इन दिनों अमेरिका भारत को लेकर बड़ा खेल खेल रहा है। भारत अमेरिका के लिए अति महत्वपूर्ण है। नाटो संगठन भारत को अपना केंद्र बिंदु बनाना चाहता है भारत प्रशांत क्षेत्र में नाटो संगठन का सहयोगी देश है।नाटो संगठन ने भारत को नाटो प्लस का दर्जा देने की जो पेशकश की है। यदि यह दर्जा भारत स्वीकार कर लेता है, तो यह अमेरिका के मकड़जाल में फंसने जैसा है भारत को इस समय अमेरिका चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को लेकर बहुत सतर्क रहने की जरूरत है। इस साल मार्च माह में नाटो संगठन की जो बैठक हुई थी, उसमें भारत को अमेरिका के साथ सहभागिता बढ़ाने और चीन के साथ संबंधों को लेकर भी काफी विचार विमर्श हुआ था। भारत अपनी पुरानी विदेश नीति के कारण महाशक्तियों के जाल में फंसने से बचा रहा है। स्वतंत्रता के बाद से ही गुटनिरपेक्ष देश के रूप में भारत ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। राजनीतिक और सैन्य संबंधों को लेकर भारत कभी किसी के ऊपर आश्रित नहीं हुआ । जिसके कारण भारत सारे विवादों से दूर रहते हुए अपनी स्वतंत्र भूमिका बनाकर रख सका | नाटो के वर्तमान में 3 सदस्य देश हैं। अगर किसी सदस्य देश पर हमला होता हैए तो नाटो संगठन इसे सामूहिक हमले के रूप में स्वीकार करता है। नाटो प्लस देशों को यह सुरक्षा कवच प्राप्त नहीं होता है। नाटो प्लस के सुरक्षा कवच मे नाटो संगठन संबंधित देश को खुफ्यिा सूचनाएं हथियार और सैन्य सहयोग बढाते हैं । अमेरिका और नाटो देशों के इस दबाव को भारत को स्वीकार नहीं करना चाहिए। इससे भारत को भारी दूरगामी नुकसान होगा। जो स्थिति आज पाकिस्तान और यूक्रेन की है। उससे भी ज्यादा खराब स्थिति भारत की हो सकती है।इस तथ्य को भारत सरकार को ध्यान में रखना होगा। यदि भारत ने नाटो प्लस का दर्जा स्वीकार किया। तो अन्य महाशक्तियों से भारत की दूरी बनना तय है। भारत एक उभरती हुई महाशक्ति बनने जा रहा है। भारत को सभी के साथ अपने संबंध इस तरह से रखना होंगेए कि सभी लोग भारत की निष्पक्ष और गुटनिरपेक्ष नीति के कारण भारत के ऊपर विश्वास रख सकें। तभी हमें इसका लाभ भी कहा गया है। विवाह का अर्थ काम वासना में लिप्त हो जाना नहीं हैए अपितु संयम की साधना करते हुए वंशवृद्धि के लिए उत्तम संतान को जन्म देना भी हैए इस संतान को श्रेष्ठ संस्कार देना भी गृहस्थ धर्म का एक दायित्व है । जिससे वह संतान आगे चलकर धर्म वृद्धि करते हुए स्वयं का और अन्य जीवों का कल्याण कर सके। इस प्रकार स्थूल रूप में कहें तो वैवाहिक जीवन सदाचार को बढ़ावा देने के लिए वंशए समाज और धर्म की वृद्धि के लिए है तथा इसमें व्यभिचार का कोई स्थान नहीं है। इसके माध्यम से आदर्श सामाजिक जीवन जिया जाता है। इन दिनों समलैंगिक विवाह को सामाजिक और विधिक मान्यता देने के लिए बहुत आग्रह किया जा रहे हैं । किंतु यह आग्रह प्रथम दृष्टया ही दुराग्रह प्रतीत होते हैं क्योंकि वैवाहिक जीवन जिसे गृहस्थ धर्म का पालन करने की संज्ञा दी गई है केवल और केवल विपरीत लिंगधारी अर्थात स्त्री.पुरुष के मध्य ही संभव हो सकता है। दो समलैंगिक परस्पर एक दूसरे के अच्छे मित्र हो सकते हैंए. वे एक दूसरे के जीवन यापन में भौतिक उन्नति प्रदान करने के लिए सहायक हो सकते हैं। और ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हुए एक दूसरे को धर्म पथ पर अग्रसर रहने में सहायक हो सकते हैं।वे साथ-साथ रहकर भी अच्छे नागरिक बने रह सकते हैं। परंतु ऐसे साथ साथ रहने को विवाह नाम के पवित्र गठबंधन का नाम नहीं दिया जा सकता है । समलैंगिक विवाह को सामाजिक और विधिक मान्यता? तरीके से जाना जा सकता है। भारत यदि नाटो प्लस में शामिल होगा। तो भारत के अन्य देशों के साथ विशेष रुप से रूस . चीन जैसे देशों से दूरियां बनेगी जो वर्तमान परिस्थितियों में सबसे घातक होंगी । भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजनायिक यात्रा पर अमेरिका जा रहे हैं। भारत अमेरिका से फइटर जेट इंजन की तकनीकी साझा करने पर चर्चा कर रहा है। भारत अमेरिका से 30 ड्रोन खरीदने की योजना भी बना रहा है। 3 अरब डालर से ज्यादा का यह सौदा अमेरिका के साथ होगा। इस यात्रा के दौरान अमेरिका हर हालत में भारत को प्रभावित कर नाटो प्लस का दर्जा स्वीकार करने का दबाव बनाने की कोशिश करेगा। भारत यदि अमेरिका के दबाव में आ गयाए तो सारी दुनिया के देशों में इसकी तीत्र प्रतिक्रियाएं निश्चित रूप से होगी। अभी जो वर्तमान हालत बने हुए हैं। उसमें रूस और चीन के साथ भारत मिलेगा। पश्चिमी देश चीन पर अंकुश लगाने के लिए भारत को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं। इसके लिए भारत पर वह निरंतर अपना दबावए तरह-तरह से बना रहे हैं। नाटो संगठन और अमेरिका अपने सहयोगी देशों का उपयोग कर उन्हें अकेला बीच मझधार में छोड़ देता के संबंधों में तनाव बढ़ना तय है। नाटो प्लस देशों को नाटो संगठन में भारत को वह सुरक्षा भी प्रात नहीं होगीए जिस तरह की सुरक्षा हमें 97 के युद्ध के समय रूस से सुरक्षा संधि करने के रूप में मिली थी। भारत और रूस संधि के कारण भारत. पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग करने में भारत सफल दिलाने की मांग जीवन में उच्च नैतिक आदर्शों की स्थापना करने के लिए नहीं है अपितु व्यभिचार को सामाजिक मान्यता दिलाने का दुगग्रह मात्र ही है। गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए अपने वंश, धर्म और संस्कारों की रक्षा के लिए संतान की उत्पत्ति का लक्ष्य भी समलैंगिक विवाह के द्वारा समाप्त ही हो जाएगा। अंग्रेजी शासन काल में लॉर्ड मैकाले ने गहन अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला था कि भारतीय संस्कृति में गुरुकुल पद्धति के माध्यम से शिक्षा और संस्कृति के जिन आदर्श संस्कारों का बीजारोपण करते हुए आदर्श नागरिकों का निर्माण किया जाता है, उन गुरुकुल को नष्ट किए बिना अंग्रेजी शासन को भारत वर्ष में बनाए रखना संभव नहीं है क्योंकि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली जीवन में आत्मोन्नति के संस्कार देती है और यह संस्कार गुलामी के बंधन में बांधे रखने में बहुत बाधक हैं अतः अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा पद्धति को आमूल चूल रूप नष्ट किया और उसके दुष्परिणाम सामने आए।’ इसी प्रकार समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग हमारे दर्शन और उच्च नैतिक जीवन के संस्कारों के हरे-भरे और घने वृक्ष की जड़ों पर प्रहार करने के समान है। ऐसी मांग के कुल्हाड़ों की धारको समय रहते ही नष्टनहीं किया गया तो हमारे गृहस्थ धर्म को और उच्च नैतिक मापदंडों पर आधारित सामाजिक जीवन को शनै-शने नष्ट होने से कोई नहीं रोक सकेगा ।’ दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस एन ढींगग का मत है समलैंगिक संबंध भारत में अपराध नहीं है हालांकि समाज इन्हें विवाहित जोड़े के रूप में न स्वीकारता है और ना ही ऐसे जोड़ेको विवाहित जोड़ा कहने के योग्य मानता है ।विवाह पति पत्नी के बीच की जिम्मेदारी है यह मानव जीवन का संस्कार है जो समाज को मजबूत करता है। जयप्रकाश नारायण मिश्रा पी.जी.कॉलेज लखनऊमें समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर विनोद चंद्रा कहते हैं समलैंगिक विवाह को मान्यता जटिल मसला है एक ओरइस समुदाय के साथ समानता का तर्क हैतो दूसरी ओरसामाजिक व्यवस्था ।निस्संदेह इस दिशा में बहुत संभल कर ही किसी नतीजे ‘परपहुंचना होगा। वेनेशियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समलैंगिक संबंध रखने वालों में एचआईवी एड्स का खतरा ज्यादा देखा गया है, इनमें नशे की लत, अवसाद, हेपेटाइटिस और यौन संचारित रोगों एसटीडी के होने की आशंका भी ज्यादा देखी गई है कुछ इस प्रकार के कैंसर का खतरा भी ऐसे लोगों में ज्यादा रहता है हालांकि एक वर्ग है जो ऐसी बहुत सी बीमारियों के लिए उन्हें समाज में स्वीकार्यता नहीं मिलने के कारण मानता है। सन 2008में अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने समलैंगिकता और यौन इच्छा को लेकर कहा था इस बात को लेकर एक राय नहीं है कि यौन रुझान का कारण क्या है हालांकि कई शोध में पाया गया है कि आनुवंशिक एवं हार्मोन संबंधी कारण परवरिश सामाजिक एवं सांस्कृतिक माहौल से व्यक्ति की यौन इच्छा पर प्रभाव पड़ता है इसका कोई एक कारण नहीं है प्रकृति और परवरिश दोनों की ही इसमें भूमिका रहती है। ऊमेरिका वद्े जाल में तो नहीं कंस रहा भारत ? रहा। वरन अमेरिका के 7 वें बेड़े का मुकाबला करने में रूस के साथ की गई सुरक्षा संधि के कारण सफल हो पाया था। भारत का अमेरिका के साथ कभी भी सहयोगी का संबंध ना होकरए केवल व्यापारिक रिश्ते ही रहे हैं। अमेरिका भारत के साथ हमेशा प्रोफेशनल संबंधों को प्राथमिकता देता रहा है।