भारत पर लगा आरोप रूस को प्रतिबंधित टेक्नोलॉजी की सप्लाई अमेरिकी और यूरोपीय अधिकारियों ने हाल ही में भारत पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि वह रूस को उन तकनीकी उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है, जिन पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन प्रतिबंधित तकनीकों का इस्तेमाल रूस अपने हथियारों के निर्माण और युद्ध के दौरान कर रहा है। इससे भारत रूस का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है, जो वैश्विक राजनीति और यूक्रेन के सहयोगी देशों के लिए चिंता का कारण है।
टेक्नोलॉजी पर बैन के बावजूद सप्लाई
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत रूस को उन तकनीकी उपकरणों का निर्यात कर रहा है, जिन पर अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। इस सप्लाई के चलते रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा किए गए उस वादे का कोई मतलब नहीं रह जाता, जिसमें उन्होंने युद्ध में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की सप्लाई पर रोक लगाने की बात कही थी। अधिकारियों ने बताया कि भारत अब रूस को माइक्रोचिप्स, सर्किट और मशीन टूल्स जैसी संवेदनशील और प्रतिबंधित वस्तुओं की सप्लाई कर रहा है।

निर्यात का बढ़ता स्तर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत से रूस को अप्रैल और मई के बीच 6 करोड़ डॉलर से ज्यादा का निर्यात हुआ, जो इस साल के पहले महीनों की तुलना में लगभग दोगुना था। जुलाई में यह आंकड़ा 9.5 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था। इन तकनीकी वस्तुओं के निर्यात में भारत के बाद केवल चीन ही रूस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
भारत की चुप्पी और पश्चिमी देशों की निराशा
अमेरिका और यूरोपीय देशों के अधिकारियों के अनुसार, यूक्रेन के सहयोगी देशों के लिए यह स्थिति निराशाजनक है। पश्चिमी दूतों द्वारा इस मुद्दे को उठाने पर भी भारतीय समकक्षों की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली है। जब इस बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय से पूछा गया, तो उन्होंने टिप्पणी करने से मना कर दिया।
रूस तक पहुंच रही संवेदनशील तकनीक
रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस के सैन्य-औद्योगिक परिसर में बड़ी संख्या में सेंसिटिव टेक्नोलॉजी पहुंच रही है, जिसमें भारत का योगदान लगभग पांचवां हिस्सा है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को ढाई साल हो चुके हैं, लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए रूस की सैन्य क्षमताओं को सीमित करने में मुश्किलें आ रही हैं।
भारत की भूमिका ने पेश की नई चुनौती
भारत द्वारा ऐसे प्रतिबंधित सामानों की शिपमेंट ने एक नई चुनौती खड़ी की है, क्योंकि पश्चिमी देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहते हैं। दूसरी तरफ, पीएम मोदी रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ भी संबंध विकसित कर रहे हैं, और रूस से तेल खरीद में भारत सबसे बड़ा खरीदार बन चुका है।
रूस ने इन तेल बिक्री से बड़ी मात्रा में धन जमा किया है, जो यूक्रेन युद्ध के दौरान उसकी अर्थव्यवस्था को सहारा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
इस घटनाक्रम से भारत, रूस और पश्चिमी देशों के बीच के संबंधों में एक नया मोड़ आ गया है, जिससे वैश्विक राजनीति और भू-राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
लेखक परिचय:
राजेश भारती, नवभारत टाइम्स ऑनलाइन में असिस्टेंट न्यूज़ एडिटर के तौर पर काम करते हैं। उन्हें पत्रकारिता में 15 सालों का अनुभव है। राजेश ने नवभारत टाइम्स, दैनिक भास्कर और लोकमत जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के लिए विभिन्न विषयों पर फीचर स्टोरी और रिपोर्टिंग की है।