स्वतंत्रता के पश्चात किसान आंदोलन एक ऐतिहासिक आंदोलन था। इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित देश के सभी प्रदेशों के किसान संगठनों ने आंदोलन में भाग लिया। पहली बार इस आंदोलन में जाति और धर्म नेपथ्य में चला गया था । किसान आंदोलन की आत्मा में हिंदू, मुसलमान, सिख और सभी वर्ग के किसान शामिल थे। इस आंदोलन से अकाली दल, कांग्रेस, भाजपा, बसपा सबको नुकसान हुआ | पंजाब में पहली बार आम आदमी पार्टी की सरकार बनी। किसान आंदोलन की सफलता ने केंद्र सरकार और सभी राजनीतिक दलों के लिए चिंता पैदा कर दी । किसान आंदोलन ने धार्मिक एवं जाति आधार को नुकसान पहुंचाता हुआ नजर आया। इसके बाद खालिस्तान आंदोलन पंजाब में बड़ी तेजी के साथ शुरू हुआ। यह माना जा रहा हैए कि किसान आंदोलन की प्रतिक्रिया स्वरूप, धार्मिक एवं राजनीतिक संगठनों ने अपनी ताकत को पुनः बनाने के लिए अमृतपाल की खालिस्तान की मांग को अप्रत्यक्ष रूप से हवा दी । 28-29 साल का युवक अमृतपाल सोशल मीडिया पर दीप संधू के साथ खालिस्तान आंदोलन को लेकर अपने विचार ज्यादा कट्टरता से रखता था। दीप सिंधु ने किसान आंदोलन के दौरान लाल किले में झंडा फहरा कर अलगाववादी आधारशिला को रखा था। इससे किसान आंदोलन कमजोर पड़ता हुआ नजर आया, इसी बीच दीप संधू की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। आतंकवादियों ने चंदू को शहीद घोषित कर दिया। दीप सिंधु उत्तराधिकार के रूप में अमृतपाल का जन्म हुआ। अमृतपाल दुबई में रहता था। ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करता था। मौज मस्ती वाली जिंदगी जी रहा था। अलगाववादियों ने सुनियोजित रूप से अमृतपाल को तैयार किया। उसके बाल बढ़वाये गये | भिंडरावाला की तरह उसकी दाढ़ी और पगड़ी इत्यादि लगवाई गई। भिंडरावाला 2 के नाम से उसको पृथक खालिस्तान की मांग से जोड़कर उसे पंजाब लाया गया। भिंडरावाला 977 में सिखों की धर्म-प्रचार की शाखा दमदमी टकसाल का मुखिया बना था। इसकी निरंकारियों से नहीं बनती थी। 978में सिखों और निरंकारी सिखों के बीच में झगड़ा हुआ। इसमें कई निरंकारियों की जान चली गई। आपातकाल के बाद वह 977 के चुनाव में कांग्रेस, पंजाब में बुरी तरह पराजित हुई। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। पंजाब की सत्ता अकाली दल के पास आ गई | इसके बाद कांग्रेस ने भिंडरावाला को अपना समर्थन दिया। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव से भिंडरावाल ने अपने उम्मीदवार खड़े किए। सिखों के बीच भिंडरावाले बड़ी तेजी के साथ लोकप्रिय होने लगा । 980 में जनता दल की सरकार गिरने के बाद पंजाब के चुनाव हुए | कांग्रेस के नेतृत्व में दरबारा सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कांग्रेस का समर्थन पाकर भिंडरावाला काफी उग्र हो गया । उसके पास धार्मिक एवं राजनैतिक ताकत आ गई थी। १982 में भिंडरावाला और अकाली साथ आगए।१973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव की मांग ने तूल पकड़ा | तब तक कांग्रेस की पकड़ से भिंडरावाला पूरी तरह से बाहर निकल चुका था। सिखों का एक तबका भिंडरावाले को भगवान का दर्जा देने लगा। आईपी आटवाल अधिकारी एएसआई वालों की स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों में हत्या कर दी गई | एक बस में सवार 6हिंदुओं की हत्या की गई। पंजाब केशरी के मालिक लाला जगत नारायण की हत्या कर दी गई। हरमंदर साहब परिसर में बड़ी मात्रा में हथियार जुटाने भिंडरावाला ने शुरू कर दिए। 983 में भिंडरावाला ने समर्थकों के साथ अकाल तख्त पर कब्जा जमा लिया। भिंडरावाला ताकत की नशे में इतना चूर हो गया था, कि केंद्र सरकार को उसके खिलाफ ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत कार्रवाई करनी पड़ी। अकाल तख्त से करने का काम राजनैतिक एवं धार्मिक शह पर शुरू किया गया है। किसान आंदोलन के कारण पंजाब में सिखों का दबदबा खत्म होकर किसान सगठनों का दबदबा बनने लगा था। सभी जाति समुदाय के लोग किसान संगठन के साथ जुड़ रहे थे। किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार की नीव हिला कर रख दी थी | पिछले कुछ महीनों में मीडिया ने जिस तरीके से अमृतपाल को हाथों हाथ लिया है। अमृतपाल को भिंडरावाले की तरह ताकतवर छवि के साथ पेश किया जा रहा है। वर्तमान में मीडिया किसके इशारे पर काम करता है। यह सभी जानते हैं अमृतपाल की गिरफ्तारी और फार होने की खबरों को जिस तरीके से मीडिया ने कबर किया है। निकालने के लिए सेना का इस्तेमाल करना पड़ा | भिंडरावाले ने इतने हथियार जमा कर लिए थे, कि वह घंटों सेना के साथ मुकाबला करता रहा। इस ऑपरेशन 83 सेना के जवान शहीद हुए थे । किसान आंदोलन के बाद एक बार फिर खालिस्तान आंदोलन की मांग को अप्रत्यक्ष रूप से तेज उसके बाद यह आशंका जन्म लेने लगी हैए कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने कभी भिंडरावाला का सहारा लेकर पंजाब की राजनीति और पंजाब की सत्ता में बना रहने की जो कोशिश की थी। इस कोशिश में इंदिरा गांधी को अपनी द जान भी गवाना पड़ी ।
खालिउ्ानी आंदोलन प्ले म्तवसे ज्यादा नुकप्तान किसान आंदोलन को हुआ
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