सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में जाति सर्वे क्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और इस पर बिहार सरकार की प्रतिक्रिया मांगी है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने सरकार को अब तक प्रकाशित आंकड़ों पर आगे कोई कार्रवाई करने से रोकने या क | सर्वेक्षण के परिणाम प्रकाशित (करने के किसी भी कदम में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया 5 है। एक सोच एक प्रयास बनाम भारत संघ और अन्य का यह मामला अभी पूरी तरह से शांत ‘नहीं होने वाला। पहले भी पटना उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक जातिगत गणना को रोकने के लिए ‘एकाधिक बार दस्तक दी गई है, पर ज्यादातर बार न्यायालय [का रुख गणना के पक्ष में ही रहा है। चुनौतियों के बावजूद अदालती सहमति से गणना हो चुकी है और उसके आंकड़े भी जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद सर्वोच्च न्यायालय में इसे चुनौती देना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जब अनेक राज्यों में ऐसी ही गणना या आंकड़े जारी करने की तैयारी है, और यह एक तरह से बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है। ऐसे में , न्यायालय का दरवाजा बार-बार खटखटाने के भला क्या मायने हैं? क्या यह संसाधन के साथ-साथ अदालती समय की बर्बादी नहीं है? अदालत को भी सचेत भाव से अंतिम तौर पर इस विवाद का पटाक्षेप करना चाहिए। यह| चुनौती बहुत गंभीर मामला नहीं है और इसलिए मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2024 में रखी गई है। तब तक बिहार सरकार के पास पर्याप्त समय है कि वह इन आंकड़ों के सहारे अपनी कुछ अच्छी योजनाओं को आकार दे और अदालत में ज्यादा मजबूती से जवाब दे । गोपनीयता या निजता के उल्लंघन का हवाला देकर जाति गणना को रुकवाने का आधार कमजोर है। भारत में किसी की जाति के बारे में जानना बहुत आसान है। लोग अपनी-अपनी जाति का लाभ लेने से खुद को अभी अलग नहीं कर पाए हैं। अतन किसी की जाति निजता का मामला नहीं है। अनेक सरकारी कागजों में जाति का उल्लेख होता है। शायद ही कोई पार्टी होगी, जिसके पास किसी इलाके के जातिगत आंकड़े न होंगे, पर ऐसे अनधिक्ृत आंकड़ों पर क भी रोक नहीं रही है। अब जब आधिकारिक रूप से गणना हुई है, तब उस पर रोक की तो कोई गुंजाइश ही नहीं बनती है। विरोध का एक दूसरा पहलू, भी है, जिसकी दुहाई केद्वीय गृह मंत्रालय अपने जवाबी _हलफनामे में पहले दे चुका है कि 948 में बने जनगणना अधिनियम के तहत केवल केद्र सरकार ही जनगणना कर सकती है, पर बिहार सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि यह जनगणना नहीं है, यह सामान्य गणना या सर्वेक्षण है। पटना उच्च न्यायालय भी मान चुका है कि यह सर्वे क्षण ‘उच्चित योग्यता और न्याय के साथ विकास के वैध उद्देश्य से शुरू किया गया। आज के समय में जाति एक बड़ी सच्चाई है। उसके आधार पर अगर कोई सुविधा किसी को हासिल हो रही है, तो वह आसानी से खत्म नहीं होने वाली । अतच्देश ‘के लोग जाति और उससे संबंधित गणना को विकास व [सामाजिक न्याय के नजरिये से सही मानकर चलें, इसी में सबका भला है। आश्रुनिक होते देश में जाति संबंधी पुख्ता आंकड़े जरूरी हैं, यह कतई कमतर मानसिकता नहीं है। सही तरीका यही है कि समावेशी विकास से जाति के प्रभाव को धीरे-धीरे खत्म किया जाए, ताकि जाति की गणना की जरूरत न रह जाए, लेकिन इस काम में अभी बहुत समय लगेगा।
गणना पर रोक नहीं
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