अब देश में न तो संविधान सर्वोपरी रहा है और न ही राजनीति के माध्यम से जनसेवा अब सबसे सर्वोपरी हो गया है चुनावी जीतना….. और उसके लिए जो भी करना पड़े सब के लिए आज के राजनेता तैयार है, इसका ताजा उदाहरण है सारे देश में लागू किया जाने वाली सामान्य नागरिक संहिता (यूसीसी), जिसे तत्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए गुजरात में लागू करने की माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा घोषणा की गई है और गुजरात के मुख्यमंत्री को इसे लागू करने के तरीकों पर विचार करने के लिए एक समिति गठित करने की भी जिम्मेदारी सौंप दी गई है, अब यह हर किसी की समझ बाहर है कि सारे देश के लिए लागू होने वाला कानून एक चुनावी राज्य विशेष में कैसे लागू किया जा सकता है, प्रधानमंत्री जी की इस घोषणा पर कई सवाल खड़े किए जा रहे है, उल्लेखनीय है कि मोदी जी की सरकार ने ही समान नागरिक संहिता तथा सीए, (नागरिक संशोधन अधिनियम) को पूरे देश में लागू करने की घोषणा कर रखी है तथा इनके बारे में राज्यों की सरकारों से चर्चा भी जारी है। प्रधानमंत्री जी की इस चुनावी घोषणा पर सबसे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ही सवाल उठाए है तथा कहा है कि जो कानून पूरे देश में लागू करना प्रस्तावित है, वह चुनावी लाभ के लिए किसी एक राज्य में लागू कैसे किया होना है। इसकी जगह प्रधानमंत्री जी को यथाशीघ्र पूरे देश में इस प्रस्तावित कानून को वैधानिक दर्जा देकर लागू करने की पहल करना चाहिए, जिससे पूरे देश के नागरिक अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सके । प्रधानमंत्री जी इन दिनों गुजरात के तीन दिनी चुनावी दौरे पर हैए इनके इसी दौरे के कारण चुनाव आयोग ने गुजरात विधानसभा के चुनावों की विधिवत घोषणा रोक रखी है, जबकि गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश की विधानसभा के चुनावों की तिथियों व कार्यक्रम की घोषणा कितने दिन पूर्व ही कर दी गई । वैसे राजनीतिक प्रेक्षकों का मौजूदा जा सकता है, उत्तराखण्ड में भी चुनाव के समय माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा इसी तरह की घोषणा की गई थी, जो चुनावों के बाद भुला दी गई, अब गुजरात में भी यही हालातों पर कहना है कि गुजरात के चुनावों को भाजपा ने इससे पहले कभी इतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितना कि इस बार लिया जा रहा है, प्रेक्षकों का कहना है कि प्रत्तातित कानून को चुनावी मुद्दा बनाना कहाँ तक उचित हाल ही में केन्द्र सरकार को गुजरात चुनावों के बारे में मिली गोपनीय रिपोर्ट के बाद भाजपा ने गुजरात के प्रति गंभीर रूख अपनाया है, रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी की बढ़त बताई जा रही है, जिसके कारण प्रधानमंत्री जी की चिंताएं बढ़ गई है और वे सब काम छोड़कर गुजरात के प्रचार कार्य में व्यस्त हो गए है, चूंकि गुजरात प्रधानमंत्री जी का गृह प्रदेश है और वहां गैर भाजपा सरकार यदि बन जाती है तो सारे देश में उसका संदेश जाएगा, जिससे भाजपा संकट में आ सकती है, इसलिए प्रधानमंत्री जी इस दिशा में काफी सक्रीय हो गए है और उन्हीं की मंशा के अनुसार चुनाव आयोग ने गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान भी रोक रखा है, जो अब नवम्बर के पहले हफ्ते में ही संभावित है। किंतु फिर वहीं सवाल…. वह यह कि आखिर पूरे देश पर लागू किए जाने वाले या प्रस्तावित कानूनों को किसी राज्य विशेष के लिए चुनावी मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है? और सम्बंधित चुनावी राज्य के मुख्यमंत्री को उक्त कानून लागू करवाने के लिए समिति गठित करने का अधिकार क्यों दिया गया है? क्या इसे राजनीति की चरम सीमा नहीं कहा जाएगा? लेकिल कहा क्या जाए? अभी तक तो सिद्ध ‘प्यार व युद्ध’ के लिए ही सब कुछ जायज था किंतु अब उसमें लगता है राजनीति को भी जोड़ दिया गया है, इसीलिए अपने राजनीतिक मकसद की पूर्ति हेतु राजनीति का हर तरीके से उपयोग .दुरूपयोग किया जा रहा है। धन्य है, हमारी राजनीति और उसके धारक हमारे राजनेता?