हिंडन बर्ग की रिपोर्ट आने के बाद अडानी समूह का साम्राज्य ताश के पत्तों की तरह ढहढहाना शुरू हो गया है। शेयर मार्केट, जांच एजेंसियों और सरकार द्वारा अडानी समूह को बचाने की जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोशिशें की जा रही हैं। उससे भारत सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती विदेशी निवेशकों का भरोसा बनाए रखने की है। भारत सरकार,भारत के शेयर बाजार, भारत की जांच एजेंसियों और भारत के नियम कानून पर वैश्विक संस्थाओं का विश्वास बना रहेगा, या वह टूट जाएगा। वर्तमान स्थिति में यह बहुत जरूरी हो गया है। अन्यथा हमारी भी हालत पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों की तरह हो जाएगी। हिंडन बर्ग की रिपोर्ट में जो खुलासे किए गए हैं । उन आरोपों की भारत सरकार को जांच करानी चाहिए थी। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। भारत की शासन व्यवस्था संविधान, कानून और नियमों से संचालित होती है। जिस तरह से रिपोर्ट के तथ्यों को झुठलाया या दबाया जा रहा है। उससे विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत के बाजार,भारत की संवैधानिक संस्थाओं को लेकर डगमगा रहा है। संसद में जिस तरह से सरकार ने इस मामले को दबाने का प्रयास किया है। उसकी प्रतिक्रिया अंतरराष्ट्रीय जगत में अविश्वास और आश्चर्य के रूप में हो रही है ।ग्रिपेन ई लड़ाकू विमान बनाने के लिए साब और अडानी समूह के बीच हुआ समझौता खत्म हो गया है। भारत में फाइटर जेट बनाने के लिए 207 में एमओयू हुआ था। साब समूह ग्रिपेन लड़ाकू विमान बनाता है और इसे मिग-24 का उन्नत संस्करण माना जाता है। अडानी समूह ने अपने आर्थिक घोटाले और फर्जीवाड़े को जिस तरह से राष्ट्रपर हमला बताकर बचने का प्रयास किया है | उसके तुरंत बाद भारत की वैश्विक अर्थव्यवस्था रैंकिंग मे पांचवें स्थान से छठवें स्थान पर खिसक गई है। हर्षद मेहता और केतन पारेख के समय भारतीय शेयर बाजार में जो घोटाले हुए थे । उस समय भारतीय शेयर बाजार अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए नहीं खुला हुआ था। जो भी घपले घोटाले हुए,मुनाफावसूली हुई | वह भारत के अंदर ही रही। उसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर नहीं पड़ा था। तब यह भारत का आंतरिक मामला था। 2004 के बाद से विदेशी निवेशक शेयर बाजार के माध्यम से भारतीय कंपनियों में बड़ी मात्रा में निवेश करते हैं। जिसके कारण अब अंतरराष्ट्रीय निवेशक भी भारत के शेयर बाजार, भारत की संवैधानिक व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाओं के क्रियाकलापों और भारतीय नियम कानूनो का असर उन पर भी समान रूप से पड़ता है। हिंडन बर्ग की रिपोर्ट ने क्रोनी कैपटीलिज्म से जुड़े कई मुद्दों को उठाया है। भारत सरकार और भारतीय जांच एजेंसियों ने उस पर जांच करने के स्थान पर, अडानी समूह की कंपनियों के बचाव करने का तरीका अख्तियार किया है । जिसके कारण वैश्विक संस्थाओं और निवेशक, भारतीय संस्थाओं पर भरोसा करने लायक स्थिति में नहीं रहे। भारत की न्याय व्यवस्था को लेकर वैश्विक स्तर पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जिस तरीके से कारपोरेट कंपनियों के पक्ष में एकाकी न्यायिक व्यवस्था महसूस की जा रही है। नियमों और फैसले का आधार अलग-अलग वर्गों के लिए अलग-अलग तरीके से हो रहा है। भारत की न्याय व्यवस्था में कारपोरेट का जिस तरह से प्रभाव देखने को मिल रहा है। उससे भारतीय न्याय व्यवस्था की साख सारी दुनिया में कम हुई है। खरबों डॉलर से जुड़े मामले में सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने लचर याचिका की दुहाई देते हुए, हिंडन बर्ग के खिलाफ कार्रवाई करने से इंकार कर दिया है। यह इसका बड़ा सबूत है। हिंडन बर्ग पर दायर पीआईएल बेतुकी होने के साथ-साथ मामले को भटकाने का प्रयास भी माना जा रहा है। कोरोना लॉकडाउन के 2 साल के अंधेरे में जब सारे कामकाज बंद थे। भारत सहित सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था रुकी हुई थी। उस समय अडानी समूह की पूंजी, मुनाफा और कारोबार, दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से कागजों पर बढ़ती ही जा रही थी । दुनिया में पहली बार जिस तरीके से अडानी समूह ने दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा, धोखाधड़ी, कर चोरी, बेनामी कंपनियां, टैक्स हेवन,हवाला एवं राजनेताओं से मिलकर अनैतिक कार्यों को किए जाने का आरोप लगाया है। आरोपों को लेकर भारत सरकार, भारत की न्यायिक व्यवस्था, संवैधानिक संस्थाएं, जांच कराने के स्थान पर जिस तरह से दबाने का प्रयास कर रही हैं। संसद में सरकार ने जिस तरह से इस घोटाले को दबाने का प्रयास किया है। सरकार जेपीसी अथवा ईडी इत्यादि के माध्यम से जांच कराने तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में वैश्विक वित्तीय संस्थाओं ओर वैश्विक निवेशकों का भरोसा भारत सरकार और भारतीय शेयर बाजार पर बनाये रखना मुश्किल हो रहा है। भारत सरकार ने हर स्तर पर अडानी समूह की मदद, पिछले 0 दिनों में करने की कोशिश की है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, अडानी समूह की आर्थिक गड़बड़ी के गड्डे में जितना भी पानी डालेंगे,बह कुछ ही समय में गड्ढा सोख लेगा। गड्ढे को भरे बिना कोई उपचार इस बीमारी से बाहर निकलने का नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में यदि भारत को अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये रखना है, तो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं और वैश्विक कारोबारियों का भरोसा बनाए रखना, भारत सरकार की वर्तमान समय में सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार एवं संवैधानिक संस्थाओं द्वारा गंभीरता से विचार किये जाने की जरूरत है।
विदेशी निगेशकों का भरोम्ता बनाए ना सक्रे छड़ी बुतोत़ी
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