीच यह पहल भावी पीढ़ी के मस्तिष्क को और रचनात्मक बनाने में मददगार हो सकेगी । उन्होंने कहा सांकेतिक रूप से स्कूली बच्चों के साथ शतरंज खेल कर कार्यक्रम की शुरुआत को। इस अवसर पर माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की अतिरिक्त निदेशक शिक्षा रचना भाटिया ने स्वागत उद्दोधन दिया । इस अवसर पर शतरंज के अंतराष्ट्रीय आर्बिटर एड. एस.एल. हर्ष सहित शिक्षक अभिभावक और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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अजमेर/( यतीश चनन्‍्द)। युवा मामलात, खेल तथा सूचना एवं जनसंपर्क राज्यमंत्री अशोक चांदना गुरूवार को बूंदी जिले के हिण्डोलीण्नैनवां क्षेत्र के दौरे पर रहे। इस दौरान राज्यमंत्री ने नैनवां के कोलाहेडा में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में अतिरिक्त कक्षा कक्ष तथा हिण्डोली क्षेत्र के सलावलिया गांव में सड़क निर्माण कार्य का शिलान्यास किया। राज्यमंत्री चांदना ने कोलाहेडा में आयोजित कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए कहा कि किसी भी क्षेत्र की पहचान उसके विकास से होती है। आने वाली पीढी का भविष्य संवारना हम सभी की जिम्मेदारी है। नैनवां कॉलेज के सरकारी होने से गांवों के बच्चों को भी उच्च शिक्षा के अवसर प्राप्त हो रहे है। वर्तमान में हर वर्ग को आरक्षण की सुविधा है और इसका लाभ उठाने के लिए शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा के क्षेत्र में हिण्डोली, नैनवां को आगे बढाया जा रहा है। चांदना ने कहा कि किसानों की खुशहाली के लिए कई कार्य क्षेत्र में करवाए जा रहे हैं किसानों । की सुविधा को देखते हुए सर्दी के मौसम में फसल के लिए दिन में बिजली मुहैया करवाई जा रही है। वर्तमान में 72 घंटों के भीतर ट्रांसफार्मर 350 करोड़ की लागत से मेडीकल कॉलेज का निर्माण करवाया जा रहा है, इससे क्षेत्र के लोगों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधाएं मिलेगी। युवामामलात एवं खेल मंत्री को बदल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि * सेलावलिया और कोलाहेडा में विकास कार्यों का शिलान्याय स्तर में बढोत्तरी होगी । उन्होंने कहा कि इन कार्यो की फलस्वरूप 42 साल बाद नैनवां उन्होंने कहा कि एक हजार करोड़ की चम्बल पेयजल परियोजना से क्षेत्र की पेयजल की समस्या का स्थाई समाधान किया जा रहा है। इस कार्य के पूरा होने से माता, बहिनों को सुविधा मिलेगी। उन्होंने कहा कि आगामी एक से डेढ महीने में नैनवां में मंडी का कार्य शुरू होगा। उन्होंने कहा कि यह ऐसा क्षेत्र है जहां तीन कृषि मंडियां है। उन्होंने कहा कि पूरे राज्य में हिण्डोली, नैनवां ग्रामीण विधानसभा में चहुमंखी विकास हुआ है। शिक्षा, चिकित्सा, विद्युत, पेजयल, सिंचाई की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर में वृद्धि के लिए 200 करोड़ की लागत के मिनीडेम और एनीकट स्वीकृत करवाए है, इनके पूर्ण होने से क्षेत्र के जल का तालाब आज लबालब भरा हुआ है। विद्यालयविकास के लिए 20 लाख की घोषणाःराज्यमंत्री चांदना ने कोलाहेडा के राजकीय विद्यालय में विकास कार्यों के लिए 20 लाख रूपए की घोषणा की । इस दौरान उन्होंने रोठेदा से जरखोदा तक साढ़े पांच करोड़ की लागत से सड़क बनवाने की घोषणा भी की । चांदना ने सलावलिया गांव में सड़क निर्माण कार्य के शिलान्यास के दौरान ग्रामीणों को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने गांव के चहुमुंखी विकास के लिए विकास कार्य स्वीकृत करवाने की बात कही | कार्यक्रम में बूंदी जिला प्रमुख चन्द्रावती कंवर, हिंडोली प्रधान कृष्णा माहेश्वरी, पूर्व विधायक सीएल प्रेमी, पूर्व जिला परिषद

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अभी हाल ही में भारतीय मूल के राजनेता ऋष सुनक ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। इस समाचार से स्वाभाविक रूप से भारतीय समाज में भी खुशी की लहर दौड़ गई। परंतु, ब्रिटेन के अलावा विश्व के अन्य 7 देशों में भी भारतीय मूल के राजनेताओं ने प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति का पद सम्भाला हुआ है। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं। इसी प्रकार भारतीय मूल के प्रविंद जगन्नाथ वर्तमान में मॉरिशस के प्रधानमंत्री हैं। भारतीय मूल के ही भरत जगदेव 2020 से गुयाना के उपराष्ट्रपति हैं। भारतीय मूल के एंटोनियो कास्टा वर्तमान में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री है । चंद्रिका प्रसाद उर्फचान संतोखी वर्तमान में सूरीनाम के राष्ट्रपति है। सिंगापुर की वर्तमान राष्ट्रपति हलीमा भी भारतीय मूल की हैं। गुयाना के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं। एक अन्य आलेख में ‘उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसारए अभी तक विश्व के 25 देशों में भारतीय मूल के लगभग 343 राजनेता किसी न किसी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक पद को सुशोभित कर चुके हैं। भारतीय मूल के नागरिकों ने १0 देशों में 34 बार प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली है। भारत के पड़ोसी देश मॉरिशस में 0 बार, सूरीनाम में 5, गयाना में 4, सिंगापुर, त्रिनिदाद और टोबैगो में 3.3 बार, पुर्तगाल में 2, फिजी, आयरलैंड और सेशेल्स में १.॥ बार भारतीय मूल के राजनेता प्रधानमंत्री रहे हैं। कनाडा में तो 9 प्रमुख राजनेता ऐसे हैं, जो भारतीय मूल के हैं। (इनमें 8राजनेता वहां की सरकार में भी शामिल हैं। लगभग यही स्थिति आज अमेरिका में भी पाई जा रही है। आज पूरे विश्व में 3.2 करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय निवास कर रहे हैं। करीब 25 लाख भारतीय प्रतिवर्ष भारत से अन्य देशों में प्रवास के लिए चले जाते हैं। विदेश में बस रहे भारतीयों ने भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करते हुए भारत की साख को न केवल मजबूत किया है बल्कि इसे बहुत विश्वसनीय भी बना दिया है। अप्रवासी भारतीयों ने अपनी कार्यशैली से अन्य देशों में स्वयं को तो स्थापित किया ही है, साथ ही इन देशों में अपने लिए कई अनगिनित उपलब्धियां भी अर्जित की हैं। इन देशों में निवास कर रहे अप्रवासी भारतीय वहां के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी भी बढ़ाते जा रहे हैं। तीन विभिन्न कालखंडों में भारतीय नागरिक विभिन्न देशों में प्रवास पर भेजे गए थे अथवा वे स्वयं गए थे | सबसे पहिले तो भारत पर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान लाखों की संख्या में भारतीय, श्रमिकों के तौर परए ब्रिटिश कालोनियों (ब्रिटेन द्वारा शासित देशों) में भेजे गए थे। आज इन देशों में भारतीयों की आगे आने वाली पीढायां बहुत प्रभावशाली बन गई हैं एवं इनमें से कुछ तो इन देशों में प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के पदों तक पहुंच गए हैं। जैसे, मारिशस में भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम मारिशस के प्रथम मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं छठे गवर्नरजनरल रहे हैं। आप सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायी थे एवं हिन्दी भाषा के पक्षधर और मारिशसत॒ में भारतीय संस्कृति के पोषक रहे हैं। आपके कार्यकाल में मारिशस में हिन्दी के पठन.पाठन में बहुत उन्नति हुई। आगे चलकर भारतीय मूल के ही अनिरुद्ध जगन्नाथ भी मारिशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहे। दक्षिणी अमेरिका के गयाना देश में भारतीय मूल के छेदी भरत जगन को देश के सबसे बड़े नेताओं में गिना जाता है। आपको वहां राष्ट्रपिता के रूप में देखा जाता है। आप ब्रिटिश गयाना के प्रधानमंत्री रहे एवं बाद में स्वतंत्र गयाना के राष्ट्रपति भी रहे । त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो में भारतीय मूल की कमला प्रसाद बिसेसर प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर चुकी हैं । इसी प्रकार भारतीय मूल के महेंद्र पाल चौधरी भी फिजी में प्रधानमंत्री बने थे। भारतीय मूल के वैवेल रामकलावन हिंद महासागर के द्वीपीय देश सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। 43 वर्ष बाद सेशेल्स में विपक्ष का कोई नेता राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ | इसी प्रकार कोस्टा पुर्तगाल, सूरीनाम एवं पूर्वी अफ्रीका के देशों में भी भारतीय मूल के कई व्यक्ति इन देशों के उच्चत्तम पदों पर पहुंचे हैं। भारतीय मूल के ही श्री देवन नायर सिंगापुर के राष्ट्रपति रह चुके हैं एवं आपने सिंगापुर में नेशनल ट्रेड यूनियन की स्थापना की थी। इसके बाद भारतीय मूल के ही श्री एस आर नाथन भी सिंगापुर के राष्ट्रपति रहे हैं। वर्ष 4999 से 204 तक के खंडकाल में आप इस पद पर बने रहे थे। भारत द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, एक बड़ी संख्या में भारतीय अन्य देशों में जाकर अप्रवासी भारतीय के तौर पर बस गए थे। उस समय पर इनमें से एक बहुत बड़ा वर्ग किसी न किसी प्रकार की तकनीकी दक्षता जैसे कारीगर, पलंबर, इलेक्ट्रिशियन, आदि हासिल किए हुए था। इन लोगों को ब्लू कोलर रोजगार आसानी से उपलब्ध हो रहे थे और ये भारतीय एक बड़ी संख्या में अधिकतर सऊदी अरब, ईहललात्कारियों की रिहाई : कहाँ तक ठीकपग्रे -४ (लीना शेवकानी) ::- बलात्कार और हत्या के अपराधियों को जिस तरह हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने बरी कर दिया है, उनके इस फैसले ने हमारी न्याय व्यवस्था, शासन-प्रशासन और देश की इज्जत को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। 202 में दिल्ली के छावला क्षेत्र में एक 9 वर्षीय लड़की के साथ तीन लोगों ने मिलकर बलात्कार कियाए पीट-पीटकर उसके अंग-भंग किए और उसकी लाश को ठिकाने लगा दिया। वे पकड़े गए। निचली अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। पिछले लगभग नौ साल से वे जेल काट रहे थे, क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका लगा रखी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहकर बरी कर दिया है कि उनके विरुद्ध न तो पुलिस ने पर्याप्त प्रमाण जुटाए हैं और न ही निचली अदालतों में गवाहों की परीक्षा ठीक से की गई है । निचली अदालतों के फैसलों को रद्द करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को जरुर है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के लगभग आधा दर्जन ऐसे फैसलों की जानकारी मुझे है, जिन्हें बाद में इसी न्यायालय ने रद कर दिया है। इसीलिए इस मामले में इस फैसले को अंतिम और उत्तम मान लेने का कोई कारण नहीं है। इस पर देश के प्रबुद्ध लोगों को सवाल जरुर उठाने चाहिए। पहला सवाल…

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भारत में डिजिटल ऑनलाइन सेवाएं तथा यूपीआई लेनदेन मेंए पिछले कई वर्षो में बड़ी तेजी के साथ विस्तार हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूपीआई लेनदेन ने रिकॉर्ड 2.। लाख करोड़ का आंकड़ा, छू लिया है। इसके साथ ही धोखाधड़ी के मामले भी चार गुना ज्यादा रफ्तार से बढे हैं पिछले । । साल में अपराधों में 364 फीसदी की वृद्धि हुई है। जो पिछले वर्ष की तुलना से 4 गुना ज्यादा है। इसी तरह एनसीआरटी के पोर्टल पर कुल साइबर अपराधों की संख्या 2,37,658की संख्या पर पहुंच गई है। जो पिछले वर्ष की तुलना में ढाई गुना बढ़ गई है। भारत में डिजिटल प्लेटफॉर्मस के द्वारा हर सरकारी कामकाज, लेनदेन, ई-कॉमर्स, ईसर्विसेज, बड़ी तेजी के साथ आम आदमी तक पहुंच रही हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें अनिवार्य करने का नियम बनाये हैं। यह सभी सेवाएं ऑनलाइन अनिवार्य किए जाने से ऑनलाइन अपराध भी बड़ी तेजी के साथ बढे हैं। पिछले वर्षों में अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। सरकारें कान में रुई डाल कर बैठी हुई है। साइबर क्राइम को पकड़ पाने में साइबर क्राइम के लोग असफल हैं। अपराधी उनसे कई कदम हैं। अपराध होने के बाद क्राइम विभाग के लोग अनुसंधान करके कुछ आगे बढ़ते हैं। उन से 4 गुना ज्यादा अपराधी बढ़ जाते हैं । लोगों को सरकार ने अब जनता में भी नाराजी देखने को मिल रही डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए केंद्र सरकार को जो नियम कानून कई वर्षों पूर्व बना लेने चाहिए थे। वह आज तक नहीं बन पाए हैं। डिजिटल तकनीकी भारत के लिए नई व्यवस्था थी। इसके लिए सरकार जब अनिवार्य करने जा रही थी । तब आम लोगों भी प्रशिक्षित स्टाफनहीं है। शिकायत होने के बाद भी लोगों को कोई निजात नहीं मिलती है। सरकार जोर-शोर से प्रचारप्रसार के लिए बड़े-बड़े दावे करती है। लेकिन स्थिति उसके उलट होती है। साइबर अपराधों से निपटने के लिए जब केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास पर्याप्त संसाधन और कर्मचारी ही नहीं है। उसके बाद भी आम की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी थी। सारी चीजें ऑनलाइन कर दी गईएलेकिन आम जनता को ना तो उसका कोई प्रशिक्षण दिया गया । नाही नुकसान या गलती होने पर उन्हें कानूनी संरक्षण दिया गया। जिसके कारण आम आदमी का जीना आज मुहाल हो गया है। हर तकनीकी जनता को नुकसान के इस दलदल में फेंक देना, कोई समझदारी का काम नहीं है। आज भी भारत में डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से जो अपराधिक घटनाएं हो रही है। उसको रोकने के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के लोगों का शोषण कर रही हैं। का उपयोग आदमी की उन्नतिए विकास और बेहतरी के लिए होना चाहिए। लेकिन डिजीटल प्लेटफार्म जी-का जंजाल बन गया है। वह भी तब जब सरकार खुद ही डिजिटल प्लेटफॉर्म को अनिवार्य करके लोगों को मुसीबत में फंसा रही हो, तो इसमें सरकार को जिम्मेदारी लेना होगी । जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वह सरकारी हैं। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस के माध्यम से ऑनलाइन लेनदेन एवं साइबर क्राइम के इससे कई गुना ज्यादा मामले हैं। छोट-मोटे मामले में लोग शिकायतें दर्ज नहीं कराते हैं साइबर । अपराधों के लिए जो सेल बनाए गए हैं। उनमें अपराध दर्ज नहीं किए जाते हैं। साइबर क्राइम की जांच एकाधिकार और बाजारवाद से शोषित कर रहे हैं। आम जनता का बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा है । सरकार आंख बंद करके बैठी हुई है। महंगाई बेरोजगारी के इस युग में अब आम जनता का गुस्सा अब फूटने लगा है। कहावत हैए गरीब की लुगाई सब की भौजाई। यही हालत आज जनता की हो गई है। चारों ओर से जनता लुट रही है। लेकिन उसको बचाने के लिए ना तो केंद्र सरकार आगे आ रही है। नाही राज्य सरकारें आगे आ रही हैं। आम आदमी लगातार लुट-पिट रहा है। आम जनता लगातार परेशान होकर आत्म हत्या करने लगा है। सरकार में संवेदनशीलता नहीं भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है । इस स्थिति में करने के लिए सरकार के पास 0 फ़ीसदी है।यह चिंता का विषय है।

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एक दादा जी मृत्यु शय्या पर लेटे थे और अंतिम सांसे चल रही थी, परिवार भरा पूरा था उनके एक नाती था जो शादी लायक था, दादा जी की इच्छा थी कि उसकी शादी होकर उन्हें पंति का मुँह देखने मिल जाए। अभी नाती की शादी नहीं हुई और पंति का मुंह देखना हैं । अरे दादा आप मरने जा रहे ही हैं, एक दिन दो दिन के मेहमान हो यह कैसे संभव होगा नहीं मुझे चाहिए नहीं तो हमारे प्राण नहीं निकलेंगे और यदि मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई तो मैं भूत बनकर परेशान करूँगा। दादा के पुत्र ने कहा पिता जी अभी शादी करेंगे उसके बाद ‘उसे कुछ समय देना पड़ेगा जब उसको; पत्नी गर्भवती होगी उसे नौ माह का समय देना होगा तब तक आप रहेंगे नहीं | मैं कुछ नहीं समझता, मुझे पंति चाहिए ठीक हें नाती की शादी करके उसके साथ पंति भी रेडीमेड आ जायेगा नहीं ऐसा नहीं मुझे तो ओरिजिनल चाहिए। और उसके चक्कर में दादा जी भी चले गए और न पंति देख पाए। मोरबी काण्ड क्या इस समय पूरे देश में विकास के नाम पर रेडी मेड कार्यक्रम हो रहे हैं प्रधान नौकर को लगने लगा हैं की अगला कार्यकाल मिलेगा या नहीं इसके लिए मुझे जितना अधिक शिलान्यास, उदघाटन करके समय से पूर्व मुझे पंति का मुंह देखना हैं । बच्चे पैदा करने शादी करना जररी हैं जो वैध हो, उसके बाद बच्चा हो या न हो इसकी कोई गारंटी नहीं। प्रधान नौकर हर गर्भ का गर्भपात करा कर उस बच्चे का मुंह देखना चाह रहे हैं। वे जब जहाँ भी जाए अजरामर होकर जाना चाहते हैं।इस धरा पर कितने बड़े बड़े सम्राट समां गए, काल के गाल में गए कौन को कौन कितने दिन याद रखता हैं। और याद रखने से कौन को क्‍या ‘फायदा होगा। सड़के बनी नहीं या जितना समय लगना रहता हैं उससे पहले उद्घाटन उद्घाटन के बाद सड़कें उबड गयी, समय पूर्व शिशु के जन्मने से उसे वेंट्रिलाटेर पर रखा जाता हैं उसके बाद कोई भरोसा नहीं रिश्वत, मुरब्बत और गफलत का वीजा वह जिन्दा रहेगा या नहीं पर बच्चा मिल गया, उसे बल्दियत मिल गयी । मोरबी पुल काण्ड रिश्वत का पूरा खेल हैं उसमे इतनी अधिक खामियां थी या हैं जिसको नजर अंदाज़ नहीं किया जा सकता। उसके बाद गफलत यह हुई की अनुभवहीन लोगों से कार्य कार्य गया और निर्माण कर्ता के साथ ऊपरी स्तर पर मुरब्बत की गयी कि यह अपना आदमी हैं छोडो कोई कमी भी होगी वो बाद में पूरी है जाएँगी। समय पूर्व निर्माण यानी गर्भपात हुआ और उसका परिणाम सामने आया। प्रजाकार्य स्वमेव पश्चयये (322 यथावसरमसंग दव कारयेत (33) दुदुरशो हिं राजा कार्याकार्य विपर्यसमासन्नेह कार्य द्विषा तमाति संधानिया:श्र भवति ( 34 ) वेद्येब्‌ श्रीमर्ता व्याधिवर्धनआदिव नियोगिषु भर्तव्यसनादपरों नास्ति जीवनोपाय (35 ) राजा प्रजा कार्यग्रिष्पपालन व दुष्टनिग्रह आदि स्वयं ही विचारे व अमात्य आदि के भरोसे न छोड़े, अन्यथा रिश्वत खोरी और पक्षपात वगैरह के कारण प्रजा पीडति होती हैं। राजा मौके मौके पर अपना राजद्वार खुला रखे जिससे प्रजा उसका दर्शन सुलभता से कर सके केवल एक मौका छोड़कर बाकी समय में राजा अपना द्वार सदा सुरक्षित रखे और अवसर आने पर भी प्रजा को अपना दर्शन नदेवे, निश्चय से प्रजा को दर्शन न देने वाले राजा का कार्य अधिकारी वर्ग स्वार्थ-वश बिगाड़ देते हैं और शत्रु लोग भी उससे बगावत करने तत्पर हो जाते हैं, अत: प्रजा को राजा के दर्शन सरलता से होना चाहिए। जिस प्रकार धनिकों की बीमारी बढ़ाना वैद्यों की जीविका का कोई दूसरा उपाय नहीं उसी प्रकार राजा को व्यसनों में फंसाने के सिवायए मंत्री आदि अधिकारीयों की जीविका का भी कोई दूसरा उपाय नहीं हैं। जो राजा बलात्कारपूर्वक प्रजा से धन ग्रहण कर्ता हैं, उसका वह अन्याय दृपूर्ण आर्थिक लाभ महल को नष्ट करके लोहे कीले के लाभ समान हानिकारक हैं। इस काण्ड में सैकड़ों लोग मरे और कई घायल हैं।

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अब देश में न तो संविधान सर्वोपरी रहा है और न ही राजनीति के माध्यम से जनसेवा अब सबसे सर्वोपरी हो गया है चुनावी जीतना….. और उसके लिए जो भी करना पड़े सब के लिए आज के राजनेता तैयार है, इसका ताजा उदाहरण है सारे देश में लागू किया जाने वाली सामान्य नागरिक संहिता (यूसीसी), जिसे तत्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए गुजरात में लागू करने की माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषणा की गई है और गुजरात के मुख्यमंत्री को इसे लागू करने के तरीकों पर विचार करने के लिए एक समिति गठित करने की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई है, अब यह हर किसी की समझ बाहर है कि सारे देश के लिए लागू होने वाला कानून एक चुनावी राज्य विशेष में कैसे लागू किया जा सकता है, प्रधानमंत्री जी की इस घोषणा पर कई सवाल खड़े किए जा रहे है, उल्लेखनीय है कि मोदी जी की सरकार ने ही समान नागरिक संहिता तथा सीए, (नागरिक संशोधन अधिनियम) को पूरे देश में लागू करने की घोषणा कर रखी है तथा इनके बारे में राज्यों की सरकारों से चर्चा भी जारी है। प्रधानमंत्री जी की इस चुनावी घोषणा पर सबसे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ही सवाल उठाए है तथा कहा है कि जो कानून पूरे देश में लागू करना प्रस्तावित है, वह चुनावी लाभ के लिए किसी एक राज्य में लागू कैसे किया होना है। इसकी जगह प्रधानमंत्री जी को यथाशीघ्र पूरे देश में इस प्रस्तावित कानून को वैधानिक दर्जा देकर लागू करने की पहल करना चाहिए, जिससे पूरे देश के नागरिक अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके । प्रधानमंत्री जी इन दिनों गुजरात के तीन दिनी चुनावी दौरे पर हैए इनके इसी दौरे के कारण चुनाव आयोग ने गुजरात विधानसभा के चुनावों की विधिवत घोषणा रोक रखी है, जबकि गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के चुनावों की तिथियों व कार्यक्रम की घोषणा कितने दिन पूर्व ही कर दी गई । वैसे राजनीतिक प्रेक्षकों का मौजूदा जा सकता है, उत्तराखण्ड में भी चुनाव के समय माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा इसी तरह की घोषणा की गई थी, जो चुनावों के बाद भुला दी गई, अब गुजरात में भी यही हालातों पर कहना है कि गुजरात के चुनावों को भाजपा ने इससे पहले कभी इतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितना कि इस बार लिया जा रहा है, प्रेक्षकों का कहना है कि प्रत्तातित कानून को चुनावी मुद्दा बनाना कहाँ तक उचित हाल ही में केन्द्र सरकार को गुजरात चुनावों के बारे में मिली गोपनीय रिपोर्ट के बाद भाजपा ने गुजरात के प्रति गंभीर रूख अपनाया है, रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी की बढ़त बताई जा रही है, जिसके कारण प्रधानमंत्री जी की चिंताएं बढ़ गई है और वे सब काम छोड़कर गुजरात के प्रचार कार्य में व्यस्त हो गए है, चूंकि गुजरात प्रधानमंत्री जी का गृह प्रदेश है और वहां गैर भाजपा सरकार यदि बन जाती है तो सारे देश में उसका संदेश जाएगा, जिससे भाजपा संकट में आ सकती है, इसलिए प्रधानमंत्री जी इस दिशा में काफी सक्रीय हो गए है और उन्हीं की मंशा के अनुसार चुनाव आयोग ने गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान भी रोक रखा है, जो अब नवम्बर के पहले हफ्ते में ही संभावित है। किंतु फिर वहीं सवाल…. वह यह कि आखिर पूरे देश पर लागू किए जाने वाले या प्रस्तावित कानूनों को किसी राज्य विशेष के लिए चुनावी मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? और सम्बंधित चुनावी राज्य के मुख्यमंत्री को उक्त कानून लागू करवाने के लिए समिति गठित करने का अधिकार क्‍यों दिया गया है? क्‍या इसे राजनीति की चरम सीमा नहीं कहा जाएगा? लेकिल कहा क्‍या जाए? अभी तक तो सिद्ध ‘प्यार व युद्ध’ के लिए ही सब कुछ जायज था किंतु अब उसमें लगता है राजनीति को भी जोड़ दिया गया है, इसीलिए अपने राजनीतिक मकसद की पूर्ति हेतु राजनीति का हर तरीके से उपयोग .दुरूपयोग किया जा रहा है। धन्य है, हमारी राजनीति और उसके धारक हमारे राजनेता?

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अजमेर /( यतीश चनन्‍्द)। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार की महत्वपूर्ण जनकल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ-साथ पारदर्शी, संवेददशील एवं जवाबदेह सुशासन में स्वयंसेवी संगठनों एवं सिविल सोसायटी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। उन्होंने कहा कि आवश्यकता के अनुसार नवाचार के लिए दिए गए मूल्यवान एवं सारगर्भित सुझावों को आगामी बजट में स्थान देने का पूरा प्रयास किया जाएगा। इनके सुझावों के आधार पर हम ऐसा बजट लाने का प्रयास करेंगे जो प्रदेश के समग्र विकास को गति देने वाला हो। राज्य सरकार इस बार का बजट युवाओं एवं छात्रों की भावना के अनुरूप तैयार करने जा रही है। में शामिल कर क्रियान्वित करने के हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। गहलोत ने कहा कि समाज के सभी वर्गों की भागीदारी से ही प्रदेश का समग्र विकास होगा। गहलोत ने कहा कि सामाजिक संगठनों ने पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, खाद्य सुरक्षा, रोजगार, पोषण, पारदर्शिता, कचरा प्रबंधन, सड़क सुरक्षा, नशा मुक्ति, उपभोक्ता हितों के संरक्षण, लैंगिक एवं सामाजिक समानता जैसे बुनियादी मुद्दों पर निरन्तर उपयोगी फीडबैक देने का काम किया है। गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा अगले बजट के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। 2 घंटों में ही प्रदेशवासियों से लगभग 2 हजार सुझाव प्राप्त हो चुके हैं। स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों गहलोत ने सचिवालय में स्वयंसेवी संगठनों, सिविल सोसायटी तथा उपभोक्ता फोरम के प्रतिनिधियों के साथ बजट पूर्व संवाद को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने हमेशा सामाजिक सुरक्षा से जड़े कार्यों में प्रगतिशील सोच के साथ फैसले लिये हैं। प्रदेश में जनकल्याणकारी योजनाओं के लागू होने के चलते ही गरीब एवं वंचित वर्ग का जीवन स्तर ऊपर उठा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार जनकल्याणकारी बजट तैयार करने में स्वयंसेवी संगठनों तथा सिविल सोसायटी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है ताकि हर वर्ग तक बजट का लाभ वास्तविक रूप में पहुंच सके । मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकारी योजनाओं एवं नीतियों के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में विभिन्न संगठनों द्वारा दिए गए फीडबैक की महवपूर्ण भूमिका होती ने कोरोना के बेहतरीन प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा उठाये गए कदमों की खुलकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार के प्रबंधन की देशविदेश में सराहना हुई है। इससे पहले अतिरिक्त मुख्य सचिव ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज अभय कुमार ने बैठक की शुरूआत में सभी का स्वागत किया । उन्होंने कहा कि प्रतिभागियों से प्राप्त सुझावों पर गंभीरता से विचार कर उन्हें आगामी बजट में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। बैठक में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए। इसमें सड़क दुर्घटना पीड़ितों को जल्द से जल्द राहत पहुंचाने व उनकी जीवन रक्षा के लिए प्रावधान, मूक-बधिर बच्चों की शिक्षा को प्रोत्साहन, व्यवसायिक प्रशिक्षण का प्रबंध, दिव्यांग बच्चों के लिए विश्वविद्यालय, घुमंतू जातियों को राज्य है। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवी संगठनों, सिविल सोसायटी तथा उपभोक्ता फेरम के प्रतिनिधियों के साथ हुई चर्चा के दौरान कई महत्त्वपूर्ण सुझाव आए हैं, जिन्हें बजट सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ देने के लिए उनका आर्थिक व सामाजिक सर्वेक्षण तथा स्थाई आवास का प्रबंध, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने – प्रदेश के सम्रग् विकास में – अगला बजट होगा युवाओं – महत्वपूर्ण तुझावों का का सहयोग महत्वपूर्ण सभी वर्गों की भ्रागीदारी जरूरी एवंछात्रों का समर्पित विश्लेषण कर किया जाएगा बजट में शामिल के लिए उचित काउंसलिंग की उपलब्धता, जवाबदेही कानून, स्कूली शिक्षा में ही बच्चों को कानून की पढ़ाई से जोड़ने, महिलाओं से जुड़े स्टार्ट-अप्स को प्रोत्साहन देने, प्रशासन शहरों के संग व प्रशासन गांवों के संग अभियानों में जनसंगठन की भागीदारी सुनिश्चित करने आदि से संबंधित सुझाव प्राप्त हुए। मुख्य सचिव उषा शर्मा ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस वर्ष बजट आने से काफी पहले बजट पूर्व संवाद आयोजित किए जा रहे हैं। इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा, उद्योग मंत्री शकुन्तला रावत, पंचायतीराज मंत्री रमेश मीणा, जलदाय मंत्री डॉ. महेश जोशी, सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना, कृषि मंत्री लालचंद कटारिया सहित मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्य, प्रमुख शासन सचिव वित्त अखिल अरोरा, मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. गोविन्द शर्मा सहित विभिन्न विभागों के| वरिष्ठ अधिकारी, प्रदेशभर से आए स्वयंसेवी संगठनों, सिविल सोसायटी एवं उपभोक्ता फोरम के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

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यदि अगर मगर की घिसी और बेजान भाषा का उपयोग करके बला टालदी जाए, तो बैक है, सिविल सोसायटी के सुझावों की भूमिका अहमः मस्व्यमंत्री लेकिन हमारे हुक्मरानों में अभी भी सच को सच मान लेने की जूरा सी भी हिम्मत बाकी हो, तो पंफशेंश. * मोरबी पुल के हादसे के असली जिम्मेदार लोगों पर न सिर्फएफ आई आर दाखिल होनी चाहिए, बल्कि उनका हथकड़ी जुलूस भी निकाला जाना चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह के बेहरम लोगों की इस प्रकार के काम या आपराधिक लापरवाही करने से रूह कांपे । कई तर्क शास्त्री कह सकते हैं एक लोकतांत्रिक देश में बिना’ कोर्ट अदालत जाए किसी अंतिम नतीजे पर कैसे पहुंचा जा सकता है? ऐसे कानून के रखवाले लोग यह, तो बताएं कि कानून अपनी जगह है, लेकिन मानवीय जिम्मेदारी और संवेदना भी सरकार की ही होती है। बिलकिस बानू का केस भी गुजरात में हाल में ही हुआ था। तमाम हत्यारों और बलात्कारियों को कानून की आड़ लेकर पतली गली से सुरक्षित जाने ही नहीं दिया गया, बल्कि उनके लिए एक शर्म नाक सुरक्षा कवच भी बना दिया गया। मोरबी का पुल अधिकतम 50 लोगों का भार सह सकता था, लेकिन पर्व को भी धंधा बनाने में उस्ताद लोगों ने छठ पर्व की पूजा के दिन लगभग 500 टिकट प्रति व्यक्ति 7 रुपए में बेच दिए। इस पुल को झूलता हुआ पुल भी कहा जाता है। अब 500 लोगों के भार से उसे वैसे भी झूलना ही था। ऐसे में तो उसे मौत का पुल क्यों नहीं कहा जाए? बताया जा रहा है कि उक्त पुल लगभग 200 साल पुराना है, और इसमें पहले भी रिपेयरिंग की जाती रही है, लेकिन इस बार कहते हैं एक घड़ी बनाने वाली कंपनी को पुल का केबल बनाने का काम दे दिया गया। यह तो वैसा ही हुआ कि जैसे किसी प्लम्बर से गिरती दीवारें सुधर वालो । याद रखा जाना चाहिए कि जब उक्त पुल बनकर तैयार हुआ था, तब इसकी अधिकतम भारत संख्या 5 थीए जो आगे चलकर 00 कर दी गई। तब प्रति व्यक्ति फीस भी एक रुपया थी । उस पुल पर से मच्छू नदी के दृश्यों का आनंद लिया जाता रहा साथ ही सूर्य को अध्य भी चढ़ाया जाता रहा । सवाल है कि अधिकतम सौ की जगह 500 लोगों के पुल पर चढ़ जाने की अनुमति किसने और क्‍यों दी? बेशर्म तर्क दिया जा रहा है कि छठ पर्व पर सूर्य की आराधना करने के लिए आने वाली भीड़ को देखते हुए ऐसा पड़ा । क्या गजब! लोग मरते होंए तो मरते रहें। अपन तो नोट छापो । बताया जाता है कि इस पुल की मरम्मत के लिए तय समय सीमा से पहले ही उसे खोल दिया गया। इसका ठेका ओरेवा कम्पनी को दिया गया था, जो ई साइकिल भी बनाती है। संबंधित विभाग ने मुआयना किए बिना कंपनी को पुल खोले जाने का आदेश दे दिया। स्थानीय प्रशासन से सवाल बनता ही है कि उसने ठीक किए पुल की फाइनल जांच की थी या नहीं । मृतकों को छह लाख और घायलों को पचास हजार की सहायता देकर पिंड छुड़ा लिया गया है, लेकिन बताया जाता है कि पुल के नीचे इतनी गाद और नुकीले पत्थर थे कि राम जाने मरने वालों का आंकड़ा कितना होगा। यह पता नहीं लगाया जा सकता कि मौत और घायलों की सही संख्या कितनी है। अक्सर इस तरह के सही आंकड़े गोल माल कर दिए जाते हैं। इतिहास गवाह है कि इस तरह कीत्रासदियों की जिम्मेदारी तय नहीं की गई और तत्काल दोषियों के खिलाफएक्शन नहीं लिया गया, तो जनता को एक्शन लेना पड़ता है। मात्र अस्मिता और विकास के मॉडल के नाम पर आम जन भावना का कब तक बेजा फायदा उठाया जा सकता है। वैसे ही गुजरात में अभी तक विधान सभा चुनाव कार्यक्रम घोषित न किए जाने से भाजपा के साथ चुनाव आयोग कीतरफ भी शंका की | ऊंगली उठ रही है। भले आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल चुनावी वादों के मुफ्त और बेमौसम ककड़ी भुट्टे बांट रहे हों लेकिन ज्यादा से ज्यादा वे भाजपा का रंग ही फीका कर पाएंगे ग्रेस कां के लिए तो यह फायदे का सौदा है। वह तो पिछले 2047 के विधान सभा चनाव में ही सरकार बनाने से मात्र 9 सीटों से दूर रह गई थी। इस बात की पूरी संभावना क्‍यों नहीं मानी जाए कि गुजरात में वोटर्स का गुस्सा एक ज्वाला मुखी का रूप लेता जा रहा है और जाहिर| है कोई भी ज्वालामुखी एकदम से नहीं फटता। अक्सर पहले उसमें से धुएं की मोटी लकीरें निकलती हैं जो अलार्म होती हैं।

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अजमेर /संवाददाता। जिला कलक्टर अंश दीप ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि आगामी दिनों में आने वाले चेटीचंड, रामनवमी और महावीर जयंती जुलूसों से पूर्व सभी व्यवस्थाएं पूर्ण करें| विभाग १5 मार्च तक सभी काम पूर्ण करें। जुलूस के मार्गों का निरीक्षण करें। आगामी दिनों में 23 मार्च को चेटीचण्ड, 30 मार्च को रामनवमी और 3 अप्रैल को महावीर जयंती जुलूसों को लेकर तैयारी बैठक आयोजित की गई। बैठक में जिला कलक्टर श्री अंश दीप ने विभागों को निर्देश दिए कि जुलूसों की तैयारी समय पर पूर्ण करें। उन्होंने नगर निगम तथा सार्वजनिक निर्माण विभाग को जुलूस के रूट पर सड़क के पैचेज का दुरुस्तिकरण तथा खुली नालियो पर फेरो कवर लगाया जाने, मजबूत बैरिकेड्स तथा साफ-सफाई व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। जन स्वास्थ्य विभाग जलापूर्ति 4 बजे पूर्व कराना सुनिश्चित करे। साथ ही रास्ते में आने वाली पाइपलाइन्स में लीकेज ना हो । विद्युत विभाग ढीले एवं लटकते तारो को सही करवाए एवं बिजली आपूर्ति बाधित ना हो सुनिश्चित करे । चिकित्सा विभाग द्वारा एम्बुलेंस, चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ एवं औषधियों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए। पुलिस एवं यातायात विभाग द्वारा जुलूस के दौरान कानून, शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखी जाने तथा यातायात सुचारू बनाए रखने के निर्देश दिए। जुलूस शांति एवं सौहार्दपूर्ण रहें । इसके लिए लॉ एंड ऑर्डर का पालन करें | इसी तरह जुलूस की अनुमति, डीजे, सुरक्षा व्यवस्था में भी नियमों की पालना की जाए। बैठक में विधायक वासुदेव देवनानी एवं विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों ने भी सुझाव दिए। श्री देवनानी ने कहा कि जुलूसों के रूटस पर अधिकारी और संस्थाओं के प्रतिनिधि सामूहिक रूप से दौरा कर व्यवस्थाएं देखें । जुलूस के दौरान सफई, बिजली, पेयजल सप्लाई और अन्य व्यवस्थाओं का विशेष ध्यान रखा जाए। यह ऐतिहासिक जुलूस है और यहां से पूरी दुनिया में संदेश जाता है। सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद हों। इस अवसर पर सेण्ट्रल सिंधी महासमिति के अध्यक्ष नरेश शाहनी , सिंधी चेटीचण्ड मेला कमेटी के दयाल, चेटीचण्ड मेला कमेटी के संयोजक जयकिशन पारवानी, पुलिस अधीक्षक चूनाराम जाट, अतिरिक्त जिला कलक्टर भावना गर्ग एवं विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।

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कोरोना की रफ्तार सुस्त पड़ते ही एक नए एडोनावायरस की धमक ने एक बार फिर चिन्ता बढ़ा दी है।इसका अब तक ज्यादा असर केवल प.बंगाल में ही दिखा है। लेकिन पुणे और दूसरी जगहों से ऐसे ही लक्षणों के मरीज मिलना मेडिकल विशेषज्ञों के लिए नई परेशानी का सबब बन सकता है। हालाकि यह सच है कि हर वक्त किसी न किसी वायरस के साथ जीना पड़ता है जो आम है लेकिन जब ये खतरनाक रूप या महामारी में तब्दील होकर घातक हो जाते हैं तो स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन जाते हैं। हमने कोविड के दौरान वायरस के ऐसे ही रूप को देखा जिसने सौ साल में आने वाली महामारी बनकर कैसी तबाही मचाई। आगे चलकर यह कितना फैलेगा और कैसे रोक पाएंगे इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा। लेकिन जैसा कि अमूमन हर संक्रामक बीमारी में होता है कि बचाव ही सुरक्षा है वाला तरीका अपनाना होगा। इसका असर सबसे ज्यादा बच्चों में पड़ता है जिसकी एक खास वजह भी सामने आईं लेकिन सभी उप्र के लोगों को भी प्रभावित करता है। हाँ, जद में छोटे-छोटे बच्चे इसलिए आसानी से आते हैं क्योंकि वो खुद दूसरे बड़े या छोटे के संपर्क में रहते हैं और मुंह में कुछ भी डाल लेना तथा हाथ न धोना ज्यादा तेज असर करता है। जन्म के समय कम वजन औरहदय रोग के पीड़ित भी जल्द शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा सांस की बीमारी वालेबच्चों पर भी एडोनावायरस का तेज असर देखा गया है। वैसे भी बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैइसीलिए उनके लिए घातक होता सकता है। एडोनावायरस के लक्षण भी कोरोना से काफी कुछ मिलते हैं लेकिन सुकून की बात है कि यह उसका वैरिएण्ट नहीं है। इसे वायरल फ्लू की तरह माना जाता है जिसका कोई विशेष इलाज नहीं है। जरा सी सतर्कता और सावधानी से इससे डेरे बिना घर पर भी इसकेहल्के लक्षणों का कोरोना की तरहइलाज किया जा सकता है। जीवन रक्षक घोल यानी ओआरएस और अच्छे, ताजे व स्वस्थ आहार के साथ इसके इलाज की सलाह दी जाती है। लेकिन सतर्कता ज्यादा जरूरी है। जब तीन दिनों तक बुखार न उतरे और रोगी में सुधार न दिखे बल्कि जल्दी-जल्दी सांस लेने लगे, भूख भी कम हो जाए पेशाब भी रोजाना की तुलना में कम लगे तो जरूर चिन्ता की बात है। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए मास्क बेहतर बचाव क साधन है। चिकित्सक भी मास्क के अलावा स्वच्छता संबंधी वो सारे उपाय के लिए कहते हैं जो कि कोविड के दौरान जरूरी थे। जैसे बार-बार हाथ धोना, संक्रमण की स्थिति में दूरी बनाए रखना और प्रभावित होने पर क्वारंटीन होना। अब तक लक्षणों से जो सामने आया है उसमें 3 दिन से ज्यादा समय तक बुखार व खांसी चलते रहना, गले में खराश, नाक बहना, उल्टी, दस्त पेट दर्द, तेज-तेज सांस लेना, गुलाबी आंखें हो जाना, कान के संक्रमण यानी ओटिटिस मीडिया जिसमें कान के परदे के पीछे हवा वाले स्थान जो कान के बीचों बीच होता है में संक्रमण होना, सूजी हुईं लसीका ग्रंेथियां, सीने में ठंड यानी ब्रोंकाइटिस, न्‍्यूमोनिया भी एडोनावायरस का कारण हो सकता है। इसका असर 3 से 5 दिनों तक दिखता है लेकिन पर दो सप्ताह तक भी मरीज बीमार रह सकता है। ऐसे में लगातार खांसी या किसी भी संभावित लक्षण की दशा में तुरंत चिकित्सक की सलाह लेना जरूरी है। एडेनोवायरस संक्रमण के इलाज के लिए कोई सटीक एंटीवायरल दवा भी अब तक नहीं होने से इसको रोकने के लिए आम दवाएं ही दी जाती हैं। लेकिन गंभीरता की स्थिति में चिकित्सक तेज असरकारक दवाएं लक्षण के हिसाब से देते हैं। ऐसे में लक्षणों की अनदेखी भारी पड़ सकती है। अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों की श्रंखला में चौथे ऋ्रम पर शुमार क्लीवलैंड क्लिनिक जिसे कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी और पहले चेहरा प्रत्यारोपण करने का श्रेय भी प्राप्त है के अनुसार एडेनोबायरस एक सामान्य वायरस है जो कई प्रकार के सर्दी या फ्लू जैसे संक्रमण का कारण बनते हैं। यह मध्यम आकार का एक अल्प विकसित वायरस है जो कई तरह के संक्रमण पैदा कर सकता है। इसमें एक आइकोसाहेड्रल न्यूक्लियोकैप्सिड यानी वायरल प्रोटीन का कोट है जिससे जीनोम यानी आनुवांशिक संरचना का पता लग सकता है। इससे हम पता लगा सकते हैं कि आखिर उसका कैसा व्यवहार है? जब तक यह जानकारी नहीं होगी तब तक जांच, इलाज, टीका किसी की खोज नहीं हो सकती है। शोधकर्ताओं ने लगभग 50 ऐसे एडेनोवायरस के वैरिएण्ट पहचाने हैं जो मनुष्यों को संक्रमित कर सकते है। उपलब्ध जानकारी से पता चलता हैकि इस वायरस का संक्रमण यूं तो पूरे वर्ष होता है जो सर्दी और बसंत के दौरान ज्यादा होता है। लेकिन प.बंगाल में ही यह क्‍यों बढ़ रहा है? जबकि वहां मौसम दूसरे राज्यों के मुकाबले गर्म होता है। इस पर अभी जानकारियां जुटाई जा रही हैं। इस बीच इसी 9 फरवरी को 6महीने के लड़के व ढ़ाई साल की लड़की के अलावा 23 फरवरी को १3 साली की एक बच्ची की मौत के अलावा अन्य शिशुओं की गैर आधिकारिक मौतों से वहां का स्वास्थ्य अमला हाईं एलर्ट पर है। जिस तरह से शिशु रोगियों की संख्या और अस्पताल के शिशुवार्ड मेंमरीजों की भीड़बढ़रही हैवह॒चिन्ताजनक है। हालाकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की राष्ट्रीय हैजा और आंत्र रोग संस्थान में प्रभावित मरीजों के सैंपल भेजे गए जिनकी हैं रिपोर्ट के बाद ही काफी कुछ साफ हो पाएगा। लेकिन प. बंगाल के धरातल पर इस वायरस को लेकर जोस्थितियां बन रही हैं उससे समय रहते ही चेत जाने में बुराई क्या है। कोरोना के दौरानजिस तरहके हालातों का सामना करदेश वापस उठ खड़ा हुआ हैऐसे में यदि कोई चुनौती जो बनती दिख रही है उससे चेतने और निपटने के लिए पहले से ही तैयार रहना ही बड़ा बचाव दिखता है। वैसे भी कोविड-9 ने दुनिया को जो सीख दी है उसके बाद भी अगर लोग खुद भी आँखें मूंदकर लापरवाही बरतते हैं तो सरकार कितना कर पाएगी। सरकार को भी जल्द ही कम से कम छोटे-छोटे स्कूली बच्चों के लिए खास गाइड लाइन जारी करनी चाहिए।यदि मास्क से ही किसी संभावित बड़ी मुसीबत को चुनौती दी जा सकती हैइसमें बुराई ही क्‍या है। एक बार फिर मास्क ही एडोनावायरस…

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