विगत पचहत्तर वर्षो में प्लास्टिक ने हमारे जीवन शैली पर इतना अधिक प्रभाव डाला हैं की हम जिसे उपयोगी समझते थे या हैं पर उनका अंत हमारे ईश्वरीय अवतार जैसा हैं, जिसने जन्म लिया पर अमरत्व प्राप्त किया। कभी न मरेगा। ऐसा नहीं हैं की इसके उपयोग से कोई भी बचा हैं या रह सकता हैं। क्योकि यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया हैं। इसका उपयोग करना और इसके दुष्प्रभाव से सब परिचित हैं पर ऐसी क्या मजबूरी या कमजोरी हैं जो इससे बच नहीं पा रहे हैं। गांव, कस्बा, शहर महानगर और जलए नभ थल भी इसके दुष्चक्र से निकल नहीं पा रहा हैं। इसका उपयोग नुक्सानदायक नहीं होगा इसीलिए हम आँख बंदकर उपयोग कर रहे हैं। यह धीमा जहर हैं जैसे पहले विषकन्या तैयार की जाती थी वैसा ही हमारा समाज विषमय होकर विषाक्तता की ओर बढ़ रहा हैं । जब तक अज्ञान थे तब तक बहुतए जी भर कर उपयोग किया और कर रहे हैंए अब सब जगह से खतरे की घंटी बजने लगी तब अब चेतने का समय आ गया। हमारी लाइफ में हर जगह प्लास्टिक की घुसपैठ है। सिर्फकिचन की बात करें तो नमक, घी, तेल, आटा, चीनी, ब्रेड, बटर, जैम, सॉस….सब कुछ प्लास्टिक में पैक होता है। तमाम चीजों को लोग किचन में रखते भी प्लास्टिक के कंटेनरों में ही हैं। सस्ती हल्की, लाने-ले जाने में आसान होने की वजह से लोग प्लास्टिक कंटेनर्स को पसंद करते हैं। ऐसे में खाने-पीने से जुड़ी चीजों में यूज होने वाले प्लास्टिक से होनेवाले नुकसान के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकॉलजी रिसर्च, लखनऊ के एक साइंटिस्ट के अनुसार पानी में न घुल पाने और बायोकेमिकली ऐक्टिव न होने की वजह से प्योर प्लास्टिक बेहद कम जहरीला होता है। लेकिन जब इसमें दूसरी तरह के प्लास्टिक और कलर आदि मिला दिए जाते हैं तो यह नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। ये केमिकल खिलौने या दूसरे प्रॉड्क्ट्स में से गर्मी के कारण पिघलकर बाहर आ और बच्चों के लिए ये ज्यादा नुकसानदेह है। ड्रग अमेरिका के फड ऐंड ऐडमिनिस्ट्रेशन ने इस बात को माना है कि सभी तरह की प्लास्टिक एक वक्त के बाद केमिकल छोड़ने लगते हैं, खासकर जिन्हें गर्म किया जाता है। आप ऐसे समझ सकते हैं कि बार-बार गर्म करने से इन कंटेनर्स के प्लास्टिक के केमिकल्स टूटने शुरू हो जाते हैं और फिर ये खाने-पीने की चीजों में मिक्स हो जाते हैं ।नतीजन गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर हम प्लास्टिक बोतल को तेज धूप में खड़ी कार में रखकर छोड़ देते हैं। गर्म होकर इन सकते हैं। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने बच्चों के खिलौनों और चाइल्ड केयर प्रॉडक्ट्स में इस तरह की प्लास्टिक के इस्तेमाल को सीमित कर दिया है। यूरोप ने साल 2005 में ही इस पर बैन लगा दिया था तो जापान समेत 9 दूसरे देशों ने भी इस पर पाबंदी लगा दी है प्लास्टिक की थालियां और स्टोरेज कंटेनर्स खाने-पीने की चीजों में केमिकल छोड़ते हैं । इसका खतरा टाइप प्लास्टिक बोतलों से केमिकल निकलकर पानी के साथ रिऐक्ट कर सकता है। ऐसे पानी या सॉफ्ट ड्रिंक्स को न पिएं । यहां तक कि घरों की छतों पर मौजूद पानी की टंकियों में तेज धूप में होने वाली रिएक्शन को लेकर भी खतरा जताया जा रहा है। इसे लेकर स्टडी की जा रही है लेकिन अभी पक्के रिऐक्शन होता है तो कैंसर कारक तत्व पैदा कक कलयुगी अजर अमर प्लारिटक! समझो ओर उपयोग के (डे सकती है) दे सकते हैं। प्लास्टिक कंटेनर होते हैं। इसी तरह खाने की दूसरी चीजों को भी गर्म-गर्म प्लास्टिक कंटेनर में न रखें। प्लास्टिक शीशी में होम्योपैथिक दवाएं सेफ होती हैंए बशर्ते शीशी लूज प्लास्टिक की न बनी हों। वैसे, कांच की शीशी में होम्योपैथिक मेडिसिंस रखी हों तो बेहतर रहेगा, क्योंकि इसमें किसी भी तरह का शक सुबहा नहीं रह जाता। यह नियम एलोपैथिक दवाओं खासकर सिरप आदि पर भी लागू होता है। प्लास्टिक से बने इंजेक्शनए आईवी आदि के नुकसान के बारे में अभी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है। बच्चे को फीड करने के लिए प्लास्टिक बॉटल का इस्तेमाल न करें। इसकी जगह स्टील या कांच की बॉटल यूज करें। अगर प्लास्टिक की बॉटल यूज करना ही है तो अच्छी क्लॉलिटी की लें। बॉटल के ऊपर फी या फी या लेड फी आदि लिखा हो तो बेहतर है। प्लास्टिक बॉयटल को माइक्रोवेव या गैस पर पानी में बिल्कुल न उबालें। बॉटल को गर्म पानी से साफकरना काफी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। सावधानी के तौर पर टंकी के ऊपर शेड 3 और 7 या किसी हार्ड प्लास्टिक से बने कंटेनर्स में और भी ज्यादा होता है। इन प्लास्टिक्स में बायस्फेनॉल, (क) बनवा सकते हैं। अक्सर देखा गया है कि छोटी पॉलिथीन थैलियों में लोग गर्म चाय ले जाते हैं। एक्सपर्ट्स के नामक केमिकल होता है। ये केमिकल हमारे शरीर के हॉर्मोंस को प्रभावित करते है, इनसे ब्रेस्ट कैंसर का खतरा रहता है और पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का भी रिस्क होता है। प्रेग्नेंट महिलाओं मुताबिक यह तरीका बेहद नुकसानदेह है। इसके अलावा क्लोरीन सलूशन से साफ कर सकते हैं। इससे सारे कियणु निकल जाते हैं। सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (स्व) की एक स्टडी में कहा गया है कि बच्चों के दांत निकलते वक्त उसे जो खिलौने दिए जाते हैं उनमें बेहद को माइक्रोवेव में गर्म नहीं करना चाहिए यहां तक कि थोड़ी देर के लिए भी नहीं। कभी मजबूरी में करना ही हो तो वही कंटेनर यूज करें, जिन पर माइक्रोवेव सेफ का सिंबल हो | साथ ही, इनमें ऐसी चीजें बेहद थोड़ी मात्रा में न गर्म करें, जिनमें फैट या शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा हो। माइक्रोवेव में कांच, पाइरेकक््स या चीनी मिट्टी के कंटेनर यूज करें। आजकल क्या हमेशा से सब सामग्री प्लास्टिक से कवर्ड मिलती हैं विशेष कर कपडे आदि, उनमे हवा का प्रवेश न होने से और तैयार होते समय कुछ नमी रहने से सूक्ष्म फंगस जैसे कीटाणु भी पैदा होते हैं जो उपयोग करने पर त्वचा रोग और किसी किसी को एलर्जी पैदा कर देती हैं। आजकल हर प्रकार की दवाईयां चाहे आयुर्वेद के आसव.. अरिप्ट प्लास्टिक की शीशी में प्रदाय किया जाना घातक होता हैं कारण प्लास्टिक का अलकोहल से रिएक्शन होता हैं। हम सब विवेकवान और शिक्षित हैं इसीलिए इस बात को आप स्वयं गंभीरता से ले और स्वयं आगन्तुज रोगों से बच सकते हैं। यह निरयण आपका स्वयं का अपने, परिवार के हित में होगा। जानकारी से सब है। तुरंत तो कुछ पता नहीं चलता, लेकिन लंबे समय तक इस्तेमाल करने से यह कैंसर का कारण बन सकता है। दरअसल, बेहद गर्म चीजों के साथ प्लास्टिक का खतरनाक केमिकल्स पाए गए हैं। बच्चों को प्लास्टिक के टीथर देने के बजाय खीरे यागाजर के चिल्ड बड़े टुकड़े या मुलहठी की बड़ी डंडी (छोटी डंडी गले में फंस अवगत हैं पर लापरवाही के कारण दुष्प्रभाव से नहीं बच सकोंगे। निरयण आपका हैं। वो अमर रहेगा और हमारा मरण करा देगा।