इस योजना के अंतर्गत रोगियों की खोज के अतिरिक्त निश्चित मापदंड पर छिड़काव की व्यवस्था है ताकि मलेरिया से एक भी व्यक्ति की मृत्यु न हो। यह कार्यक्रम भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा प्रदत 5050 के अनुदान के आधार पर चलाया जाता है । हर साल 25 अप्रैल को मलेरिया के खिलाफ लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के विश्व मलेरिया दिवस यानी वर्ल्ड मलेरिया डे मनाया जाता है. गौरतलब है कि हर साल लाखों लोग भारत समेत पूरी दुनिया में मलेरिया से ग्रसित होते हैं. बता दें कि यह एक जानलेवा बीमारी है जिससे भारत में हर साल हजारों लोग संक्रमित होते हैं. दिसंबर 209 में जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट में मलेरिया उन्मूलन के लिए उठाए गए कदमों के चलते भारत सुर्खियों में है। रिपोर्ट के अनुसार वैसे तो मलेरिया उन्मूलन के वैश्विक प्रयासों में स्थिरता आई है लेकिन पिछले वर्ष 22 करोड़ 80 लाख लोग मलेरिया की चपेट में आए थे जिनमें से लगभग 4 लाख लोगों की मौत हुई थी। अधिकतर मौतें अफीका क्षेत्र में हुई थी। भारत में मलेरिया का प्रकोप सदियों से हो रहा है। आजादी से पहले तक देश की लगभग एक चौथाई आबादी मलेरिया से प्रभावित होती थी। 947 में भारत की 33 करोड़ आबादी में से 7 .5 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित हुए थे और 8लाख लोग मारे गए थे। इस घातक रोग पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने 953 में “राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम” लागू किया। यह कार्यक्रम काफी सफल रहा और इससे मलेरिया के रोगियों की संख्या में काफी कमी आई। इस कार्यक्रम की सफलता से उत्साहित होकर सरकार ने १958 में राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन! कार्यक्रम आरंभ किया। डी.डी.टी. वगैरह के छिड़काव में ढील के कारण 960 और १970 के दशक में मलेरिया के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ गई, और 976 में देश भर में 60 लाख 45 हजार केस दर्ज किए गए। मलेरिया की रोकथाम के तमाम प्रयासों के कारण रोगियों की संख्या काफी घट गई लेकिन 990 के दशक में यह रोग नई ताकत के साथ वापस लौट आया। इसकी वापसी के कारणों में कीटनाशकों के खिलाफ मच्छरों की प्रतिरोधकता, खुले स्थानों में मच्छरों की बढ़ती तादाद एवं जल परियोजनाओं, शहरीकरण, औद्योगीकरण, मलेरिया परजीवी के रूप बदलने और क्लोरोक्निन तथा मलेरिया की अन्य दवाइयों के खिलाफ प्लाज़्मोडियम ‘फाल्सिपेरम की प्रतिरोध क्षमता मुख्य थे। मलेरिया उन्मूलन की दिशा में ओडिशा एक प्रेरणा र्नोत के रूप में उभरकर सामने आया है। हाल के वर्षों में इसने अपने “दुर्गग अंचलारे मलेरिया निराकरण” नामक पहल के माध्यम से मलेरिया के प्रसार पर अंकुश लगाने तथा परिणाम प्राप्त हुए हैं। भारत में मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख मोड़ 205 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान आया जब देश ने 2030 तक इस बीमारी को खत्म करने का संकल्प लिया था। 2077 में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने लगभग एक करोड़ मच्छरदानियां वितरित करने में मदद की | यह कदम सबसे जोखिमग्रस्त क्षेत्रों में सभी निवासियों को मलेरिया जैसे रोगों से सुरक्षा प्रदान करने के लिये आवश्यक था। इनमें आवासीय विद्यालयों के छात्रावास भी शामिल थे। अपने निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप ओडिशा ने साल 207 में मलेरिया के मामलों और उसके कारण होने वाली मौतों में 80 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की। इस योजना का उद्देश्य राज्य के दुर्गग और सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों के लोगों तक सेवाओं का उसके निदान और उपचार के व्यापक प्रयास किए हैं। इन प्रयासों के चलते बहुत ही कम समय में प्रभावशाली विस्तार करना है। स्पष्ट है कि मलेरिया उन्मूलन के वैश्विक प्रयासों को आगे बढ़ाने में भारत एक अग्रणी देश के रूप में सामने आया है। मलेरिया उन्मूलन के मामले में भारत की सफलता मलेरिया से सर्वाधिक प्रभावित अन्य देशों को इससे निपटने के लिये एक उम्मीद प्रदान करती है। इसके अलावा सरकार ने विभिन्न माध्यमों से मलेरिया उन्मूलन सम्बंधी जागरूकता अभियान चलाया। मलेरिया उन्मूलन पर फिल्में एवं रेडियो कार्यक्रम बनाए गए। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण किया गया। इसके अलावा विज्ञान प्रसार द्वारा एडूसेट के माध्यम से मलेरिया सम्बंधी जागरूकता कार्यक्रमों को देश भर में कार्यरत 52 केंद्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया गया । सीएसआईआर ने मलेरिया पर एक राष्ट्रीय निबंध प्रतियोगिता का आयोजन विज्ञान प्रसार के साथ किया। इस प्रकार विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मलेरिया सम्बंधी जागरूकता के जृरिए लोगों का ध्यान बीमारी की गंभीरता और रोकथाम की ओर आकर्षित किया गया।