अभी हाल ही में भारतीय मूल के राजनेता ऋष सुनक ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। इस समाचार से स्वाभाविक रूप से भारतीय समाज में भी खुशी की लहर दौड़ गई। परंतु, ब्रिटेन के अलावा विश्व के अन्य 7 देशों में भी भारतीय मूल के राजनेताओं ने प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति का पद सम्भाला हुआ है। अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भारतीय मूल की हैं। इसी प्रकार भारतीय मूल के प्रविंद जगन्नाथ वर्तमान में मॉरिशस के प्रधानमंत्री हैं। भारतीय मूल के ही भरत जगदेव 2020 से गुयाना के उपराष्ट्रपति हैं। भारतीय मूल के एंटोनियो कास्टा वर्तमान में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री है । चंद्रिका प्रसाद उर्फचान संतोखी वर्तमान में सूरीनाम के राष्ट्रपति है। सिंगापुर की वर्तमान राष्ट्रपति हलीमा भी भारतीय मूल की हैं। गुयाना के वर्तमान राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं। एक अन्य आलेख में ‘उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसारए अभी तक विश्व के 25 देशों में भारतीय मूल के लगभग 343 राजनेता किसी न किसी महत्त्वपूर्ण राजनैतिक पद को सुशोभित कर चुके हैं। भारतीय मूल के नागरिकों ने १0 देशों में 34 बार प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली है। भारत के पड़ोसी देश मॉरिशस में 0 बार, सूरीनाम में 5, गयाना में 4, सिंगापुर, त्रिनिदाद और टोबैगो में 3.3 बार, पुर्तगाल में 2, फिजी, आयरलैंड और सेशेल्स में १.॥ बार भारतीय मूल के राजनेता प्रधानमंत्री रहे हैं। कनाडा में तो 9 प्रमुख राजनेता ऐसे हैं, जो भारतीय मूल के हैं। (इनमें 8राजनेता वहां की सरकार में भी शामिल हैं। लगभग यही स्थिति आज अमेरिका में भी पाई जा रही है। आज पूरे विश्व में 3.2 करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय निवास कर रहे हैं। करीब 25 लाख भारतीय प्रतिवर्ष भारत से अन्य देशों में प्रवास के लिए चले जाते हैं। विदेश में बस रहे भारतीयों ने भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करते हुए भारत की साख को न केवल मजबूत किया है बल्कि इसे बहुत विश्वसनीय भी बना दिया है। अप्रवासी भारतीयों ने अपनी कार्यशैली से अन्य देशों में स्वयं को तो स्थापित किया ही है, साथ ही इन देशों में अपने लिए कई अनगिनित उपलब्धियां भी अर्जित की हैं। इन देशों में निवास कर रहे अप्रवासी भारतीय वहां के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी भी बढ़ाते जा रहे हैं। तीन विभिन्न कालखंडों में भारतीय नागरिक विभिन्न देशों में प्रवास पर भेजे गए थे अथवा वे स्वयं गए थे | सबसे पहिले तो भारत पर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान लाखों की संख्या में भारतीय, श्रमिकों के तौर परए ब्रिटिश कालोनियों (ब्रिटेन द्वारा शासित देशों) में भेजे गए थे। आज इन देशों में भारतीयों की आगे आने वाली पीढायां बहुत प्रभावशाली बन गई हैं एवं इनमें से कुछ तो इन देशों में प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति के पदों तक पहुंच गए हैं। जैसे, मारिशस में भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम मारिशस के प्रथम मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं छठे गवर्नरजनरल रहे हैं। आप सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायी थे एवं हिन्दी भाषा के पक्षधर और मारिशसत॒ में भारतीय संस्कृति के पोषक रहे हैं। आपके कार्यकाल में मारिशस में हिन्दी के पठन.पाठन में बहुत उन्नति हुई। आगे चलकर भारतीय मूल के ही अनिरुद्ध जगन्नाथ भी मारिशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों पदों पर रहे। दक्षिणी अमेरिका के गयाना देश में भारतीय मूल के छेदी भरत जगन को देश के सबसे बड़े नेताओं में गिना जाता है। आपको वहां राष्ट्रपिता के रूप में देखा जाता है। आप ब्रिटिश गयाना के प्रधानमंत्री रहे एवं बाद में स्वतंत्र गयाना के राष्ट्रपति भी रहे । त्रिनिदाद एण्ड टोबैगो में भारतीय मूल की कमला प्रसाद बिसेसर प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर चुकी हैं । इसी प्रकार भारतीय मूल के महेंद्र पाल चौधरी भी फिजी में प्रधानमंत्री बने थे। भारतीय मूल के वैवेल रामकलावन हिंद महासागर के द्वीपीय देश सेशेल्स के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। 43 वर्ष बाद सेशेल्स में विपक्ष का कोई नेता राष्ट्रपति निर्वाचित हुआ | इसी प्रकार कोस्टा पुर्तगाल, सूरीनाम एवं पूर्वी अफ्रीका के देशों में भी भारतीय मूल के कई व्यक्ति इन देशों के उच्चत्तम पदों पर पहुंचे हैं। भारतीय मूल के ही श्री देवन नायर सिंगापुर के राष्ट्रपति रह चुके हैं एवं आपने सिंगापुर में नेशनल ट्रेड यूनियन की स्थापना की थी। इसके बाद भारतीय मूल के ही श्री एस आर नाथन भी सिंगापुर के राष्ट्रपति रहे हैं। वर्ष 4999 से 204 तक के खंडकाल में आप इस पद पर बने रहे थे। भारत द्वारा अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, एक बड़ी संख्या में भारतीय अन्य देशों में जाकर अप्रवासी भारतीय के तौर पर बस गए थे। उस समय पर इनमें से एक बहुत बड़ा वर्ग किसी न किसी प्रकार की तकनीकी दक्षता जैसे कारीगर, पलंबर, इलेक्ट्रिशियन, आदि हासिल किए हुए था। इन लोगों को ब्लू कोलर रोजगार आसानी से उपलब्ध हो रहे थे और ये भारतीय एक बड़ी संख्या में अधिकतर सऊदी अरब, ईहललात्कारियों की रिहाई : कहाँ तक ठीकपग्रे -४ (लीना शेवकानी) ::- बलात्कार और हत्या के अपराधियों को जिस तरह हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने बरी कर दिया है, उनके इस फैसले ने हमारी न्याय व्यवस्था, शासन-प्रशासन और देश की इज्जत को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है। 202 में दिल्ली के छावला क्षेत्र में एक 9 वर्षीय लड़की के साथ तीन लोगों ने मिलकर बलात्कार कियाए पीट-पीटकर उसके अंग-भंग किए और उसकी लाश को ठिकाने लगा दिया। वे पकड़े गए। निचली अदालत और दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें मौत की सजा सुनाई। पिछले लगभग नौ साल से वे जेल काट रहे थे, क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका लगा रखी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहकर बरी कर दिया है कि उनके विरुद्ध न तो पुलिस ने पर्याप्त प्रमाण जुटाए हैं और न ही निचली अदालतों में गवाहों की परीक्षा ठीक से की गई है । निचली अदालतों के फैसलों को रद्द करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को जरुर है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के लगभग आधा दर्जन ऐसे फैसलों की जानकारी मुझे है, जिन्हें बाद में इसी न्यायालय ने रद कर दिया है। इसीलिए इस मामले में इस फैसले को अंतिम और उत्तम मान लेने का कोई कारण नहीं है। इस पर देश के प्रबुद्ध लोगों को सवाल जरुर उठाने चाहिए। पहला सवाल तो यही है कि इस फैसले का निष्कर्ष क्या है? क्या इसका निष्कर्ष यह है कि जब कोई दोषी ही नहीं है तो दोष हुआ है, यह कैसे माना जाए? याने बलात्कार और हत्या जैसे कुकर्म हुए ही नहीं हैं तो क्या उस लड़की को उसके माँबाप ने खुद ही मारकर आग के हवाले कर दिया था। क्या उस लड़की ने अपने अंगों और गुप्तांगों को खुद ही भंग कर लिया था? क्या उसने अपनी हत्या भी खुद ही कर ली थी? यदि यह सही है तो फिर पिछले नौ साल से जेलखाने में सड़ रहे उन यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर एवं अन्य मिडिल ईस्ट देशों में अप्रवासी भारतीय बनकर रहने लगे । उस समय पर इन देशों में अप्रवासी भारतीयों को छोटे-छोटे दुकानों पर भी रोजगार आसानी से उपलब्ध हो रहा था। इसके बाद 970 के दशक एवं इसके बाद के कालखंड में भारत से बुद्धिजीवी, प्रोफेशनल एवं पढ़े लिखे वर्ग के लोग भी अन्य देशों की ओर आकर्षित होने लगे एवं अमेरिका, ब्रिटेन, कनाड़ा, जर्मनी, फ्रान्स, इटली आदि देशों में जाकर अप्रवासी भारतीय के रूप में बस गए। आज ये अप्रवासी भारतीय इन देशों में इंजीनीयर, डॉक्टर, प्रोफेसर, आदि अच्छे पदों पर कार्यरत हैं | इनमें से कई तो आज इन देशों की बड़ी बड़ी कम्पनियों में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के रूप में भी बहुत सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं। अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे अन्य कई देशों में तो आज सबसे अधिक डाक्टर एवं इंजीनीयर भारतीय मूल के लोग ही हैं एवं इन देशों के वित्तीय क्षेत्र में भी भारतीय मूल के लोग सबसे अधिक पाए जाते हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गति देने में इन अप्रवासी भारतीयों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। विशेष रूप से वर्ष 204 के बाद एक बड़ा बदलाव भी देखने में आ रहा है। वह यह कि अब भारतीय मूल के लोग इन देशों में भारत की आवाज बन रहे हैं इससे इन देशों में भारत की छवि में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है। पूर्व के खंडकाल में भारत की पहिचान एक गरीब एवं लाचार देश के रूप में होती थी। परंतुएण आज स्थिति एकदम बदल गई है एवं अब भारत को इन देशों में एक सम्पन्न एवं सशक्त राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही के 2 समय में अन्य देशों में भारतीयों की विश्वसनीयता एवं साख भी बहुत बढ़ी है क्योंकि विशेष रूप से वर्ष 204 के बाद से भारत की राजनीति बहुत संतुलित एवं स्थिर रही है। अतः विदेशों में आज अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारतीयों की आवाज को गम्भीरता पूर्वक सुना जा रहा है एवं इन देशों में बसे भारतीय भी अब अपनी भूमिका प्रभावशाली तरीके से निभाने लगे हैं। भारतीय संस्कृति की विचारधारा का अप्रवासी भारतीय आज सही तरीके से प्रतिनिधित्व कर रहे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इन सभी देशों में भारतीयों को एकजुट रखने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन बहुत प्रभावशाली तरीके से कर रहा है। इन देशों में भारतीय मूल के नागरिकों के बीच महान भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति का अलख जगाए रखना जरूरी है। अत: आज विश्व के 40 से अधिक देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ की शाखाएं लगाई जा रही भारत के अलावा अन्य देशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदू स्वयंसेवक संघ अथवा इसी प्रकार के अन्य किसी नाम से जाना जाता है। अकेले अमेरिका में हिंदू स्वयंसेवक संघ की लगभग 250 के आसपास शाखाएं लगाई जा रही है। जिसके चलते इन देशों के स्थानीय नागरिक भी आज सनातन हिंदू संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अभी हाल ही में इन सभी क्षेत्रों में भारतीय मूल के नागरिकों द्वारा स्थानीय नागरिकों के साथ मिलकर दशहरा एवं दीपावली का त्यौहार बहुत ही जोश एवं उत्साहपूर्वक मनाया गया है।