एक दादा जी मृत्यु शय्या पर लेटे थे और अंतिम सांसे चल रही थी, परिवार भरा पूरा था उनके एक नाती था जो शादी लायक था, दादा जी की इच्छा थी कि उसकी शादी होकर उन्हें पंति का मुँह देखने मिल जाए। अभी नाती की शादी नहीं हुई और पंति का मुंह देखना हैं । अरे दादा आप मरने जा रहे ही हैं, एक दिन दो दिन के मेहमान हो यह कैसे संभव होगा नहीं मुझे चाहिए नहीं तो हमारे प्राण नहीं निकलेंगे और यदि मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई तो मैं भूत बनकर परेशान करूँगा। दादा के पुत्र ने कहा पिता जी अभी शादी करेंगे उसके बाद ‘उसे कुछ समय देना पड़ेगा जब उसको; पत्नी गर्भवती होगी उसे नौ माह का समय देना होगा तब तक आप रहेंगे नहीं | मैं कुछ नहीं समझता, मुझे पंति चाहिए ठीक हें नाती की शादी करके उसके साथ पंति भी रेडीमेड आ जायेगा नहीं ऐसा नहीं मुझे तो ओरिजिनल चाहिए। और उसके चक्कर में दादा जी भी चले गए और न पंति देख पाए। मोरबी काण्ड क्या इस समय पूरे देश में विकास के नाम पर रेडी मेड कार्यक्रम हो रहे हैं प्रधान नौकर को लगने लगा हैं की अगला कार्यकाल मिलेगा या नहीं इसके लिए मुझे जितना अधिक शिलान्यास, उदघाटन करके समय से पूर्व मुझे पंति का मुंह देखना हैं । बच्चे पैदा करने शादी करना जररी हैं जो वैध हो, उसके बाद बच्चा हो या न हो इसकी कोई गारंटी नहीं। प्रधान नौकर हर गर्भ का गर्भपात करा कर उस बच्चे का मुंह देखना चाह रहे हैं। वे जब जहाँ भी जाए अजरामर होकर जाना चाहते हैं।इस धरा पर कितने बड़े बड़े सम्राट समां गए, काल के गाल में गए कौन को कौन कितने दिन याद रखता हैं। और याद रखने से कौन को क्या ‘फायदा होगा। सड़के बनी नहीं या जितना समय लगना रहता हैं उससे पहले उद्घाटन उद्घाटन के बाद सड़कें उबड गयी, समय पूर्व शिशु के जन्मने से उसे वेंट्रिलाटेर पर रखा जाता हैं उसके बाद कोई भरोसा नहीं रिश्वत, मुरब्बत और गफलत का वीजा वह जिन्दा रहेगा या नहीं पर बच्चा मिल गया, उसे बल्दियत मिल गयी । मोरबी पुल काण्ड रिश्वत का पूरा खेल हैं उसमे इतनी अधिक खामियां थी या हैं जिसको नजर अंदाज़ नहीं किया जा सकता। उसके बाद गफलत यह हुई की अनुभवहीन लोगों से कार्य कार्य गया और निर्माण कर्ता के साथ ऊपरी स्तर पर मुरब्बत की गयी कि यह अपना आदमी हैं छोडो कोई कमी भी होगी वो बाद में पूरी है जाएँगी। समय पूर्व निर्माण यानी गर्भपात हुआ और उसका परिणाम सामने आया। प्रजाकार्य स्वमेव पश्चयये (322 यथावसरमसंग दव कारयेत (33) दुदुरशो हिं राजा कार्याकार्य विपर्यसमासन्नेह कार्य द्विषा तमाति संधानिया:श्र भवति ( 34 ) वेद्येब् श्रीमर्ता व्याधिवर्धनआदिव नियोगिषु भर्तव्यसनादपरों नास्ति जीवनोपाय (35 ) राजा प्रजा कार्यग्रिष्पपालन व दुष्टनिग्रह आदि स्वयं ही विचारे व अमात्य आदि के भरोसे न छोड़े, अन्यथा रिश्वत खोरी और पक्षपात वगैरह के कारण प्रजा पीडति होती हैं। राजा मौके मौके पर अपना राजद्वार खुला रखे जिससे प्रजा उसका दर्शन सुलभता से कर सके केवल एक मौका छोड़कर बाकी समय में राजा अपना द्वार सदा सुरक्षित रखे और अवसर आने पर भी प्रजा को अपना दर्शन नदेवे, निश्चय से प्रजा को दर्शन न देने वाले राजा का कार्य अधिकारी वर्ग स्वार्थ-वश बिगाड़ देते हैं और शत्रु लोग भी उससे बगावत करने तत्पर हो जाते हैं, अत: प्रजा को राजा के दर्शन सरलता से होना चाहिए। जिस प्रकार धनिकों की बीमारी बढ़ाना वैद्यों की जीविका का कोई दूसरा उपाय नहीं उसी प्रकार राजा को व्यसनों में फंसाने के सिवायए मंत्री आदि अधिकारीयों की जीविका का भी कोई दूसरा उपाय नहीं हैं। जो राजा बलात्कारपूर्वक प्रजा से धन ग्रहण कर्ता हैं, उसका वह अन्याय दृपूर्ण आर्थिक लाभ महल को नष्ट करके लोहे कीले के लाभ समान हानिकारक हैं। इस काण्ड में सैकड़ों लोग मरे और कई घायल हैं।