भारत में डिजिटल ऑनलाइन सेवाएं तथा यूपीआई लेनदेन मेंए पिछले कई वर्षो में बड़ी तेजी के साथ विस्तार हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूपीआई लेनदेन ने रिकॉर्ड 2.। लाख करोड़ का आंकड़ा, छू लिया है। इसके साथ ही धोखाधड़ी के मामले भी चार गुना ज्यादा रफ्तार से बढे हैं पिछले । । साल में अपराधों में 364 फीसदी की वृद्धि हुई है। जो पिछले वर्ष की तुलना से 4 गुना ज्यादा है। इसी तरह एनसीआरटी के पोर्टल पर कुल साइबर अपराधों की संख्या 2,37,658की संख्या पर पहुंच गई है। जो पिछले वर्ष की तुलना में ढाई गुना बढ़ गई है। भारत में डिजिटल प्लेटफॉर्मस के द्वारा हर सरकारी कामकाज, लेनदेन, ई-कॉमर्स, ईसर्विसेज, बड़ी तेजी के साथ आम आदमी तक पहुंच रही हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें अनिवार्य करने का नियम बनाये हैं। यह सभी सेवाएं ऑनलाइन अनिवार्य किए जाने से ऑनलाइन अपराध भी बड़ी तेजी के साथ बढे हैं। पिछले वर्षों में अपराधों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। सरकारें कान में रुई डाल कर बैठी हुई है। साइबर क्राइम को पकड़ पाने में साइबर क्राइम के लोग असफल हैं। अपराधी उनसे कई कदम हैं। अपराध होने के बाद क्राइम विभाग के लोग अनुसंधान करके कुछ आगे बढ़ते हैं। उन से 4 गुना ज्यादा अपराधी बढ़ जाते हैं । लोगों को सरकार ने अब जनता में भी नाराजी देखने को मिल रही डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए केंद्र सरकार को जो नियम कानून कई वर्षों पूर्व बना लेने चाहिए थे। वह आज तक नहीं बन पाए हैं। डिजिटल तकनीकी भारत के लिए नई व्यवस्था थी। इसके लिए सरकार जब अनिवार्य करने जा रही थी । तब आम लोगों भी प्रशिक्षित स्टाफनहीं है। शिकायत होने के बाद भी लोगों को कोई निजात नहीं मिलती है। सरकार जोर-शोर से प्रचारप्रसार के लिए बड़े-बड़े दावे करती है। लेकिन स्थिति उसके उलट होती है। साइबर अपराधों से निपटने के लिए जब केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास पर्याप्त संसाधन और कर्मचारी ही नहीं है। उसके बाद भी आम की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी थी। सारी चीजें ऑनलाइन कर दी गईएलेकिन आम जनता को ना तो उसका कोई प्रशिक्षण दिया गया । नाही नुकसान या गलती होने पर उन्हें कानूनी संरक्षण दिया गया। जिसके कारण आम आदमी का जीना आज मुहाल हो गया है। हर तकनीकी जनता को नुकसान के इस दलदल में फेंक देना, कोई समझदारी का काम नहीं है। आज भी भारत में डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से जो अपराधिक घटनाएं हो रही है। उसको रोकने के लिए पर्याप्त कानून नहीं हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के लोगों का शोषण कर रही हैं। का उपयोग आदमी की उन्नतिए विकास और बेहतरी के लिए होना चाहिए। लेकिन डिजीटल प्लेटफार्म जी-का जंजाल बन गया है। वह भी तब जब सरकार खुद ही डिजिटल प्लेटफॉर्म को अनिवार्य करके लोगों को मुसीबत में फंसा रही हो, तो इसमें सरकार को जिम्मेदारी लेना होगी । जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वह सरकारी हैं। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस के माध्यम से ऑनलाइन लेनदेन एवं साइबर क्राइम के इससे कई गुना ज्यादा मामले हैं। छोट-मोटे मामले में लोग शिकायतें दर्ज नहीं कराते हैं साइबर । अपराधों के लिए जो सेल बनाए गए हैं। उनमें अपराध दर्ज नहीं किए जाते हैं। साइबर क्राइम की जांच एकाधिकार और बाजारवाद से शोषित कर रहे हैं। आम जनता का बड़े पैमाने पर शोषण हो रहा है । सरकार आंख बंद करके बैठी हुई है। महंगाई बेरोजगारी के इस युग में अब आम जनता का गुस्सा अब फूटने लगा है। कहावत हैए गरीब की लुगाई सब की भौजाई। यही हालत आज जनता की हो गई है। चारों ओर से जनता लुट रही है। लेकिन उसको बचाने के लिए ना तो केंद्र सरकार आगे आ रही है। नाही राज्य सरकारें आगे आ रही हैं। आम आदमी लगातार लुट-पिट रहा है। आम जनता लगातार परेशान होकर आत्म हत्या करने लगा है। सरकार में संवेदनशीलता नहीं भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है । इस स्थिति में करने के लिए सरकार के पास 0 फ़ीसदी है।यह चिंता का विषय है।