राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में प्रदूषण की खतरनाक धुंध का गाढ़ा होना न केवल दुखद, बल्कि 670… गंभीर चिंता की बात है। दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 475 पाया गया, जो पिछले साल से ज्यादा है और अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लोग आमतौर पर इस प्रदूषण को | | अपनी सांसों व आंखों में महसूस करने लगे हैं। वायु गुणवत्ता बहाल करने के / लिए हरसंभव उपाय करने की जरूरत आ खड़ी हुई है। आने वाले दिनों में अगर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम ) खराब होती वायु गुणवत्ता के बीच प्रदूषणरोधी उपायों को बढ़ाने के लिए ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) के चरण चार को लागू रखे, तो ज्यादा बेहतर है। राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण की जो गंभीर स्थिति बनी है, उसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह पूरी जिम्मेदारी से काम करने का समय है। कहीं न कहीं सरकारों व सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी है, जिसकी वजह से ऐसे प्रदूषण के हालात बार-बार या हर साल बनने लगे हैं । इतना तो कोई भी बता सकता है कि प्रदूषण के खिलाफ बातें तो खूब हुई हैं, लेकिन वाजिब कदम नहीं उठाए गए हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ऐसे अनेक इलाके हैं, जहां प्रदूषण से बोझिल हवा व धुंध की वजह से 500 मीटर के बाद की चीजें भी नहीं दिखाई पड़ रही हैं। जो लोग इसके जिम्मेदार हैं, वे मुंह चुराने में जुटे हैं। आम तौर पर रात के समय प्रदूषण बढ़ जा रहा है, तो इसमें पराली की भूमिका समझी जा सकती है। चूंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार और हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार है, इसलिए. भी एक तरह की चुप्पी दिल्ली में दिख रही है। इस चुप्पी का उपचार पूरी विशेषता के साथ करना चाहिए। अनेक मौकों पर प्रदूषण की शिकायत सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंची है और कुछ उपाय और पैमाने निर्धारित हुए हैं, मगर जमीन पर उन्हें आजमाने में कोताही बरती गई है। वास्तव में, प्रदूषण की समस्या को जलभराव की समस्या की तरह लिया जाने लगा है। जैसे शहर में जलभराव को 365 दिनों में से 5 दिन की समस्या माना जाने लगा है, वहीं प्रदूषण को महीने भर की समस्या मानकर चलने की परिपाटी बनने लगी है। यह एहसास ही नहीं है कि प्रदूषण से हम लोगों की जिंदगी घटा रहे हैं । लोगों को जागरूक करने और प्रदूषण रोकने के लिए पाबंद करने में भी ढिलाई बरती जा रही है। आमतौर पर ग्रैप स्टेज चार को तब लागू किया जाता है, जब एक्यूआई 450 का आंकड़ा पार कर जाता है। इसके तहत दिल्ली में ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध के साथसाथ निर्माण गतिविधियों आदि पर प्रतिबंध लग जाता है। विचार करना चाहिए कि इस स्तर की सतर्कता एक्यूआई के 300 पार करते ही क्यों न आजमाई जाए? यह समय मुंह चुराने का कतई नहीं है, जिम्मेदारी बांटने का है। दिल्ली ही नहीं, देश के उन तमाम शहरों के बारे में सोचना पड़ेगा, जो दुनिया के प्रदूषित शहरों में रोज गिने जाते हैं। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों मे भारत के ॥7 शहर हैं। दुनिया के शीर्ष 3 प्रदूषित शहरों में सभी भारत के ही हैं। दक्षिण के शहरों से सभी को सीखना चाहिए, रांची की स्थिति अच्छी है, पर पटना और लखनऊ को सचेत हो जाना चाहिए। संभव है कि अगर छोटे शहर सचेत हो जाएं, तो बड़े शहरों में भी प्रदूषण घट जाए। अभी दिल्ली का दर्द सबको महसूस हो, इससे बेहतर कुछ नहीं ।
प्रदूषण का अंधेरा
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