राजस्थान विधानसभा के खींवसर उपचुनाव ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। यह सीट केवल चुनावी रणनीतियों का केंद्र नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई का भी मैदान बन गई है। इस बार चुनावी तापमान बढ़ता जा रहा है, जहां भाजपा ने कांग्रेस कैंप में सेंध लगाकर स्थिति को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, लेकिन असली मुकाबला तो मुख्यधारा से बाहर के नेताओं के बीच चल रहा है।
खींवसर सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि
खींवसर विधानसभा सीट पश्चिमी राजस्थान में स्थित है और यह उन नेताओं के लिए महत्वपूर्ण बन चुकी है, जो इस बार चुनावी दौड़ में नहीं हैं, लेकिन उनके प्रभाव का मुकाबला ज़ोरों पर है। यहां आएलपी की ओर से कनिका बेनीवाल, भाजपा से रेवत राम डांगा, और कांग्रेस से डॉ. रतन चौधरी मैदान में हैं। लेकिन असली टकराव आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल और भाजपा नेता ज्योति मिर्धा के बीच हो रहा है।
हनुमान बेनीवाल की विरासत और उसकी चुनौती
हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारने की रणनीति उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई बन गई है। यदि वे यह चुनाव हारते हैं, तो आरएलपी का प्रतिनिधित्व राजस्थान विधानसभा से समाप्त हो सकता है। हनुमान के पिता, रामदेव चौधरी, कभी नाथूराम मिर्धा के करीबी रहे हैं, जिससे यह सीट उनके लिए राजनीतिक विरासत का प्रतीक है।
ज्योति मिर्धा का प्रभाव
ज्योति मिर्धा ने रेवत राम डांगा के समर्थन में पूरी ताकत लगा दी है। उनके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी मजबूत है, जो नागौर क्षेत्र में गहरी जड़ें रखती है। दोनों नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है, जिसमें हर कोई अपनी-अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
सियासत में अदावत
हनुमान और ज्योति की अदावत का इतिहास भी है। 2013 में जब हनुमान निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, तब ज्योति ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला था। हनुमान ने आरोप लगाया था कि ज्योति ने उन्हें कमजोर करने की कोशिश की थी। इस समय से दोनों के बीच मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे।
खींवसर का चुनावी इतिहास
खींवसर सीट का गठन 2008 में हुआ था, और तब से हनुमान बेनीवाल ने यहां लगातार जीत हासिल की है। उन्होंने 2008 में भाजपा के टिकट पर, 2013 में निर्दलीय, और फिर 2018 में अपनी पार्टी आरएलपी के टिकट पर जीत दर्ज की थी। हाल ही में, हनुमान ने 2023 में भी आरएलपी से जीत हासिल की थी, लेकिन अब उनकी पत्नी चुनावी मैदान में हैं।
निष्कर्ष
खींवसर उपचुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्तित्व की जंग बन चुका है। यह देखने में दिलचस्प होगा कि हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच की यह अदावत किस दिशा में जाती है और क्या यह सीट किसी नए राजनीतिक समीकरण का आधार बनेगी। राजनीति के इस हॉट स्पॉट पर नजरें टिकी रहेंगी।