हरियाणा विधानसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है और आज यानी 3 अक्टूबर को चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। इस चुनावी माहौल में जहां नेता और उम्मीदवार मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं कई दलबदलू नेताओं की जुबान फिसल रही है। दिलचस्प बात यह है कि ये नेता कभी अपनी पार्टी की नीतियों की आलोचना करते हुए विरोधी पार्टी की तारीफ करने लगते हैं, तो कभी अपनी पुरानी पार्टी के लिए वोट की अपील कर बैठते हैं। ऐसे नेता और उम्मीदवारों की सूची में अधिकतर नाम दलबदलुओं के हैं। आइए नजर डालते हैं उन घटनाओं पर जब उम्मीदवार और नेता प्रतिद्वंद्वी पार्टी के लिए वोट मांगते नजर आए।
डॉक्टर एमएल रंगा का बयान
रेवाड़ी की बावल सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार डॉक्टर एमएल रंगा पत्रकारों से बात कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने गलती से अपनी ही पार्टी की आलोचना कर दी। डॉक्टर रंगा ने कहा, “मुझे तो ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस की दमनकारी नीतियों और कुरीतियों से पूरा विधानसभा क्षेत्र और प्रदेश परेशान है।” यह सुनकर उनके ही साथी ने उन्हें याद दिलाया कि वे खुद कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। इसके बाद रंगा ने अपनी गलती सुधारी और कहा कि कांग्रेस की नीतियां बेहतर हैं जबकि बीजेपी की नीतियां दमनकारी हैं।
बलवान दौलतपुरिया की गलती
फतेहाबाद सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे बलवान दौलतपुरिया ने भी चुनाव प्रचार के दौरान कुछ ऐसा ही कर दिया। लंबे समय तक इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) के साथ रहे बलवान एक जनसभा में भाषण देते वक्त भूलवश हाथ की जगह चश्मे के निशान पर बटन दबाने की अपील कर गए। INLD का चुनाव चिन्ह चश्मा है और बलवान दौलतपुरिया अपने पुराने सहयोगी दल के निशान का नाम ले बैठे।
महावीर गुप्ता और निशान सिंह का बयान
कुछ इसी तरह महावीर गुप्ता और निशान सिंह जैसे नेता भी चुनावी माहौल में अपनी पुरानी पार्टी की तारीफों में लग गए। बीजेपी से जुड़े महावीर गुप्ता ने एक जनसभा में अपने भाषण के दौरान कांग्रेस की नीतियों की प्रशंसा कर दी। वहीं, कांग्रेस के नेता निशान सिंह ने भी चुनावी रैली में गलती से बीजेपी की नीतियों को सराहनीय बता दिया।
राजनीति में दलबदल और जुबान फिसलने की घटनाएं
हरियाणा चुनाव में नेताओं की जुबान फिसलने के ऐसे कई किस्से सामने आ रहे हैं, जिनमें अधिकतर दलबदलू नेता हैं। राजनीति में दलबदल कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब नेता अपनी पुरानी पार्टी की नीतियों की तारीफ या नई पार्टी की आलोचना करते दिखते हैं, तो यह चुनावी मैदान में चर्चा का विषय बन जाता है।
चुनावी महत्त्व और राजस्थान की राजनीति में भी चर्चा
हरियाणा के चुनावी परिदृश्य में इस तरह की घटनाएं न केवल राज्य के भीतर बल्कि अन्य राज्यों जैसे राजस्थान की राजनीति में भी चर्चा का विषय बन रही हैं। दलबदल के चलते नेताओं की जुबान फिसलना दिखाता है कि राजनीति में दल बदलने के बाद नए दल की नीतियों को पूरी तरह से समझना और उसके अनुसार खुद को ढालना आसान नहीं होता।
राजस्थान और हरियाणा की राजनीति में ऐसे कई दलबदलू नेताओं के उदाहरण हैं, जिन्होंने पहले एक पार्टी की नीतियों का समर्थन किया, लेकिन अब विरोधी दल में शामिल होने के बाद अपनी पुरानी पार्टी की आलोचना करना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि चुनाव के दौरान किसी भी नेता या उम्मीदवार की एक छोटी सी गलती चुनावी माहौल को बदल सकती है।