स्वराज, स्वराज्य, अपने पर अपना राज, इसमें विशेषकर आजकल जल स्वराज की चर्चा चल रही है। हम सभी जानते है कि जल ही जीवन है। जल से जीवन की उत्पत्ति प्रारंभ हुई । जल दुनिया में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, मगर खाने पीने प्रयोग में लेने के लिए शुद्ध साफ सुथरा निर्मल जल सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। जल स्वराज की दृष्टि में है आने वाला कल, भावी पीढ़ी, नया इंसान, नया समाज, एक नई दुनिया, इन जैसी संभावनाओं से हरा भरा, खुशहाल ऐसा ब्रह्मण्ड जहां वनस्पति, जीव-जंतु, पशु पक्षीए पेड़-पौधे सभी के लिए सहजता, सरलता, सुविधा से शुद्ध साफ-सुथरा निर्मल जल उपलब्ध हो । जल स्वराज से दुनिया में चारों ओर प्रेम ही प्रेम, विविधता ही विविधता, संवेदना, संवाद, सहजता, सरलता, शांति, सौहार्द, जय जग, अन्तसांस्कृतिक संबंध ‘फले फूलेंगे, सही ढंग से विकसित होने के द्वार खुलेंगे जल । स्वराज इस राह का एक भागीरथ प्रयास है, भीष्म प्रतिज्ञा है, आप हम सबका भविष्य है। जल की यात्रा विश्वव्यापी है। जो बूंद से शुरू होकर पहाड़, जंगल, मैदान, गांव देहात, शहर नगर होती हुई, जोहड़, तालाब, झील, भू-जल, कुआं, बावड़ी भरते हुए नदियों से मिलकर सागर, समुद्र तक जाती है। मजेदार बात यह है कि वहां जाकर भी रुकती नहीं है। फिर से भांप, गैस, बादल, वर्षा की बूंदें बनकर अनन्त यात्रा पर निकल पड़ती है। रास्ते में अनेक धाराओं को समेटते हुए आगे बढ़ती है। जल चक्र की यह यात्रा सतत श्रृंखलाबद्ध ढंग से, सातत्यपूर्वक सदैव जारी है। प्रकृति के साथ की गई छेड़छाड़ के कारण कभी बाढ़ के रूप में पानी की अधिकता से तो कभी सुखाड़ के रूप में पानी की कमी, अभाव में संकट का कारण भी बनती है। इसके पीछे हमारी नासमझी, नादानी, नालायकी, निक्कमापन, लोभ, लालच, स्वार्थ, शोषण, दोहन, लूट की प्रवृत्ति जिम्मेदार है। गांधी जी ने जल को लेकर अपने समय में आज से बहुत पहले सतर्क किया था, चेतावनी दी थी, जागरूक किया था। जल के सद्प्रयोगए सही उपयोग का अपने जीवन में उदाहरण पेश किया । जल स्वराज एक दृष्टिए सोच, समझ, संभावना से जुड़ने का अथक सार्थक प्रयास का अवसर है। आओ मिलकर उठे, जागे, एक कदम आगे बढ़ाएं, साथ चलने का संकल्प लें। जल स्वराज संदेश दे रहा है कि हमें जिसने बनाया, उसने ही सबको बनाया है, हम सबके है, सब हमारे है, फिर यह दूरी क्यों, आग से मिलकर पंचतत्व से रचित यह संसार सात समुद्र पार तक फैल गया। प्रकृति ने करोड़ों वर्षों की साधना से यह सुंदर विश्व हमें सौंपा | बूंद से सागर तक की इस महा यात्रा, महात्म्य को जानना, सोचना-समझना, सहजना, सम्मान के को समझना, जानना है तो इस मकड़जाल, स्थिति को सामने रखना होगा। हमारा समाज, देश पानीदार रहा है। पानी की समाज की एक अद्भुत अपनी समझ रही है। तालाब, जोहड़, कुंड, कुएं, बावड़ी, नौले, नाले, धौरे, झरनें, नदियां साथ अपनाना, संरक्षण, संवर्धन करना जरूरी है। लाखों विशेषकर हजारों वर्षों से चली आ रही यह प्राकृतिक व्यवस्था पिछले कुछ वर्षों में बुरी तरह से टूटी तोडी गई। कारण सत्ताए संसाधनों का केन्द्रीयकरण बना। औद्योगिक क्रांति, तकनीकी की गति, पूंजी की महत्ता संग्रह ने इसको बल प्रदान किया। समाज को किनारे कर दिया गया। समाज कर्त॑र्तव्य हीन बन गया | बस्तियां बेतरतीब महानगर में तब्दील होने लगी। ग्रामोद्योग, कुटीर कैसे? सारा जहान हमारा, हम है सारे जहान के जल स्वराज को जानने, पहचानने, समझने समझाने के लिए जल संरक्षण, संवर्धन, सुरक्षा के साथ साथ जल की व्यापकता, पवित्रता, समझ, महत्व को दृष्टि में रखना होगा । आओ जल स्वराज के लिए बूंद की यात्रा को जानें, समझे। बूंद के आसपास और चारों ओर जीवन ही जीवन जीवन से भरी बूंद । जब कुछ नहीं था, तब बूंद थी । सब जगह चारों ओर बूंद ही बूंद। जहां देखो वहां बूंद बूंदें सब जगह छाई हुई थी। चारों ओर बूंद का साम्राज्य था। जल ही जल पानी ही पानी बूंद मतलब जल की माया, छाया, काया का स्वरुप जो भी कहें बूंद में छिपा है, जीवन का संचार। बूंद से निकला जीवन, जीव फैल गया चहुं दिश । सभी दिशाओं में हर जगह विविधता के साथ। प्रारंभ हुई विविधता भरी सृष्टि प्रकृति | पंच महाभूत जल, थल, नभ, हवा, उद्योग, लघु उद्योग की जगह बड़े पैमाने पर विशाल केन््द्रीत उद्योगों का जाल फैला। एकदम आश्चर्यजनक ढंग से कारपोरेट घरानों में भंयकर बढ़ोतरी हुई । विकास के नाम पर सत्ता, संपत्ति के मकड़जाल पहाड़ की तरह खड़े होने लगे। प्रदूषण मुक्त लघु उद्योग, हस्तकला, लघु कार्यों का विनाश हुआ। सत्ता और बड़े उद्योगों के गठबंधन ने प्रकृति और इंसान को भी एक संसाधन मानकर मनमानी अंधी लूट की | एक तरफ संपत्ति के पहाड़, किले, अटारिया जगमगाने लगे और दूसरी ओर भंयकर, घातक गहरे गड्ढे फैलने लगे। असमानता की खाई महासागर की तरह फैलने लगी। समाज केवल नाम के लिए रह गया। आश्चर्य की बात है कि इस व्यवस्था को फैलाने, बढ़ाने, संरक्षित, संवद्धन करने के लिए कानून का डंडा, दबाव भी जोर से चला। बूंद, जल की जीवंत जीवन कहानी जैसे जलस्नोत सहित जल की समझ, पकड़ ने भारत को हरा-भरा, खुशहाल बनाकर रखा। विविधता से भरा हमारा देश, समाज प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका में रहा। प्राकृतक सौंदर्य, भौगोलिक स्थिति, मौसम, जलवायु, ऋतुएं, रहन-सहन, खान-खान, सोच-समझ, भेष-भूषा, बोलचाल, बोलियां, भाषा, काम-घधंधे, कृषि, पशुपालन सब विविधता से भरपूर रहा। हमारी बस्तियां जल के आसपास बनती गई, विशेषकर नदियों के किनारे मानव जीवन क्रम जल के आसपास विकसित होते हुए आगे बढ़ा। जल के परिणामस्वरूप ही वनस्पतिए पशु-पक्षी, कीड़े मकोड़े जीव-जंतुए जंगल-पहाड़, हाथ में लेकर असत्य नहीं बोला जा सकता, यह विश्वास अब टूटा है। जल देवता परमात्मा की शक्तिए सामर्थ्य माना गया। धरती, पाताल, आकाश तीनों लोकों को जल पवित्र, निर्मल, शुद्ध, जीवंत बनाता है। प्रकृति, सृष्टि की रचना सृजनशीलता पंचतत्वों से हुई है। जल की इसमें सबसे अहम् भूमिका है। मानव भी पंचतत्वों से ही मिलकर बना है। सृष्टि की तरह मानव में भी दो-तिहाई भाग जल का है। आपो देवता को प्रकृति एवं मानव सभ्यता के विकास में जल की अहम भूमिका है। प्रकृति में जल का अपार भंडार होते हुए भी मानव उपयोग के लिए जल सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी पर उपलब्ध जल का केवल 2.5 टन हिस्सा ही सीधे उपयोग में लाने लायक है। जबकि इसका भी दो- तिहाई हिस्सा बर्फके रूप में सोया हुआ है। जल के बिना जीव संसार की कल्पना ही संभव नहीं की जा सकती है। जल है तो नदी-नालों से भरा प्रकृति का निराला स्वरुप साफ, खुशहाल नजर आता है। जल का भारतीय संस्कृति, जीवन, साहित्य में विशेष स्थान रहा है। जल का महत्व इससे और स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय समाज ने नदियों को मां का दर्जा दिया है। गंगा मैया, यमुना मैया, नर्मदा मैया, कावेरी मैया के नाम से नदियों को पुकारा जाता रहा है। नदी को लोकमाता का सम्मान दिया गया। जल के बिना जीवन संभव नहीं है प्यास हो, भोजन हो, खेलना हो तैरना हो, आना जाना हो, मृत्यु हो, तर्पण हो, पूजा पाठ हो, खेत हो, बागवानी हो, उद्योग हो, निर्माण कार्य हो सबमें जल चाहिए। अगर संकल्प या शपथ ग्रहण हो तब भी विश्वास जाहिर करने के लिए जल का उपयोग किया जाता । जल