राहुल गांधी की मध्यप्रदेश- यात्रा सर्वाधिक सफल रहने की उम्मीद है। पिछले तीन-चार दिनों में मुझे यहां के कई लड़कर अपनी जान दे दी जबकि आरएसएस अंग्रेजों की मदद करता रहा। उन्होंने संघ द्वारा आदिवासियों को शहरों और गांवों से गुजरने का अवसर मिला है। जगह.जगह राहुल कमलनाथ दिग्विजयसिंह और स्थानीय नेताओं के वनवासी कहने पर भी आपत्ति की क्योंकि आदिवासियों की सेवा करनेवाले संघ के संगठन इसी नाम का इस्तेमाल करते हैं। पोस्टरों से रास्ते सजे हुए हैं। लेकिन राहुल के कुछ बयान इतने अटपटे होते हैं कि वे इस यात्रा पर पानी फेर देते हैं । जैसे जातीय जन-गणना और सावरकर पर कुछ दिन पहले दिए गए बयानों ने यह सिद्ध कर दिया था कि वह अपनी दादीजी और माताजी की राय के भी विरूद्ध बोलने का साहस कर रहे हैं। ये कथन सचमुच साहसिक होते तो प्रशंसनीय भी शायद कहलाते। लेकिन वे साहसिक कम अज्ञानपूर्ण ज्यादा थे। इसके लिए असली दोष उनका है जो राहुल को पर्दे के पीछे से पट्टी पढ़ाते रहते हैं । अब मप्र के महान स्वतंत्रता सेनानी टंट्या भील के जन्म स्थान पर पहुंचकर उन्होंने कह दिया कि टंट्या भील ने अंग्रेजों के विरुद्ध राहुल से कोई पूछे कि क्या ये आदिवासी शहरों में रहते हैं घ् जो वनों में रहते हैं उन्हें वनवासी कहना तो एकदम सही है। आदिवासी शब्द का इस्तेमाल कबाइली या ट्राइबल के लिए हुआ करता था लेकिन उस समय यह सवाल भी उठा था कि क्या सिर्फ आदिवासी लोग भारत के मूल निवासी हैं? बाकी सब 80-90 प्रतिशत लोग क्या बाहर से आकर भारत में बस गए हैं? मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने टंट्या भील को एक महानायक का सम्मान दिया है। इसी प्रकार संघ को अंग्रेज का समर्थक बताना भी अपने इतिहास के अज्ञान को प्रदर्शित करना है। राहुल का भोलापन अद्भुत है। उस पर कुर्बान जाने का मन करता है। देश की स्वाधीनता का ध्वज फहरानेवाली महान पार्टी कांग्रेस के पास आज कोई परिपक्क नेता नहीं है यह देश का दुर्भाग्य है। यह ठीक है कि हमारे देश में कुछ नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए लेकिन उनका ज्ञान राहुल जितना या उससे भी कम रहा होगा लेकिन उनकी खूबी यह थी कि वे अपने चारों तरफ ऐसे लोगों को सटाए रखते थे जो उन्हें लुढ़कने से बचाए रखते थे। कांग्रेस के पास आज मोदी के विकल्प के तौर पर न तो कोई नेता है और न ही नीति है लेकिन इस अभाव के दौरान राहुल की यह भारत-यात्रा बेचारे निराश कांग्रेसियों में कुछ आशा का संचार जरुर कर रही है लेकिन यदि अपने बयानों में राहुल थोड़ी रचनात्मकता बढ़ा दें और किसी के भी विरुद्ध निराधार अप्रिय टिप्पणियां न करें तो यह यात्रा उन्हें शायद जनता से कुछ हद तक जोड़ सकेगी ।
राहुल का अद्भुत भोलापन
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