Author: UmaAbhi

मरतनाट्यम नृत्यागना मदर सिन्हा ने किया अपनी क्षे के लबे अनुभवों को साझा अजमेर/संवाददाता। नई दिल्ली के बीकानेर हाउस में चल रहे ‘ भारत कला मेला’ और “बीकानेर हाउस प्रबंधन समिति’ द्वारा ‘बीकानेर हाउस डायलॉग्स सीरीज ‘ के दूसरे दिन स्वतंत्र क्यूरेटर और कला समीक्षक उमा नायर, पूर्व मिस इंडिया और कंटेंट क्यूरेटर शिवानी वजीर और भरतनाट्यम नृत्यांगना भद्र सिन्हा ने किया अपनी क्षेत्र के लंबे अनुभवों को साझा किया। समारोह में अतिरिक्त मुख्य सचिव सह मुख्य आवासीय आयुक्त शुभ्रा सिंह और अन्य ने सभी मेहमान कलाकारों का स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम के आरंभ में आवासीय आयुक्त धीरज श्रीवास्तव ने मेहमान कलाकारों का परिचय देते हुए उन्हें चर्चा के लिए आमंत्रित किया। इस संवाद श्रृंखला में उमा नायर ने कहा कि बीकानेर हाउस में आना न केवल मेरा सौभाग्य हैए बल्कि यह एक श्रद्धा और अपनापन है | उन्हानें कहा कि यहां से उनके बचपन की यादें जुड़ी हुई है। इस अवसर पर उन्होंने अपने अनुभवों के बारे में विस्तृत रूप करते हुए उन्होंने एक कविता भी प्रस्तुत की । इस अवसर पर शिवानी वजीर ने बीकानेर हाउस के प्राकृतिक सौंदर्य की सराहना करते हुए इंडिया गेट जैसे अति विशिष्ट स्थान पर इस तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए आयोजकों को बधाई दी। उन्होंने चर्चा के दौरान अपने अनुभवों का वर्णन किया। उल्लेखनीय है कि बीकानेर हाउस में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए साप्ताहिक इंडिया आर्ट फेयर का आयोजन किया जा रहा है। जिसका उद्घाटन राज्य की मुख्य सचिव उषा शर्मा ने किया। इस कार्यक्रम की संवाद श्रंखला के पहले दिन सांसद शशि थरूर सहित विभिन्न क्षेत्रों की विख्यात हस्तियों ने भाग लिया। यह समारोह 2 फरवरी तक चलेगा ।

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अजमेर/संवाददाता। (राजस्थान के यश्स्वी मुख्यमंत्री ने पशुपालकों के लिये संबेदनगश्ीलता दशाति हुये अपने बजट में विभिन्न योजनाओं में अनुदान एवं राहत देते हुये 4000 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की है इसके अन्तर्गत विद्यालयों में मिड-डे-मिल दूध योजना में छात्र-छात्राओं के 2 दिन के स्थान पर रोजना दूध उपलब्ध कराने को ऐतिहासिक घोषणा की है जिसमें 00 करोड़ रूपये आवंटित किऐ है। इसके अतिरिक्त गौशालाओं एवं नंदीशालाओं में 9 माह के स्थान पर 2 माह अनुदान दिया जायेगा जिसमें 00 करोड रूपये किए जाएंगे। पशुपालको के हितों को मदेनजर रखते हुये मुख्यमंत्री महोदय ने लम्बी बीमारी के दौरान दुधारू गाय के निधन पर 40 हजार रूपये देने की घोषणा की है। इस पर कुल व्यय 00 करोड़ रुपये की लागत आऐगी। एक अन्य घोषणा में प्रदेश के 50 हजार पशुपालको को अनुदानित दर पर चॉप कटर यंत्र उपलब्ध कराये जाएंगे । इस हेतु 35 करोड़ रूपये व्यय होंगे। पशुओं की चिकित्सा हेतु राज्य में एक बेटनरी विश्वविद्यालय की घोषणा की है एवं अन्य समस्त कृषि महाविद्यालयों में पशुपालन विभाग शामिल किया जाऐगा। प्रदेश के वर्तमान में कार्यरत अधिकाश उप पशु चिकित्सालय को पशु चिकित्सालय में एवं पशुचिकित्सालय को प्रथम श्रेणी पशुचिकित्सालय में क्रमोन्नत करने पर एवं पशु चिकित्सा के क्षेत्र में आने वाली समस्त दवाऐँ निःशुल्क करने से इस महत्वपूर्ण मद पर करीबन 000 करोड़ रूपये के व्यय होने की उम्मीद है। पशु मित्र योजना के अन्तर्गत पशुपालकों की ट्रेनिंग हेतु 5000 पशुपालक कार्मिक नियुक्त किये जाऐंगे जो पशुपालको को अपने.अपने क्षेत्र में पशुपालन की ट्रेनिंग देंगे। पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने हेतु उन्नत किस्म के बीज निःशुल्क उपलब्ध कराये जायेंगे तथा जहाँ पानी की कमी है वहां फार्म पोण्ड बनाने हेतु एवं जिन पशुपालकों के कुएं में पानी है उन्हें निःशुल्क बिजली उपलब्ध कराई जाएंगी। इस मद में भारी राशि आवश्यकता अनुसार जारी की जाऐगी पशु बीमा हेतु प्रत्येक पशुपालक के 2 पशु अनुदान पर बीमित किये जाएंगे ज्ञात रहे की अनुदान पर भारत सरकार ने पूर्व में पूरे राजस्थान के लिये 20ए000 पशुओं का बीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था मुख्यमंत्री ने इस सीमा को समाप्त करने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री महोदय ने मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक सम्बल योजना में 5 रुपये प्रति लीटर के अनुदान में कोई कटौती नहीं की है। इस मद में वर्ष भर में लगभग १000६. करोड़ रूपये का अनुदान दिया जायेगा। कोरोना महामारी के दौरान जिन पशुपालकों के परिवार में माता पिता के निधन होने पर जो बच्चे अनाथ हुये हैं उन्हें सरकारी नौकरी देने का प्रावधान किया है। इसी प्रकार पशुपालको के घर एवं बाड़े पर 400 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जायेगी। उपरोक्त घोषणाओं के अतिरिक्त पशुपालको को खेत में फव्वारा सिंचाई हेतु एवं तारबंदी के लिये समुचित अनुदान की घोषणा की है। आर.सी .डी .एफ . के माध्यम से राजस्थान में 5000 नये डेयरी बूथ एवं 200 सरस पार्लर स्थापित किये जायेंगे माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने पशु नस्ल सुधार को महत्व देते हुये सेक्स सोटैंड सीमन योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत अनुदान पर 500 रूपये में प्रत्येक पशुपालक को सीमन अनुदान पर देने का ऐलान किया है। प्रदेश में पशुआहार उत्पादन की कमी को मध्यनजर रखते हुये लाम्बियाए भीलवाड़ा एवं पाली में पशु आहार संयंत्र की क्षमता 50 मेट्रिक टन से 300 मेट्रिक टन प्रतिदिन करने की घोषणा की जिसमें 400 करोड़ रूपये खर्च किये

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अजमेर/»संवाददाता। पूर्व चिकित्सा मंत्री और केकड़ी विधायक डॉ रघु शर्मा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा पारित बजट को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि यह बजट राजस्थान के हर वर्ग की तरक्की एवं उन्नति वाला बजट है। केकड़ी क्षेत्र को भी खूब सौगातें मिली हैं। यह बजट राजस्थान और केकड़ी के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। केकड़ी विधायक डॉ रघु शर्मा ने कहा कि बजट में 500 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर, 400 यूनिट फ्री बिजली, चिरंजीवी योजना में बीमा 40 लाख रुपए से बढ़ा कर रु25 लाख, एक हजार इंग्लिश मीडियम स्कूल, हर साल 30 हजार बालिकाओं को स्कूटी, महिलाओं को रोडवेज बस किराए में 50 प्रतिशत छूट एवं कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को सरकारी नौकरी, किसानों को 2000 यूनिट बिजली हर माह मुफ्त के ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं। एक बार रजिस्ट्रेशन, उसके बाद सभी भर्ती परीक्षाएं निरूुशुल्क अब युवा को रोजगार भी मिलेगा और बार-बार परीक्षा फॉर्म की फीस भरने के आर्थिक तनाव से मुक्ति मिलेगी। एक करोड़ खाद्य सुरक्षा से जुड़े परिवारों के लिए प्रतिमाह मुख्यमंत्री निशुल्क अन्नपूर्णा फूड पैकेट योजना होगी शुरू। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही किसानों को मुफ्त बिजली, युवाओं के लिए नई घोषणाएं, निशुल्क भर्ती परीक्षा, शोधार्थियों को फेलोशिप, नए सरकारी कॉलेज, राजीव गांधी यूनिवर्सिटी, पत्रकारों को लैपटॉप, किसानो के लिए शानदार घोषणाओं सहित अनेक नवाचारों को शामिल किए यह बजट अपने आप मे सम्पूर्ण है। डॉ. शर्मा ने कहा कि इसी तरह केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में सावर बनेडिया मेहरूकला- भीमडावास नांदसी- देवलिया कला (59 किमी.) (सावर, केकड़ी, भिनाय) तथा गोयला-शेरगढ़- करोडगढ्-जूनिया कनोज-बघेरा (49.70 किमी.), (सरवाड़, केकड़ी) सड़कों की घोषणा की गई है। क्षेत्र के विकास के लिए यह बहुत अच्छी घोषणा है।इसी तरह बघेरा में उपतहसील,, कादेड़ा में प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सालय एवं सावर में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग कार्यालय की घोषणा से भी क्षेत्र के विकास को गति मिलेगी | उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के वर्तमान कार्यकाल में केकड़ी क्षेत्र में हजारों करोड़ रुपए के विकास कार्य करवाए गए हैं।

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अडानी समूह के तथाकथित भांडाफोड़ पर हमारी संसद का पूरा पिछला हफ्ता खप गया लेकिन अभी तक देश के लोगों को सारे घपले के बारे में कुछ भी ठोस जानकारी नहीं मिली है। हालांकि अडानी समूह ने सैकड़ों पृष्ठों का खंडन जारी करके दावा किया है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है। उसका सारा हिसाब-किताब एकदम साफ-सुथरा है। भारत के रिजर्व बैंक ने भी नाम लिये बिना अपने सारे लेनदेन को प्रामाणिक बताया है लेकिन आश्चर्य है कि भारत सरकार से अभी तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के भाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए हमेशा की तरह काफी आक्रामक भाषण दिया और कांग्रेस की लगभग मिट्टी पलीत कर दी लेकिन अडानी-समूह के बारे में उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला। यही बात शक पैदा करती है कि कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है? राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाए और मोदी-अडानी सांठगांठ के कई उदाहरण भी दिए लेकिन एक मूल बात पर ध्यान देना जरूरी है। वह यह कि भारत-जैसे देश में क्या आर्थिक उन्नति के लिए यह जरुरी नहीं है कि सरकार और उद्योगपतियों के बीच घनिष्ट सामंजस्य बना रहे। पं. नेहरु की समाजवादी सरकार के दौरान भी टाटा, बिड़ला, डालमिया आदि समूहों की नजदीकी का पता किसे नहीं था? अडानी और अंबानी समूह कांग्रेस-राज के दौरान ही आगे बढ़े और मोदी-राज में अब वे दौड़ने भी लगे। दोनों समूह गुजराती हैं और हमारे दोनों भाईनरेंद्र मोदी और अमित शाह- भी गुजराती ही हैं। इनका संबंध परस्पर थोड़ा घनिष्ट और अनौपचारिक भी रहा हो सकता है लेकिन यह देखना बेहद जरूरी है कि इन उद्योगपतियों को आगे बढ़ाने में कहीं गैरकानूनी हथकंडों का सहारा तो नहीं लिया गया है? ये गैर-कानूनी हथकंडे इसलिए भी आसान बन जाते हैं कि हमारी भ्रष्ट नौकरशाही को संबंधों की फुलझड़ी दिखाकर पटाना कहीं अधिक आसान होता है। अडानी-समूह को अरबों रु. का धक्का लगभग रोज ही लगता जा रहा है। यदि लाखों शेयरधारकों की गाढ़ी कमाई बहने लगी तो वह गुस्सा मोदी सरकार पर ही फूट पड़ेगा। विदेशी उद्योगपति और पूंजीपति भी प्रकंपित हो जाएंगे। इसीलिए बेहतर होगा कि सरकार पर जो कीचड़ उछल रहा है, वह उसकी उपेक्षा न करे। अभी तो दिवालिया विपक्ष ही इस कीचड़ को उछाल रहा है लेकिन यह कीचड़ यदि जनता के बीच उछलने लगा तो उसमें से उगा हुआ कमल मलिन हुए बिना नहीं रहेगा।

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आदिवासी समाज आजादी के बाद दशकों तक वंचित और शोषित रहा। इन्हें लोकतंत्र में वोट बैंक तक सीमित मान लिया गया था, लेकिन अब वक्त के साथ इस सोच में बदलाव आया है। विशेषकर मोदी सरकार के आने के पश्चात जनजातीय समाज का पुनरूत्थान हो रहा है। जनजातियों का गौरव पुनः वापस लौटाने की दिशा में प्रयास चल रहा है। जनजातीय समाज की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में बदलाव आ रहा है। जनजातीय समाज के लोगों में उम्मीद की नई किरण जाग उठी है। यह समाज एक बार फिर से देश के विकास में भागीदार बन रहा है। अब उनकी सामाजिक और आर्थिक दोनों रूपों में प्रगति हो रही है। जनजातीय समाज के प्रति मोदी सरकार की संवेदना ही है। जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय समाज के नायकों का योगदान याद करना नहीं भूलते! विगत आठ-नौ वर्षों में जनजातीय समाज के नवोत्थान के लिए अनगिनत प्रयास हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक गरीब, पिछड़े और आदिवासी तबके के लोगों को कैसे मिल सके | इसके लिए सतत निगरानी की जा रही है। अंतिम जन का कल्याण ही मोदी सरकार का मूलमंत्र है। जिस जनजातीय समाज को पूर्ववर्ती सरकारों ने अपने लाभ के लिए. इस्तेमाल किया। उस समाज को मुख्यधारा में लाने का सफूल प्रयास भाजपानीत की सरकार में हो रहा है। विपक्षी दल मोदी सरकार पर आरोपों की झडी लगाते हैं कि यह सरकार दलित, वंचित और गरीबों की विरोधी है, लेकिन इस बार के बजट ने भी विपक्षी दलों के मुँह पर तमाचा मारने का काम किया। जनजातीय समाज के लिए पीएमपीबीटीजी विकास मिशन की शुरुआत की गई है। यह मिशन की घोषणा की गई है। जो सरकार का के आदिवासी क्षेत्रों में आईसीएमआर और एक स्वागतयोग्य कदम है, क्योंकि सिकल सेल ऐसा साइलेंट किलर है। जिससे प्रभावित सबसे ज़्यादा आदिवासी समाज है। अब अगर सिकल सेल मुक्त भारत बनेगा, तो निश्चि बात है कि यह जनजातीय समाज के लिए एक अच्छी खबर है। वैसे नरेंद्र मोदी जी ने सिकल सेल को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी कार्य किया है। साल 2044 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जी जब जापान यात्रा पर गए थे। उस समय उन्होंने वहां औषधि क्षेत्र में नोबेल जनजातीय समूहों की सामाजिकआर्थिक स्थिति में सुधार लाएगा और पीबीटीजी बस्तियों को मूलभूत सुविधाओं से परिपूर्ण किया जा सके। इसके लिए आगामी तीन वर्षों में १5,000 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। सच पूछिए तो अमृत काल का यह बजट जनजातियों के लिए नया सवेरा लाने वाला है, क्योंकि इसी बजट में 3.5 लाख जनजातीय छात्रों के लिए 740 एकलव्श्य विद्यालयों में 38,800 अध्श्यापकों की नियुक्ति की बात कही गई है। अब जनजातीय समाज का बच्चा भी पढ़-लिखकर आगे बढ़ने का सपना देख सकता है। बजट में 2047 तक सिकल सेल एनीमिया मुक्त भारत पुरस्कार विजेता एस. सामानका से बायोटेब्नोलॉजी डिपार्टमेंट की मदद से 2022 तक ,3,83,664 लोगों की जांच की गईं। जिसमें तकरीबन 8.75 फीसदी लोगों की रिपोर्टपॉजिटिव आई। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक 3 प्रतिशत जनजातीय आबादी सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है, और 23 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनमें ये रोग फैल सकते हैं। यह पीढ़ी दर-पीढ़ी चलने वाला ऐसा आनुवांशिक रोग है, जिसमें रोगी के गुर्दे, फेफड़े, हदय और लिवर तक खराब हो जाते हैं। हीमोग्लोबिन की लगातार कमी से कभी-कभी 6से 3 ग्राम तक खून रहता है और ऐसी स्थिति में दर्द से तड़पते मरीज को सिकल सेल एनीमिया के इलाज की संभावनाओं को लेकर चर्चा की थी। पीएम मोदी की यह तड़प प्रदर्शित करती है कि वो जनजातीय समाज को इस कलंक से मुक्त करना चाहते हैं जिसका । विजन अमृतकाल के पहले बजट में रखा गया है। सिकल सेल एनीमिया के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों में सामने आते हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय के मुताबिक, आदिवासी क्षेत्रों में जन्म लेने वाले हर 86बच्चों में से एक सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित है। लोकसभा में सरकार ने जो आंकड़ा पेश किया है। उसके मुताबिक, देश तत्काल खून चढ़ाना पड़ता है और देरी होने से मृत्यु हो जाती है। महिलाओं में खून की कमी के कारण अनेकों बीमारियां घेर लेती हैं और ऐसे में उनका जीवन दूभर हो जाता है। इस बीमारी की भयावहता इस बात से भी समझी जा सकती है कि इसकी चपेट में आने से लगभग 20 प्रतिशत आदिवासी बच्चों की दो साल की आयु तक पहुंचने से पहले ही मृत्यु हो जाती है और 30 फीसदी बच्चे वयस्क होने से पहले ही दम तोड़देते हैं। ऐसे में ये रोग एक साइलेंट किलर की भांति है। जो पूरे परिवार को तबाह कर सकता है। जिसे रोकने के लिए देश के अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग मुहिम चल रही। अब केंद्र सरकार ने भी दृढ़ भारत का सपना ओर प्तिकल सेल के विरुद्ध सरकारी इच्छाशक्ति जाहिर की है तो उम्मीद की जा सकती है कि 2047 तक सचमुच में जनजातीय समाज इस भयावह बीमारी की चपेट से मुक्त हो सकेगा। बजट में कहा गया है कि 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन शुरू किया जाएगा, जिसमें जागरूकता पैदा की जाएगी और प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में 7 करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच की जाएगी। गौरतलब हो कि केंद्रीय बजट में ऐलान से पूर्व मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 5 नवंबर 2024 को जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर मप्र राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन की शुरुआत की थी। जिसके तहत मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल आलीराजपुर और झाबुआ जिले में सिकल सेल एनीमिया स्क्रीनिंग का कार्य पूर्ण किया गया। इसके अलावा विश्व सिकल सेल दिवस (9 जून) पर देश के अनूठे आयोजन में सिकल सेल पीडितों के हेल्थ रिकार्ड के लिए लॉच किये गये पोर्टल को केन्द्र सरकार द्वारा आदर्श के रूप में अंगीकृत किया गया। मौजूदा मोदी सरकार कई मायनों में जनजातीय समाज के सर्वांगीण विकास पर बल दे रही है। उसी का एक हिस्सा सिकल सेल मुक्त भारत की परिकल्पना है।

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देश में इन दिनों गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित राम चरित मानस को लेकर बड़ा विवाद छिड़ा हुआ है। जहां देश का बहुसंख्य हिन्दू समाज रामचरितमानस को अपना सम्मानित धर्मग्रंथ मानता है वहीं इसी बहुसंख्य हिन्दू समाज में ही एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो रामचरितमानस में रचित व प्रकाशित कुछ श्लोकों व चौपाइयों को हिन्दू समाज के दलित,शूद्र,पिछड़े यहां तक कि महिलाओं व ग्रामीणों के अपमान के रूप में भी देखता है। मजे की बात तो यह है कि इतने अंतर्विरोधों के बावजूद देश के इसी नहीं बल्कि रामचरितमानस की प्रतियां जलाने से रुष्ट कुछ संतों ने रामचरितमानस की प्रतियां जलाने वालों का सिर काटने पर इनाम की राशि भी घोषित कर दी । यदि इसी तरह की घटनाओं को हम वैश्विक सन्दर्भ में देखें तो पूर्व में भारत से लेकर विश्व के अनेक पश्चिमी देशों में मुसलमानों के पवित्र ग्रन्थ कुरआन शरीफ को जलाने की घटनायें भी होती रही हैं। कुरआन शरीफ की आलोचना करने वालों का भी यह तक॑ रहता है कि इसमें दर्ज विभिन्न आयतों में गैर मुस्लिमों ,काफिरों व मुशरिकों पर जुल्म ढहाने की सीख दी गयी बहुसंख्य हिन्दू समाज का लगभग प्रत्येक वर्ग अपने दुख सुख अथवा आराधना के समय इसी रामचरितमानस को अपना सम्मानित धर्मग्रंथ मानते हुये इसी का पठन-पाठन करता आ रहा है। हालांकि रामचरितमानस की आलोचना के स्वर भी दशकों से उठते तो जरूर रहे हैं परन्तु वे इतने प्रबल स्वर नहीं थे जितने अब सुनाई दे रहे हैं। यहां तक कि विगत 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश में कुछ राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा रामचरितमानस की प्रतियां जलाने तक की नौबत आ गयी और लखनऊ पुलिस ने कुछ आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम व अन्य आपराधिक धाराओं के तहत कार्रवाई करते हुये उन्हें हिरासत में भी ले लिया ।इतना ही है। कुरआन और इस्लाम के यही आलोचक दुनिया में घटित होने वाली किसी भी हिंसक या आतंकी कार्रवाई को बड़ी ही आसानी से कुरआन की सीख से जोड़ देते हैं। हर आतंकी घटना को जिहादी घटना बताने लगते हैं। और जब कहीं भी कुरआन शरीफ को अपमानित करने उसे ‘फाड़ने या जलाने जैसी घटनायें होती हैं। इसे ईश निंदा बताया जाता है। उसी समय विश्व इस्लामी जगत में ऐसी घटनाओं पर तीखी प्रतिक्रियाएँ शुरू हो जाती हैं। प्रदर्शन, जुलूस,धरने यहाँ तक कि बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन तक होने लगते हैं। रामचरितमानस की आलोचना हो अथवा कुरआन का विरोध,जब भी ऐसे स्वर बुलंद होते हैं फौरन दोनों ही धर्मों के स्वयंभू धर्मगुरु इन धर्मग्रंथों के पैरोकार के रूप में सामने तो जुरूर आ जाते हैं परन्तु प्राय: उनकी भूमिका भी इन्हीं धर्मग्रंथों के अंध भक्त की ही होती है। वे उन आयतों,चौपाइयों व श्लोकों पर स्पष्टीकरण नहीं देते जिनपर लोगों को आपत्ति है या जिनपर उन्हें संदेह है। बजाये इसके वे आलोचक का मुंह बंद करने उसका सिर कुलम करने,उसपर धर्मग्रंथों की तौहीन करने या धर्म का अपमान करने जैसे आरोप लगाकर उसे नीचा दिखाना व उसे धर्म विशेष का विरोधी साबित करना चाहते हैं। धर्मग्रंथों की विवादित बातों को यथावत रखने के पीछे ऐसे धर्माधिकारी यह तर्क भी देते हैं कि जो धर्म ग्रन्थ उनके पूर्वजों द्वारा संकलित किया अथवा लिखा गया है उसमें परिवर्तन या छेड़ छाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं । कुरान के आलोचक जहां कुरआनी शिक्षा में गैर मुस्लिमों ,काफिरों व मुशरिकों पर जुल्म ढहाने के साथ ही इस्लाम को सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ समझने की सीख देने वाला धर्मग्रंथ होने का आरोप लगाते हैं वहीं रामचरितमानस के आलोचक इसे भी जातिवाद फैलाने व सामाजिक ताना बाना बिगाड़ने वाला धर्मग्रंथ बताते हैं। परन्तु ऐसा नहीं लगता कि विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं द्वारा इन आलोचनाओं से बचने का कभी कोई ठोस व कारगर उपाय किया गया हो या ऐसे विवादित विषयों को लेकर होने वाली आलोचनाओं का कोई संतोषजनक जवाब दिया गया हो । उनकी आलोचना करने वाले समाज को तकों से संतुष्ट करने की कोशिशें की गयी हों ।केवल सिर कलम कर दो,मार दो ,आग लगा दो,फृतवा जारी कर दो आदि प्रतिक्रियायें जुरूर सुनी गयी हैं। इससे तरह हिन्दू धर्म में व्याप्त वर्ण व्यवस्था,जातिवाद ऊंच नीच आखिर धार्मिक शिक्षा की देन नहीं तो और क्या है ? परन्तु ऐसी व्यवस्थायें जिन्हें ऊँचा स्थान देती हैं,जिन्हें इनसे फ़ायदा पहुँचता है जिन लोगों को ऐसी व्यवस्था में ही अपना वर्चस्व नजर आता है वे तो ऐसे धर्मग्रंथों व उनमें लिखी गयी प्रत्येक बातों का अक्षरश: समर्थन व सम्मान करते हैं और जिन्हें इनमें अपना अपमान नजर आता है वे इनमें सुधार या परिवर्तन की मांग करते या इनकी आलोचना करते हैं। धर्म व धर्मग्रंथों से जुड़ा एक कड़वा सच यह भी है कि प्राय: आक्रांताओं,शासकों ,राजनेताओं व कमजोर सत्ता भोगियों द्वारा भी इनका इस्तेमाल हथकण्डे के रूप में किया जाता रहा है।जो भी आक्रांता,शासक या राजनेता अपनी जन हितैषी नीतियों के बल पर समग्र समाज का दिल नहीं जीत सका उसने अपनी लोकप्रियता अर्जित करने के शॉर्ट कट रास्ते के रूप में धर्म के मुखौटे को धारण कर लिया और संकीर्णता का केचुल पहन कर आसानी से किसी धर्म जाति या वर्ग विशेष का सरगना बन बैठा। शताब्दियों से यही खेल राजनेताओं व स्वयंभू धर्माधिकारियों के संयुक्त नेटवर्क द्वारा खेला जाता रहा है। परिणाम स्वरूप पूरे विश्व में प्राकृतक आपदाओं व महामारियों से भी अधिक लोग धर्म समुदाय व जाति संबंधी हिंसा में मारे जा चुके हैं और आज भी मारे जा रहे हैं। राम,कृष्ण,ईसा मुहम्मद,नानक जैसे महापुरुषों ने बेगुनाहों पर जुल्म ढहाने की सीख दी हो इस बात की तो कल्पना नहीं की जा सकती परन्तु धर्म व धर्मग्रंथों के ठेकेदारों व हिंसा पर उतारू इनके आलोचकों की गतिविधियों व इनकी विध्वंसकारी मंशा को देखकर मशहूर शायर सागर खैय्यामी की यह पंक्तियाँ बिल्कुल सटीक प्रतीत होती हैं – ऐसी कोई मिसाल जमाने ने पाई हो ?हिन्दू के घर में आग खुदा ने लगाई हो ? बस्ती किसी की राम ने यारों जलाई हो? नानक ने राह सिर्फ सिखों को दिखाई हो? राम-ओ रहीम-ओ नानक-ओ ईसा तो नर्म हैं। चमचों को देखिये तो पतीली से गर्म हैं।।

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर,॥96, को वर्ततमान उत्तर प्रदेश की पवित्र ब्रजभूमि में मथुरा में नगला चंद्रभान नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन में एक ज्योतिषी ने इनकी जन्मकुंडली देख कर भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक एक महान विद्वान एवं विचारक बनेगा,एक अग्रणी राजनेता और निस्वार्थ सेवाब्रती होगा मगर ये विवाह नहीं करेगा। अपने बचपन में ही दीनदयालजी को एक गहरा आघात सहना पड़ा जब सन १934 में बीमारी के कारण उनके भाई की असामयिक मृत्यु हो गयी उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा वर्त्‌तमान राजस्थान के सीकर में प्राप्त की । विद्याध्ययन में उत्कृष्ट होने के कारण सीकर के तत्कालीन नरेश ने बालक दीनदयाल को एक स्वर्ण पदक,किताबों के लिए 250 रुपये और दस रुपये की मासिक छात्रवृत्ति से पुरुस्कृत किया। दीनदयालजी ने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पिलानी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की तत्पश्चात वो बी.ए. की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कानपूर आ गए जहां वो सनातन धर्म कॉलेज में भर्ती हो गए। अपने एक मित्र श्री बलवंत महाशब्दे की प्रेरणा से सन 939 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ में सम्मिलित हो गए उसी वर्ष उन्होंने बी.ए. की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की इसके बाद म.ए. की पढ़ाई के लिए वो आगरा आ गए। आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सेवा के दौरान उनका परिचय श्री नानाजी देशमुख और श्री भाउ जुगडे से हुआ इसी समय दीनदयालजी की बहन सुश्री रमादेवी बीमार पड़ गयीं और अपने इलाज के लिए आगरा आ गयीं मगर दुर्भाग्यवश उनकी मृत्यु हो गयी [दीनदयालजी के लिए जीवन का यह दूसरा बड़ा आघात था.इसके कारण वह अपने एम.ए. की परीक्षा नहीं दे सके और उनकी छात्रवृत्ति भी समाप्त हो गयी । दीनदयाल जी परीक्षा में हमेशा प्रथम स्थान पर आते थे उन्‍्हेंने मैट्रिक और इण्टरमीडिएट-दोनों ही परीक्षाओं में गोल्ड मैडल प्राप्त किया था इन परीक्षाआ को पास करने के बाद वे आगे की पढाई करने के लिए एस.डी. कॉलेज, कानपुर में प्रवेश लिया वहाँ उनकी मुलाकात श्री सुन्दरसिंह भण्डारी, बलवंत महासिंघे जैसे कई लोगों से हुआ इन लोंगों से मुलाकात होने के बाद दीनदयाल जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रमों में रुचि लेने लगे दीनदयाल जी ने वर्ष 939 में प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा पास की बी.ए पास करने के पश्चात दीनदयाल जी एम.ए की पढाई करने के लगातार दिसंबर 967 तक जनसंघ के महासचिव बने रहे. उनकी कार्यक्षमता, खुफिया गतिधियों और परिपूर्णता के गुणों से प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से सम्मानपूर्वक कहते थे कि- “यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं. परंतु अचानक वर्ष 953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी. इस प्रकार उन्होंने लगभग 5. वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की. भारतीय जनसंघ के ॥4 वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. दीनदयाल उपाध्याय के अन्दर की पत्रकारिता तब प्रकट हुई जब उन्होंने लखनऊ से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म ‘ में वर्ष 9940 के दशक में कार्य किया. अपने आर.एस.एस. के कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘पांचजन्य’ और एक दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ शुरू किया था. लिए आगरा चले गये लेकिन उनकी चचेरी बहन रमा देवी की मृत्यु हो जाने के कारण वे एम.ए की परीक्षा न दे सके भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 95 में किया गया एवं दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया. वे उन्होंने नाटक ‘चंद्रगुप्त मौर्य ”’ और हिन्दी में शंकराचार्य की जीवनी लिखी. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. के.बी. हेडगेवार की जीवनी का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया. उनकी अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में “सम्राट चंद्रगुप्त’, ‘जगतगुरू शंकराचार्य ‘, ‘ अखंड भारत क्यों हैं ‘, ‘ राष्ट्र जीवन की समस्याएं ‘, ‘राष्ट्र चिंतन ‘ और ‘राष्ट्र जीवन की दिशा! आदि हैं. जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृतिमें निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा कफ पण्डित दीनदयाल उपाध्याय महान निर्माता दीनदयालजी का उद्देश्य स्वतंत्रता की पुर्नरचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टी प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील चिंतक थे. उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानव दर्शन जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किए हैं. विचारधारा दी। दीनदयालजी को जनसंघ के आर्थिक नीति के रचनाकार बताया जाता है। आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य समान्य मानव का सुख है या उनका विचार था। विचार -स्वातंत्रय के इस युग में मानव कल्याण के लिए अनेक विचारधारा को पनपने का अवसर मिला है। इसमें साम्यवाद, पूंजीवाद, अन्त्योदय, सर्वोदिय आदि मुख्य हैं। किन्तु चराचर जगत को सन्तुलित, स्वस्थ व सुंदर बनाकर मनुष्य मात्र पूर्णा की ओर ले जा सकने वाला एकमात्र प्रक्रम सनातन धर्म द्वारा प्रतिपादित जीवन – विज्ञान, जीवन -कला व जीवनदर्शन है। संस्कृतिनिष्ठा दीनदयाल जी के द्वारा निर्मित राजनैतिक जीवनदर्शन का पहला सुत्र है उनके शब्दों में- फ्र भारत में रहनेवाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए उन्होंने अपनी पुस्तक एकात्म मानववाद (इंटीगरल ह्यूमेनिज्म) में साम्यवाद और पूंजीवाद, दोनों की समालोचना की गई है. एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरुप राजनीतिक कार्रवाई हेतु एक वैकल्पिक सन्दर्भ दिया गया है. दीनदयाल उपाध्याय का मानना है कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि , भारत की राष्ट्रीय संस्कृति हैं। मौत 5१] फरवरी, 968 को पं. दीनदयालका रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। मुगलसराय रेलवे यार्ड में उनकी लाश मिलने से सारे देश में शौक की लहर दौड़ गई थी। अपने प्रिय नेता के खोने के बाद भारतीय जगसंघ के कार्यकार्ता और नेता आनाथ हो गए थे। पार्टी को इस शोक से उबरने में बहुत सी समय लगा | उनकी इस तरह हुई हत्या को कई लोगों ने भारत के सबसे बुरे कांडों…

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पुष्कर “संवाददाता। पुष्कर विधायक सुरेश सिंह रावत ने बताया किए आज मुख्यमंत्री ने प्रदेश का बजट पेश किया। लेकिन इस बजट में ब्रह्मा नगरी की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई। पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस के नेताओं और मंत्रियों द्वारा पुष्कर के विकास को लेकर समाचार पत्रों में काफी बयान बाजिया दी गई। जनता के सामने झूठे झूठे वादे और घोषणाएं की गई | जनता को गुमराह करने के लिए शांति धारीवाल मंत्री, कलक्टर आदि स्तर पर उच्च कमेटियों की पुष्कर विकास हेतु बैठकें आयोजन के नाटक किए गए और कहा गया कि इस बार पुष्कर के विकास हेतु धन की किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी। लेकिन कांग्रेसियों द्वारा पिछले कुछ महीनों से आमजन को थोथी घोषणाओं से गुमराह करने की जो योजना कांग्रेस के नेता धरातल पर ला रहे थेए वह गहरे गर्त में जाकर धंस गई है। आज के बजट में मुख्यमंत्री ने पुष्कर के विकास के नाम पर एक ढेला नहीं दिया। कांग्रेस ने हमेशा ही तीर्थ नगरी पुष्कर की उपेक्षा और महत्व को नजरअंदाज किया है। पिछले बजट में भी पुष्कर के पवित्र सरोवर में गंदे पानी की रोकथाम हेतु किए गए अथक प्रयासों के बावजूद मात्र 4] करोड का बजट आवंटन की केवल की घोषणा की गई है। वह भी आज तक योजना धरातल पर नहीं उतर रही है। पुष्कर विधानसभा के क्षेत्र वासी पुष्कर क्षेत्र की उपेक्षा करने के लिए कांग्रेस सरकार को आने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में हार का आईना दिखाने को तैयार बैठे हैं। पुष्कर राज के महत्व को बनाए रखने और आमजन की पुष्कर राज के प्रति गहरी आस्था के गौरव को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हुए पुष्कर के ह्व्ड्ज्ज््ल्ल्ल्न्का हे सुरेशसिंह रावत-विधायक-पुक्कर विकास के लिए संघर्ष करता रहूंगा । पुष्कर के विकास के लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी राज्य सरकार के स्तर पर और केंद्र सरकार के स्तर पर प्रयास जारी रहेंगे।

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अजमेर /संवाददाता। जवाहर कला केन्द्र का लॉन ध्रुवषद के सुरए लय और ताल से झंकृत हो उठा जब वरिष्ठ ध्रुवपद गायिका प्रो. मधु भट्ट तेलंग ने अपने साथियों के साथ विशिष्ट अंदाज में ध्रुवषद के सुर छेड़े। मौका था डेल्फिक गेम्स ऑफ राजस्थान द्वारा जवाहर कला केन्द्र में आयोजित 4 दिवसीय डेल्फिक गेम्सका। डेल्फिक गेम्स के दूसरे दिन की शुरूआत हेरिटेज डॉयलाग सिपोजियम के तहत ध्रुवपद गायकी की विश्व विख्यात गुरू प्रो. मधु भट्ट तेलंग के साथ हुई । कला एवं संस्कृति के साथ साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए काउंसिल की ओर से ध्रुवपद की परम्पराएं एवं नए आयाम विषय पर प्रो. मधु भट्ट तेलंग के व्याख्यान का आयोजन किया गया। खुले प्रागंण में संगीत पुरोधा प्रो. तेलंग ने संगीत की सुरीली वर्षा से आगमन्तुकों को सरोबोर कर दिया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति के तहत डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की प्रशंसा करते हुए डेल्फिक गेम्स को कला और संस्कृति के लिए बेहतरीन प्रयास बताया। उन्होंने गुरु का महत्व बताते हुए गुरु वंदना से सुर साधना आरम्भ की। उन्होंने गायकी और उसकी व्याख्या को समाहित करते ध्रुवपद गायकी को सजीव रूप से समझाया । प्रो. तेलंग ने भेरव स्त्रोत से शुरूआत करते हुए श्रुवपद महिमा एवं भक्ति काल के कवियों के पदों का गायन किया। उन्होंने भ्रुवपद गायन शैली की बारीकिया समझाते हुए बताया कि श्रुवपद की दो परंपराएं हैं। पहली मंदिर परंपरा और दूसरी दरबारी परंपरा। जिसके तहत उन्होंने कई शानदार और कर्षप्रिय प्रस्तुतियां दी। जिसमें चंदरिया झीनी- झीनी, स्वच्छता पर विशेष गीत को प्रस्तुत किया। प्रो. तेलंग ने संगीत को धर्म जाति के भेदभाव से दूर बताते हुए महात्मा गांधी का प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने प्रस्तुतिकरण के अन्त में होली गीत और शिव स्तुति के साथ ही पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी की आरती का श्रुवषद शैली में गायन कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। का भेद-ग्रो.म॥ भह तेलग के माध्यम से पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण भारत की विशिष्ट पारम्परिक परिधानों को सहेजने और उभारने का प्रयत्न किया गया है। कार्यक्रम में काउंसिल के महासचिव एवं जिला कलेक्टर, अलवर जितेन्द्र कुमार सोनी ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि डेल्फिक मूवमेंट का उद्देश्य है कि युवा एवं विशिष्ट कलाकारों के बीच सेतु स्थापित हो और नवोदित कलाकारों को मंच मिले । नार्थ ईस्ट डेल्फिक काउंसिल की समन्वय जाहन्वी फूंकन ने अतिथियों को दुशाला व प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया । काउंसिल की कोषाध्यक्ष एवं आरएएस अधिकररी क्षिप्रा शर्मा ने सभी आगन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर राजस्थान डेल्कि काउंसिल की अध्यक्ष एवं प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा, उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र एपटियाला के निदेशक फुरकान खान, इंडियन डेल्फिक काउंसिल के अध्यक्ष एन एन पांडे, इंटरनेशनल डेल्फिक इस अवसर पर तनेरा हेरिटेज साड़ियों के डिजाईनर प्रियंका माथुर और सिद्धार्थ आनंद ने बताया कि तनेरा साडियों के महासचिव रमेश प्रसन्ना सहित विभिन्न अधिकारी, प्रतिभागी एवं कला प्रेमी उपस्थित थे।

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हिंडन बर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह का साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह ढहढहाना शुरू हो गया है। शेयर मार्केट, जांच एजेंसियों और सरकार द्वारा अडानी समूह को बचाने की जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोशिशें की जा रही हैं। उससे भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती विदेशी निवेशकों का भरोसा बनाए रखने की है। भारत सरकार,भारत के शेयर बाजार, भारत की जांच एजेंसियों और भारत के नियम कानून पर वैश्विक संस्थाओं का विश्वास बना रहेगा, या वह टूट जाएगा। वर्तमान स्थिति में यह बहुत जरूरी हो गया है। अन्यथा हमारी भी हालत पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों की तरह हो जाएगी। हिंडन बर्ग की रिपोर्ट में जो खुलासे किए गए हैं । उन आरोपों की भारत सरकार को जांच करानी चाहिए थी। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारत की शासन व्यवस्था संविधान, कानून और नियमों से संचालित होती है। जिस तरह से रिपोर्ट के तथ्यों को झुठलाया या दबाया जा रहा है। उससे विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत के बाजार,भारत की संवैधानिक संस्थाओं को लेकर डगमगा रहा है। संसद में जिस तरह से सरकार ने इस मामले को दबाने का प्रयास किया है। उसकी प्रतिक्रिया अंतरराष्ट्रीय जगत में अविश्वास और आश्चर्य के रूप में हो रही है ।ग्रिपेन ई लड़ाकू विमान बनाने के लिए साब और अडानी समूह के बीच हुआ समझौता खत्म हो गया है। भारत में फाइटर जेट बनाने के लिए 207 में एमओयू हुआ था। साब समूह ग्रिपेन लड़ाकू विमान बनाता है और इसे मिग-24 का उन्नत संस्करण माना जाता है। अडानी समूह ने अपने आर्थिक घोटाले और फर्जीवाड़े को जिस तरह से राष्ट्रपर हमला बताकर बचने का प्रयास किया है | उसके तुरंत बाद भारत की वैश्विक अर्थव्यवस्था रैंकिंग मे पांचवें स्थान से छठवें स्थान पर खिसक गई है। हर्षद मेहता और केतन पारेख के समय भारतीय शेयर बाजार में जो घोटाले हुए थे । उस समय भारतीय शेयर बाजार अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए नहीं खुला हुआ था। जो भी घपले घोटाले हुए,मुनाफावसूली हुई | वह भारत के अंदर ही रही। उसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर नहीं पड़ा था। तब यह भारत का आंतरिक मामला था। 2004 के बाद से विदेशी निवेशक शेयर बाजार के माध्यम से भारतीय कंपनियों में बड़ी मात्रा में निवेश करते हैं। जिसके कारण अब अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी भारत के शेयर बाजार, भारत की संवैधानिक व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाओं के क्रियाकलापों और भारतीय नियम कानूनो का असर उन पर भी समान रूप से पड़ता है। हिंडन बर्ग की रिपोर्ट ने क्रोनी कैपटीलिज्म से जुड़े कई मुद्दों को उठाया है। भारत सरकार और भारतीय जांच एजेंसियों ने उस पर जांच करने के स्थान पर, अडानी समूह की कंपनियों के बचाव करने का तरीका अख्तियार किया है । जिसके कारण वैश्विक संस्थाओं और निवेशक, भारतीय संस्थाओं पर भरोसा करने लायक स्थिति में नहीं रहे। भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर वैश्विक स्तर पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जिस तरीके से कारपोरेट कंपनियों के पक्ष में एकाकी न्यायिक व्यवस्था महसूस की जा रही है। नियमों और फैसले का आधार अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग तरीके से हो रहा है। भारत की न्याय व्यवस्था में कारपोरेट का जिस तरह से प्रभाव देखने को मिल रहा है। उससे भारतीय न्याय व्यवस्था की साख सारी दुनिया में कम हुई है। खरबों डॉलर से जुड़े मामले में सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने लचर याचिका की दुहाई देते हुए, हिंडन बर्ग के खिलाफ कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है। यह इसका बड़ा सबूत है। हिंडन बर्ग पर दायर पीआईएल बेतुकी होने के साथ-साथ मामले को भटकाने का प्रयास भी माना जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन के 2 साल के अंधेरे में जब सारे कामकाज बंद थे। भारत सहित सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था रुकी हुई थी। उस समय अडानी समूह की पूंजी, मुनाफा और कारोबार, दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से कागजों पर बढ़ती ही जा रही थी । दुनिया में पहली बार जिस तरीके से अडानी समूह ने दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा, धोखाधड़ी, कर चोरी, बेनामी कंपनियां, टैक्स हेवन,हवाला एवं राजनेताओं से मिलकर अनैतिक कार्यों को किए जाने का आरोप लगाया है। आरोपों को लेकर भारत सरकार, भारत की न्यायिक व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाएं, जांच कराने के स्थान पर जिस तरह से दबाने का प्रयास कर रही हैं। संसद में सरकार ने जिस तरह से इस घोटाले को दबाने का प्रयास किया है। सरकार जेपीसी अथवा ईडी इत्यादि के माध्यम से जांच कराने तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में वैश्विक वित्तीय संस्थाओं ओर वैश्विक निवेशकों का भरोसा भारत सरकार और भारतीय शेयर बाजार पर बनाये रखना मुश्किल हो रहा है। भारत सरकार ने हर स्तर पर अडानी समूह की मदद, पिछले 0 दिनों में करने की कोशिश की है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, अडानी समूह की आर्थिक गड़बड़ी के गड्डे में जितना भी पानी डालेंगे,बह कुछ ही समय में गड्ढा सोख लेगा। गड्ढे को भरे बिना कोई उपचार इस बीमारी से बाहर निकलने का नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में यदि भारत को अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखना है, तो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं और वैश्विक कारोबारियों का भरोसा बनाए रखना, भारत सरकार की वर्तमान समय में सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार एवं संवैधानिक संस्थाओं द्वारा गंभीरता से विचार किये जाने की जरूरत है।

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