वे सियासत के बाजीगर हैं जैसे सब्जी में आलू है वैसे राजनीति में उनका जलवा है। सच पूछें तो राजनीति में उनकी अहमियत आजकल टमाटर से भी अधिक है। राजनीति उनका धंधा है। वह राजनीति को विपक्ष की तरह पार्ट टाइम जॉब नहीं मानते हैं। वह राजनीति को ओढ़ते दसाते और बिछाते हैं। उसी की खाते हैं और उसी की गाते हैं वह जिस पार्टी से हैं उसका जलवा है। वह गंगा जैसी पवित्र है, विपक्ष का कोई राजनेता चाहे वह| जितना भ्रष्टाचारी हो उनकी पार्टी में पहुंच कर शिष्टाचारी बन जाता है। उसके दाग धूल जाते हैं। वह एबीसीडी की जांच से मुक्त हो जाता है। जिस तरह दिन-महीने-साल गुजरते जाते हैं, उसी तरह वह विपक्ष को तोड़ते जाते हैं । जैसे उफनाती नदिया आखिर गिरेंगी कहां उन्हें तो समुद्र में गिरना है ठीक । उसी तरह विपक्ष भी उनकी समुद्ररूपी पार्टी में समाहित हो जाता है। जहाँ उसके पाप धूल जाते हैं क्योंकि उनकी पार्टी ऐसी गंगा है जो पापियों का पाप धोते-धोते मैली नहीं और निर्मल हो जाती है। विपक्ष के लोग जहाँ जीतकर भी अपनी सरकार नहीं बना पाते वहां उनकी पार्टी जोड़तोड़ कर अपनी सरकार बना लेती है। जबकि विपक्ष घोड़ेबेच कर सोता रहता है उसी तरह जैसे राजा को पता नहीं वनवासियों ने वन बांट लिया। विपक्ष भी सोचता है कि हम कितनी भी कोशिश करें सरकार तो बाजीगर की बनेगी । उनकी पार्टी दिन. रात बाजीगरी में जुटी रहती है। वह दूसरों का घर तोड़ती है और अपना बसाती है । साहब की बाजीगरी कमाल की है। अब देखिए, राजनीति में अपनी बाजीगरी का लोहा मनवाने वाले क्षत्रप चाचाजी नाकों से चना चबा रहें हैं। बेचारे चाचाजी की बुढ़कती खराब हो गयीं । विपक्ष की एका करने निकले चच्चा को बाजीगर ने गच्चा दे दिया। बेचारा भतीजा भी उनका नहीं हुआ। चाचाजी परेशान हैं । विपक्ष को कौन कहे एक करने की वह खुद बिखर गए। अब चाचा को कौन समझाए कि भतीजे को सत्ता की चटनी चाटने की लत पड़ गयीं है। फिर टमाटरए] धनिया और अदरक कितना भी महंगा हो भतीजा चटनी चाटने का जुआड़ सियासी गठबंधन के जरिए गाँठ ही लेगा ।बाजीगर के सियासी बाजीगरी की दुनिया कायल है। वह अपने झोले में एक से बढ़कर एक जादू की पुड़िया रखते हैं। जब से काम नहीं चलता है तो वशीकररण जंतर जंतर का प्रयोग करते हैं। उस मंतर का प्रयोग करते ही पूरा विपक्ष विक्षिप्त होकर बिखर जाता है। इहाजा ईडी यानी एडवांस डिपॉर्टमेंट से बचने के लिए बाजीगर बाबा की जंतर पहन उनकी पार्टी में अस्तुति गान संकट कटै मिटै सब पीराए जो सुमिरै बाजीगर बीराज्कहते हुए समाहित हो जाता है। फिर वह सत्ता की चटनी बेफिक्र होकर भतीजे की तरह चाटता है। बाजीगर को सत्ता बेहद प्रिय है। वह उसे कभी छोड़ना नहीं चाहते है। इसलिए जोड़तोड़ और तोड़फोड़ में अधिक विश्वास रखते हैं । उन्हें टमाटर, धनिया, अदरक से क्या मतलब यह तो आम आदमी की जरूरत है। भला बाजीगर से महंगाई से कया ताह्लुक उन्हें यह सब न खाना है और न खरीदना है। चूल्हा-चौका जाए भाड़ में उनका तो बस एकसूत्री नारा है विपक्ष तोड़ो खुद को सत्ता से जोड़ों चुनाव में जीत किसी हो, शपथ भले कोई ले, लेकिन बाजीगर की पार्टी बाबा की तरह विपक्ष में बैठकर भी अनुलोम-विलोम करती रहती है। गले की तरह उसकी नजर विपक्ष पर गड़ाए रहती है। मौका मिलते ही शिकार को गटक लेती है। तभी तो लोग कहते हैं कुछ भी हो आएगा तो बाजीगर ही । बाजीगर…. बाजीगर….. ओ बाजीगरए तू है बड़ा जादूगर । स
राजनेता चाहे वह नितना भ्रष्चारी हो पार्दी मे पहुंच का गिष्टाचारी बन जाता है
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