मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने नर्सिंग काउंसिल और नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता संबंधी कार्यों में जो अनियमितता और भ्रष्टाचार किया गया है। हाईकोर्ट ने मप्र मेडीकल साइंस विवि.म.प. नर्सेस रिजस्ट्रेशन काउंसिल और इंडियन नर्सिंग काउंसिल के रिकार्ड की जांच कर 3 माह के अंदर रिपोर्ट देने के आदेश दिये हैं। हाईकोर्ट के आदेश से सीबीआई जांच करेगी | कई माहों तक यह मामला जांच में लंबित रहेगा। हजारों छात्रछात्राओं का भविष्य अंधकार मय होगा । सीबीआई की रिपोर्ट आने के बाद हाईकोर्ट फिर मामले की सुनवाई करेगी। जिम्मेदार। भ्रष्ट अधिकारी नियम कानून और एक दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़कर अपने आप को बचाने का प्रयास करेंगे। इसी तरीके से भ्रष्टाचार होता रहेगा। व्यापम घोटाले की जांच भी सीबीआई ने की थी। इतने वर्षों बाद क्या हुआ, यह सभी जानते हैं। जो जिम्मेदार अधिकारी थेए वह आज भी खुले घूम रहे हैं। जो भी गाज गिरी, वह परीक्षार्थियों और उनके परिवार जनों पर गिरी जिनकी कोई गलती नहीं थी। वह भ्रष्ट व्यवस्था और सरकार की लाख फीताशाही के शिकार हुए थे। ग्वालियर खंडपीठ ने 36नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता के संबंध में नर्सिंग काउंसिल की भूमिका, सरकार की भूमिका, डीएमई की भूमिका और मध्य प्रदेश मेडिकल यूनिवर्सिटी की भूमिका पर आश्चर्य व्यक्त किया। संस्थाओं की कार्यवाही को देखने के बाद हाईकोर्ट को जिन जिम्मेदार अधिकारियों ने लापरवाही बरती है। उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करके हाईकोर्ट को मैसेज देना था। नर्सिंग क्या होगा सीबीआई की जांच से तारीख पर तारीख ? काउंसिल एक चपरासी के भरोसे चल रही है। सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है। जिम्मेदार अधिकारी आंख बंद करके गांधीजी के तीन बंदरों की तरह बैठे हुए हैं। हजारों छात्रों का भविष्यए जिन्होंने नर्सिंग कॉलेज की मान्यता देखकर एडमिशन लिया था। अब वह यहां से वहां चक्कर काट रहे हैं। आर्थिक और मानसिक रूप से तो उन्हें नुकसान हुआ ही है। इसके साथ-साथ कीमती वर्ष भी बर्बाद हो गया है। उनके डॉक्यूमेंट नर्सिंग कॉलेजों में जमा है। जब तक सीबीआई की जांच चलती रहेगी, सब कुछ ठहरा हुआ होगा। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान छात्र-छात्राओं का हो रहा है। सीबीआई जांच हो, इससे कोई इंकार नहीं है। लेकिन छात्र छात्राओं को भी न्याय मिले। आगे इस तरह की कोई गड़बड़ी ना हो। इसके लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए। तब लोगों का भरोसा न्यायपालिका के ऊपर पुख्ता होगा। सीबीआई की जांच से अब छात्र-छात्राओं और जिम्मेदार लोगों को भी डर लगने लगा है। कई वर्षों तक चलने वाली इस जांच में जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही नहीं होती है। सबसे ज्यादा खामियाजा सबसे कमजोर पक्ष जिन्हें न्याय की आस होती है। उन्हें ही नुकसान उठाना पड़ता है। हजारों छात्र-छात्रायें वि.वि. में पंजीयन और परीक्षा के लिये भटक रहे हैं। जिन छात्रों के बेहतर भविष्य और बेहतर शिक्षा के लिये जिन संस्थाओं को जिम्मेदारी दी गई है। यदि वह अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पाये । ऐसी स्थिति में कोर्ट को इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। आनलाईन हाने से धंधा बौठ गया।