भारत का लोकतंत्र 72 वर्ष पुराना हो गया है। इसने सारे उतार-चढ़ाव देखे राजनीतिक दल गुजरात पहुंच गए हैं। 27 साल से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी हैं। लोकतंत्र में जनता की सत्ता है। जनता अपना प्रतिनिधि चुनती हैं। ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक के लिए हर स्तर पर चुनाव होते हैं। आम जनता के अधिकार निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास पहुंच जाते हैं। बहुमत के आधार पर स्थानीय संस्थाओं राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार अधिकारों का उपयोग करते हुए शासन करती हैं। पिछले कुछ दशकों में लोकतंत्र का बहुमत अल्पमत में बदलता जा रहा है। जिसके कारण जन भावनाओं के अनुरूप शासन व्यवस्था नहीं चल पा रही हैं। शासन व्यवस्था में जोड़-तोड़ के लोकतंत्र के कारण अधिनायक वादी व्यवस्था बढ़ती जा रही है। जो लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। बहुमत बनाम अल्पमत चुनाव जीतना राजनीतिक दलों के लिए प्रबंधन की तरह हो गया है। वोटों का बंटवारा कराओ और चुनाव जीत जाओ। पिछले तीन-चार दशकों में यही हो रहा है। वोटों के बंटवारे की राजनीति से केंद्र एवं राज्य में अल्पमत की सरकारें बन रही हैं। मतदाताओं के मतों को विभाजित कराकर अल्पमत से बनी हुई सरकारें मनमानी कर रही हैं। विपक्ष बिखरा हुआ होता है। इसका लाभ सत्तापक्ष लगातार उठा रहा है। 25 से 35 फीसदी तक वोट पाने प्रतिनिधि चुनाव जीत जाते हैं उनकी । सरकारें बन जाती हैं। यदि बहुमत फिर भी नहीं मिल पाता है तो खरीद-फरोख्त और गठबंधन करके सरकारें बना ली जाती हैं। पिछले एक दशक में विपक्ष को जिस तरीके से कमजोर किया गया है। विपक्ष एवं जनता में भय का एक वातावरण बना दिया गया है। उसके बाद स्थिति और भी खराब होती जा रही है। गुजरात के चुनाव में लगभग यही स्थिति देखने को मिल रही है। इस बार कांग्रेस और भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के वोट बांटने के लिए कई राजनीतिक दल गुजरात पहुंच गए हैं। 27 साल से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का एकछत्र राज है। धार्मिक एवं सामाजिक ध्रवीकरण के कारण एक राजनीतिक दल को जो वोट मिलती थी अब उसमें बंटवारा होने जा रहा है। गुजरात की 82 विधानसभा सीटों में लगभग 64 सीटों में जबरदस्त वोटों का बंटवारा होता हुआ दिख रहा है। आम आदमी पार्टी और एआईआईएम पार्टी गुजरात में चुनाव लड़ रही कि वोटों का बंटवारा करने के लिए उम्मीदवार खड़े किए हैं । पिछले एक दशक में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए बड़े.बड़े वायदे कर दिए जाते हैं। जो सत्ता में नहीं होते हैं या आने की संभावना नहीं होती है। वह भी बड़े-बड़े वादे कर देते हैं। जिसके कारण क्षेत्र का समुचित विकास रुक जाता है। चुनाव के समय निम्न एवं गरीब वर्ग के मतदाताओं को कुछ आर्थिक सहायता देकर मतों को अपने पक्ष में करके चुनाव जोड़-तोड़कर जीत लिया जाता है। लेकिन उसके बाद संपूर्ण विकास की जो अवधारणा है। जो सरकारों की आर्थिक कठिनाइयों के कारण रुक जाती है। गुजरात के चुनाव में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण मतदाताओं को लुभाने के लिए आर्थिक आधार पर सहायता देकर सत्ता के सिंहासन को पाने के लिए लड़ाई हो रही है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के परंपरागत मतदाता के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए आम आदमी पार्टी के केजरीवाल और एआईआईएम की ओवैसी ने गुजरात में डेरा डाल दिया है। वोटों के बंटवारे का जितना नुकसान पहले कांग्रेस को होता था। उससे बड़ा नुकसान अब भारतीय जनता पार्टी को होता हुआ दिख रहा है। इससे भाजपा भी पहली बार गुजरात में परेशान दिख रही है। बहरहाल लोकतांत्रिक व्यवस्था में अल्पमत की सरकारों तथा विपक्षी दलों का सत्ता के सामने कमजोर होने के कारण लोकतांत्रिक और संवैधानिक व्यवस्थाएं दिनोंदिन कमजोर होती जा रही हैं । सत्ता में अधिनायकवाद बढ़ता चला जा रहा है। जनता के मौलिक अधिकारों का भी बड़ी तेजी के साथ हनन हो रहा है। अब समय आ गया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मताधिकार का उपयोग पक्ष और विपक्ष के बीच आम मतदाता की आवाज को मत संख्या के आधार पर उपयोग किया जाए। तभी जाकर जनता के अधिकार संविधान के अनुसार कायम बने रह सकेंगे। अन्यथा जिस तरीके से नियम कानून बनाकर आम जनता के अधिकारों पर सरकारों का शिकंजा कसता जा रहा है। उससे मतदाताओं के मौलिक अधिकार शनैरू शनैरू खत्म हो रहे हैं शनै. इस दिशा में अब ध्यान देने की जरूरत है।
जोड़-तोड़ का लोक तंत्र बांटो और राज करो?
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