राजस्थान उपचुनाव क्यों हो रही है रविंद्र सिंह भाटी की चर्चा राजस्थान में आगामी 13 नवंबर को सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, और इसके साथ ही प्रदेश में चुनाव प्रचार और सियासी गहमागहमी अपने चरम पर है। इसी माहौल में, भले ही चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से न उतरने के बावजूद, रविंद्र सिंह भाटी का नाम चर्चा में है। उनका एक बयान इन उपचुनावों के संदर्भ में वायरल हो रहा है, जिसने चुनावी सियासत में हलचल मचा दी है।
रविंद्र सिंह भाटी के बयान का असर
हालांकि भाटी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनका बयान सियासी गलियारों में गूंज रहा है। उन्होंने कहा है कि अगर उनसे सहयोग मांगा गया तो वह भी प्रचार में शामिल हो सकते हैं। इस बयान का असर अब देवली-उनियारा सीट पर देखा जा सकता है, जहां कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नरेश मीणा ने नामांकन भरा है। भाटी ने संकेत दिए हैं कि यदि नरेश मीणा उनसे समर्थन मांगते हैं, तो वह उनका प्रचार करेंगे, क्योंकि वे छात्र राजनीति से उभरे एक युवा नेता हैं। भाटी ने स्पष्ट किया कि ऐसे युवा नेताओं का विधानसभा में पहुंचना राज्य के विकास और राजनीतिक सुधारों के लिए अहम हो सकता है।
चौरासी सीट पर भारत आदिवासी पार्टी का समर्थन
चौरासी विधानसभा सीट पर भी भाटी ने भारत आदिवासी पार्टी का समर्थन देने का ऐलान किया है। इस कदम को भाटी ने आदिवासी समुदाय के विकास के लिए जरूरी बताया है और कहा है कि उनका समर्थन उन लोगों के साथ है जो क्षेत्रीय विकास और सामाजिक समानता के लिए काम कर रहे हैं।
हनुमान बेनीवाल का समर्थन और “5 पांडव” पोस्टर
इसी बीच, नरेश मीणा के समर्थन में एक “5 पांडव” नामक पोस्टर भी सामने आया, जिसमें नरेश मीणा के साथ राजकुमार रोत, हनुमान बेनीवाल, रविंद्र सिंह भाटी और चंद्रशेखर आजाद नजर आ रहे हैं। इस पोस्टर ने सियासी तापमान और बढ़ा दिया है, और विपक्षी दलों में हलचल मचा दी है।
हनुमान बेनीवाल का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वे नरेश मीणा के समर्थन की घोषणा कर रहे हैं। बेनीवाल ने कहा है कि वे नरेश मीणा के समर्थन में प्रचार करेंगे और उन्हें इस चुनाव में जिताने के लिए जनता से वोट की अपील करेंगे।
राजस्थान के इन उपचुनावों में, सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। इस चुनावी महौल में जहां बागियों के तेवर नजर आ रहे हैं, वहीं नए समीकरण बनते-बिगड़ते दिख रहे हैं। देखना यह होगा कि भाटी और बेनीवाल के समर्थन से इन निर्दलीय उम्मीदवारों को कितनी मजबूती मिलती है और इसका चुनाव परिणामों पर क्या असर पड़ता है।