आपको याद होगा कि कुछ समय पूर्व ही भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी क्षेत्र की ॥7 बैंकों को, इन बैंकों में खराब कर्ज के खतरनाक स्तर तक बढ़ जाने के कारण, त्वरित सुधारात्मक ढांचे के तहत रखा था। पिछले कुछ वषों के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों को कम पूंजी आधार, गैर-पेशेवर प्रबंधन, हताश कर्मचारियों और भारी अक्षमताओं सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। परंतु, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति को सुधारने की दृष्टि से कई उपाय किये एवं केंद्र सरकार ने पांच वित्त वर्षों के दौरान ;वित्तीय वर्ष 206-7 से 2020-24 तकद्ध सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पुजीकरण के लिए 3,0,997 करोड़ रुपये का अभूतपूर्व निवेश किया। इससे इन बैंकों को आवश्यक मदद मिली और उनकी ओर से किसी भी चूक की आशंका खत्म हो गई। अभी हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन जारी किया गया है। इस प्रतिवेदन में भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ बताया गया है एवं इस प्रतिवेदन के अनुसार दिसम्बर 2022 को समाप्त अवधि में भारतीय बेंकिग क्षेत्र में पूंजी पर्याप्तता अनुपात १6. प्रतिशत, सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियों का की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हो हेतु कई ईमानदार प्रयास किए हैं। क गैरनिष्पादनकारी प्रतिशत 4.4 प्रतिशत एवं प्रोविजन कवरेज अनुपात 73.20 प्रतिशत हो गया है। वित्तीय वर्ष 207-8में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने जहां 85,390 करोड़ ही रुपये का शुद्ध घाटा दर्शाया था, वहीं वित्तीय वर्ष 2024-22 में इन बैंकों ने 66,539 करोड़ के रुपये का लाभ अर्जित किया है, और अब यह, अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में सरकारी क्षेत्र की बैंकों के का लाभ एक लाख करोड़ के आंकड़े को पार र कर सकता है। इस प्रकार सरकारी क्षेत्र के बैंकों का तो एक तरह से कायाकल्प ही हो ना गया है। क्षमता अनवरोधित (अनलाक ) करने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की गई थी। इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि लागत में कमी आई है जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों की लागत में भी सुधार हुआ है। इन बैंकों द्वारा बैंकिंग व्यवसाय हेतुए नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है जिससे इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज से एक ही प्लेटफार्म पर होंए इन बैंकों की इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होता दिखाई दे रहा है। इन बैंकों की बाजार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता में भी सुधार हुआ है।